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बीच सड़क पर शहीद की पत्‍नी के पैरों में लेटकर युवाओं का अनोखी सलामी

इंदौर। मध्‍य प्रदेश के इंदौर जिले में बेटमा के पीर पिपलिया गांव में 75वां स्वतंत्रता दिवस (75th Independence Day) खास अंदाज में मनाया गया. दरअसल युवाओं ने शहीद सैनिक मोहनलाल सुनेर की पत्नी राजू बाई के चरणों में अनोख अंदाज में मत्था टेककर उन्हें ग्रैंड सैल्यूट दिया.

देशभर में आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर कई आयोजन हुए, लेकिन हम आज बात करेंगे इंदौर जिले के बेटमा से 3 किलोमीटर दूर एक शहीद ग्राम में हुए आयोजन की. जिसकी मिट्टी ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जो सरहद पर मां भारती की रक्षा करते हुए शहीद हो गया था. शहीद की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए सामाजिक समरसता मिशन के प्रवर्तक की ओर से पूरे देशभर में शहीदों के लिए काम कर रहे मोहन नारायण ने यहां मोहन लाल सुनेर की प्रतिमा स्थापित कर एक राष्ट्र शक्ति स्थल का निर्माण करवाया है, जोकि आज वो युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया है.

आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर शहीद मोहनलाल सुनेर के पैतृक गांव पीर पिपलिया में पृथ्वी डिफेन्स अकेडमी और बेटमा के युवाओं ने शहीद मोहन लाल सुनेर की पत्नी वीरांगना राजू बाई के चरणों मे अनोखे अंदाज में अपना मत्था टेक और उन्हें ग्रैंड सैल्यूट कर सलामी दी. इससे पहले आर्मी फिजीकल ट्रेनिंग सेंटर ने फ्लैग रन निकाला. ये नजारा देखने लायक था. अपने हाथों में तिरंगा लेकर भारत माता की जय के नारे लगाते हुए युवा राष्ट्र शक्ति स्थल पहुंचे तो वहां देशभक्ति का नजारा देखने लायक था. हर किसी की जुबान पर वंदे मातरम, भारत माता की जय, शहीद मोहन लाल सुनेर अमर रहे के नारे गूंज रहे थे.

75वें स्वतंत्रता दिवस पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक गांव एक तिरंगा अभियान के तहत ये आयोजन किया, जिसके तहत बेटमा से एक तिरंगा यात्रा निकाली गई जो पीर पिपलिया गांव में मोहनलाल सुनेर की प्रतिमा राष्ट्र शक्ति स्थल पर पहुंची. पिपलिया गांव में शहीद की पत्नी वीरांगना राजू बाई ने ध्वजारोहण किया. युवाओं ने इस मौके पर राष्ट्र शक्ति स्थल पर शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर देश के लिए जीने-मरने का संकल्प लिया. इस यहां स्वच्छता अभियान भी चलाया गया.

आपको बता दें कि पीर पिपल्या गांव के रहने वाले मोहन लाल सुनेर बीएसएस में पदस्थ थे. वे मात्र 24 साल की उम्र में 31 दिसंबर 1992 में त्रिपुरा में आतंकियों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे. उनकी विधवा राजू बाई तबसे मजदूरी करके अपने परिवार को चला रही थी और उनकी आमदनी इतनी नहीं थी कि वो अपने लिए पक्का मकान बना सकें.

अभावग्रस्त परिवार झोपड़ी में रहकर अपनी गुजर बसर करता था. उनकी दुर्दशा गांव के लोगों से देखी नहीं गई और सबसे मिलकर राजू बाई के लिए पक्का मकान बनवाने का फैसला लिया और इसके लिए 11 लाख का चंदा जमा किया. दो साल पहले 15 अगस्त को जब राजू बाई ने इस नए घर में प्रवेश किया तो गांव के लोगों ने अपनी हथेलियों पर चलाकर शहीद की पत्नी को गृह प्रवेश कराया था,तब ये खबर पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई थी.

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