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बीस साल पुराने डिब्बे आज भी दौड़ रहे पटरियों पर, 7 हजार है तादाद

कानपुर व मुजफ्फरनगर रेल हादसे ने रेलवे की कलई खोल दी है। पटरियों पर यूं ही मौत की रेल नहीं चल रही है। इसके पीछे की कई वजहें है जो हादसे को अंजाम दे रहे है। सात हजार के करीब ऐसे सवारी डिब्बे रेलवे ट्रैक पर दौड़ रहे है जो 20 साल से अधिक पुराने है। लिहाजा हवा से बातें करने वाली बुलेट ट्रेन चलाने के मंसूबे भी एक नजर में हवा हवाई साबित लगने लगी है।बीस साल पुराने डिब्बे आज भी दौड़ रहे पटरियों पर, 7 हजार है तादाद
परंपरागत आईसीएफ कोच आज भी रेलवे ट्रैक पर चल रही है। आकड़े बताते है कि सवारी डिब्बों की होल्डिंग के अनुसार 20 वर्षो से अधिक पुराने सवारी डिब्बे, जो अब भी गाड़ियों में लगाए जा रहे है, उनकी संख्या 6739 है। इनमें सबसे अधिक उत्तर रेलवे की ट्रेनों में 821 कोच इस्तेमाल होता है। 

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पूर्व रेलवे की बात करें तो इस जोन में 20 साल से अधिक उम्र के 718, मध्य रेलवे में 718, पूर्व मध्य रेलवे में 375 कोच का इस्तेमाल किया जा रहा है। बता दें कि लिंक हॉफ मैन बुश (एलएचबी) वाले महज 3800 कोच ही पटरियों पर दौड़ रहे है। इनमें भी ज्यादातर एसी श्रेणी वाले ही कोच है।

हैरानी की बात यह भी है कि गतायु हो गए कोच जो 25 साल से पुराने हो गए है उसे भी ट्रैक पर दौड़ाया जा रहा है। इस संबंध में रेलवे की दलील है कि आयु एवं हालात के आधार पर सवारी डिब्बों को बदलना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। सवारी डिब्बे का कोडल लाइफ 25 साल है और एलएचबी डिब्बे का 35 साल।

 

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