बुर्कापाल के 20Km के दायरे में मास्टरमाइंड हिड़मा, वहां तक नहीं पहुंच पा रही फोर्स
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सरपंच को मारने के बाद 6 बार हुई नक्सली नेताओं की बैठक गांव में
बुर्कापाल कैंप से पहले सड़क के दो छोर पर बसे गांव में हमें एक बुजुर्ग महिला ने अपना परिचय तो नहीं दिया पर गोंडी में उसने कई चौंकाने वाली बातें बताई। जब उसका फोटो खींचने की कोशिश की तो ऐसा करने पर उसने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। बुर्कापाल सरपंच को मौत के घाट उतारने के बाद नक्सलियों ने तेजी से गांव में अपना दबाव बनाया। स्थानीय लोगों की मानें तो सरपंच को मारने के बाद करीब-करीब हर दूसरे दिन गांव में नक्सली नेताओं ने बैठक ली और गांव के लोगों को फोर्स पर हमले के लिए तैयार किया। बुर्कापाल गांव के लोगों का सीआरपीएफ कैंप में आना जाना था और यहां के जवानों से अच्छे संबंध थे इसके बावजूद नक्सली दहशत की वजह कोई भी व्यक्ति कैंप में यह खबर नहीं पहुंचा पाया। इस इलाके में मौजूद 5 से ज्यादा कैंपों में ग्रामीणों के सबसे ज्यादा करीब बुर्कापाल कैंप के जवान और अफसर ही थे।
करीब आधा दर्जन से ज्यादा बैठकों के बाद नक्सलियों ने गांव में अपनी पकड़ बनाई। बुर्कापाल हमले से पहले वाली रात को ही गांव में एके-47 जैसे हथियार ले आए गए थे। ग्रामीणों को पहले ही बता दिया गया था कि उन्हें हथियार नहीं चलाने हैं, बस साथ देना है। हथियार गांव में पहुंचने के पहले ही कई घरों में नक्सली समर्थक आ चुके थे और वे हर ग्रामीण की गतिविधि पर नजर बनाए रखे हुए थे। गांव वालों की दिनचर्या में आए परिवर्तन का आभास कैंप के जवानों को भी था लेकिन वो समझ नहीं पाए की इतने बड़े हमले की तैयारी हो चुकी है। सुकमा पुलिस ने भी दो दिनों पहले एक 17 साल के युवक को बुर्कापाल हमले में शामिल होने के शक में हिरासत में लिया है और उससे पूछताछ की जा रही है। यह युवक सुकमा में रहकर पढ़ाई कर रहा था। बाद में वह नक्सलियों के साथ हो लिया था। हालांकि पुलिस ने अभी इस युवक का नाम और इसकी भूमिका की पुष्टि नहीं की है।
दोरनापाल से जगरगुंडा तक के सफर के बीच एक कैंप में भास्कर की टीम रुकी तो यहां सीआरपीएफ के कंपनी कमाडेंट का दर्द फूट पड़ा। उन्होंने कहा नेता-मंत्री सब कह रहे है कि नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा लेकिन इसके लिए संसाधनों की बेहद कमी है। संख्याबल तो है लेकिन जंगल में बिना हेलीकाप्टर की मदद के कार्रवाई संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक तौर पर वे कुछ नहीं कह सकते। लेकिन सच यहीं है कि इस इलाके में पांच हजार जवानों को भी ऑपरेशन के लिए भेजा जाए तो वो कुछ नहीं कर पाएंगे।
पथरीली सड़क पर मीलों तक न गाड़ियां और न ही कोई इंसान, रास्ते में इक्का दुक्का मवेशी दिख जाए तो इसे अपनी खुशकिश्मती समझो। चारों ओर ऊंचे पहाड़ और घने जंगल। जंगलों के अंदर बीच-बीच में हथियारबंद लोग जिन्हें पहली नजर में देखने पर यह भी समझना मुश्किल कि ये जवान हैं या नक्सली। हर पांच किमी के बाद हथियारबंद जवान और सीआरपीएफ के कैंप।