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बूढ़े पिता की माओवादी बेटे के नाम मार्मिक चिट्ठी : बूढ़ी हुई मां, झुकी कमर, अब तो लौट आ

रायपुर : छत्तीसगढ़ में 17 साल पहले माओवादी बने इकलौते बेटे से घर लौट आने की वृद्ध माता-पिता भावुक पत्र लिखा है। छत्तीसगढ़ की सीमा पर जगह-जगह पिता की कविता चस्पा कर मदद की गुहार लगाई गई है। बूढ़ी हुई मां, झुकी कमर, अब तो लौट आ, करना ना तू देर, सांसें चंद बाकी, अब तो लौट आ, पथरा गई हैं आंखें, एक नजर देखने को, अब तो लौटा आ… । यह किसी कवि की रचना नहीं बल्कि उस औलाद से बुजुर्ग माता-पिता की लिखित फरियाद है, जो आज से करीब 17 बरस पहले हाथों में बंदूक उठाए नक्सलवाद की दुनिया में कहीं गुम सा हो गया है। समाज की मुख्यारा से भटके युवाओं के परिजनों पर क्या बीतती है, माता-पिता के बुजुर्ग हो जाने पर किस तरह उनकी जिंदगी मौत से भी बदतर हो जाती है, वृद्ध दम्पति की कहानी इसका उदाहरण हैं।
ओडिशा के रायगढ़ा जिला अंतर्गत कल्याण सिंहपुर ब्लॉक में रहने वाले बुजुर्ग नरहर राउत का बीते 4 फरवरी को संभवत: दूसरे के हाथों उड़िया भाषा में लिखवाया गया यह कविता रूपी पत्र छत्तीसगढ़ की सीमा पर गढ़चिरौली के आसपास व चंद्रपुर में कई स्थानों पर चस्पा है। इसमें बेटे नीरू को लेकर मार्मिक अपील की गई है। इस पोस्टर में उक्त मार्मिक कविता के समर्थन में नक्सलियों को संबोधित करते कुछ इस तरह के संदेश भी हैं। ‘युवावस्था में माओवादियों की गलत नीति को ग्रहण कर अपने माता-पिता, भाई-बहन, घर-परिवार और समाज को छोड़ दिशाहीन होकर वन जंगल में भटक रहे हर युवाओं के माता-पिता, परिवार के सदस्य किस कठिन अवस्था में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, यह वे नहीं जान रहे हैं। माओवादी खुद मुख्य धारा से दूर हट गए, लेकिन उनके माता-पिता इससे कितने दुखी हैं, कितना कष्ट सहकर समाज में रह रहे हैं, इसका वर्णन करना काफी कठिन है। उन्हीं माओवादियों के बीच से एक के माता-पिता जीवन की अंतिम अवस्था में दिन काट रहे हैं। अपने बेटे के वापस आने की राह देख रहे हैं।

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