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बड़ा फैसला : हर परिवार को पैसे देने जा रही है मोदी सरकार

नई दिल्ली : विधानसभा चुनावों में तीन हिंदीभाषी राज्यों में हार के बाद बीजेपी ने आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि फरवरी में अंतरिम बजट के दौरान वित्तमंत्री अरुण जेटली एक अनूठी घोषणा कर सकते हैं। ये घोषणा है यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) की। इसके तहत हर परिवार के हरेक सदस्य को एक निश्चित राशि प्रति महीने या फिर एकमुश्त दी जा सकती है, जिसे यूबीआई यानी बुनियादी आमदनी के तौर पर जाना जाता है।  साल 2016-17 के आर्थिक सर्वे में इस योजना की सिफारिश की गई थी। कहा गया कि इससे गरीबी हटाने में मदद मिलेगी। सबसे पहले इंदौर जिले के 9 गांवों में पायलट प्रोजेक्ट की तरह इसे शुरू किया गया। साल 2010 से 2016 तक चले इस प्रोजेक्ट के तहत वयस्कों और बच्चों को हर महीने एक निश्चित रकम दी गई। यूनिसेफ से फंडिंग की गई और हर महीने पैसा लोगों के बैंक अकाउंट में पहुंचा। इसके बाद कई एनजीओ ने सर्वे भी किया कि इस रकम से लोगों के जीवनस्तर पर क्या फर्क आया। सर्वे के नतीजे अलग-अलग रहे, लेकिन औसत नतीजा अच्छा रहा। इसी आधार पर सरकार ने अपने आर्थिक सर्वे में इस योजना की सिफारिश की। हालांकि ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक डेवलपमेंट (ओईसीडी) के अनुसार दुनिया के किसी भी देश ने इसे वर्किंग-एज जनसंख्या की आय के मुख्य साधन के तौर पर नहीं अपनाया लेकिन किसी न किसी रूप में ये चल रहा है। कई देशों में यूबीआई को गारंटीड मिनिमम इनकम (जीएमआई) के नाम से भी जाना जाता है। यह सोशल वेलफेयर प्रोविजन है जो ये बात पक्की करता है कि सभी नागरिक न्यूनतम सुविधा पा सकें। विश्व के कई देश अलग-अलग स्तर पर अपने नागरिकों को ये सुविधा दे रहे हैं। इनमें साइप्रस, फ्रांस, अमेरिका के कई राज्य, ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड, लग्जमबर्ग, स्वीडन, स्विटरजरलैंड और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं। इनमें से कई देशों में या तो पायलेट प्रोजेक्ट चल रहा है या फिर विभिन्न स्तरों पर सरकार नागरिकों को पैसे दे रही है। देश में ये योजना लागू करने में कई बेसिक समस्याएं हैं। यूबीआई का आइडिया लाने वाले लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाई स्टैंडिंग के अनुसार इस योजना को लागू करने पर जीडीपी का लगभग 4 प्रतिशत खर्च आएगा।

वर्तमान में सरकार जीडीपी का लगभग इतना ही हिस्सा विभिन्न तरह की सब्सिडी में दे रही है। ऐसे में सरकारी खजाने पर दोगुना बोझ पड़ सकता है। हालांकि इसका एक रास्ता उन्होंने ये भी सुझाया कि सब्सिडी को सरकार धीरे-धीरे खत्म करे और यूबीआई को पूरी तरह लागू कर दे। इससे जीवनस्तर सुधरेगा और आय में असमानता जैसी समस्याएं भी कम होने लगेंगी। यूबीआई लागू करने के लिए सब्सिडी कैसे खत्म की जाए, ये एक बड़ी समस्या हो सकती है। दूसरी एक बड़ी मुश्किल ये भी है कि हर महीने बिना काम के एकमुश्त रकम मिलने पर लोगों में काम की इच्छा कम हो सकती है। लेबर मार्केट में इसके कई दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं। तीसरी और अहम समस्या है भारतीय राजनीति में अस्थिरता। चुनाव जीतने के लिए एक राजनीतिक पार्टी यूबीआई की राशि बढ़ा सकती है तो दूसरी पार्टी इसमें अड़ंगे डाल सकती है। इससे जीडीपी का बोझ और बढ़ सकता है। बहरहाल विधानसभा के परिणामों के बाद एकाएक इसकी घोषणा को लोग चुनावी वादे की तरह ले रहे हैं।

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