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भागलपुर दंगा: आरोपी बरी, आखिर 28 साल पहले सुलफन को किसने मारा
भागलपुर.भागलपुर दंगे में बरारी के सुलफन की गला काट कर हत्या के मामले में पुलिस ने ऐसी लापरवाही दिखाई कि 28 साल तक केस चलने के बाद भी हत्यारे का पता नहीं चल सका। अधूरी और जांच की धीमी रफ्तार के बीच पुलिस ने ऐसा गवाह पेश किया, जिसने कोर्ट में आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया। नतीजा, शुक्रवार को सप्तम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीके मिश्रा की कोर्ट से हत्या का मुख्य आरोपी नरेश साह बरी हो गया। कोर्ट ने मामले में साक्ष्य का अभाव पाया।
दंगे के एक माह बाद दर्ज हुआ था मामला
1989 में हुए दंगे के दौरान 29 अक्टूबर को सुरखीकल महल निवासी मो. जुमराती ने प्राथमिकी दर्ज करायी थी कि खंजरपुर मस्जिद निवासी उसके ससुर सुलफन की गला काटकर हत्या कर दी गई। 25 नवंबर, 1989 को मो. जुमराती ने बरारी थाने को रजिस्टर्ड डाक से रिपोर्ट लिखने के लिए चिट्टी लिखी। पुलिस ने 30 नवंबर, 1989 को कांड संख्या 873/89 दर्ज किया। इसमें खंजरपुर निवासी नरेश साह, तारिणी तांती व चंदर तांती को प्राथमिक व टिड्ढ़ा गोढ़ी और गोपी गोढ़ी को अप्राथमिक आरोपी बनाया था।
चिट्ठी में बताए थे अारोपियों के नाम
मो. जुमराती ने चिट्ठी में लिखा था कि 29 अक्टूबर को वे सुबह 10 बजे दंगा के कारण गुम हुए छोटे बेटे को ढूंढने के लिए ससुर सुलफन के साथ खंजरपुर मस्जिद से सुरखीकल जा रहे थे। वहां चौक पर बच्चा मिल गया। उसे लेकर लौट रहे थे कि नंदलाल मिश्रा लेन पर मौजूद बलवाइयों ने घेर लिया। तभी खंजरपुर मोहल्ले के नरेश साह, तारिणी तांती व चंदर तांती ने ससुर सुलफन के गले में गमछा लगाकर जोलहा टोली की ओर घसीटते हुए ले जाने लगे। सुलफन बचाव की गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी उनकी मदद नहीं की।
पुल पर बलवाइयों ने कर दी थी हत्या
ससुर को बलवाइयों से घिरता देख बेटा भाग निकला और वे वहीं छिप गए। बाद में उन्होंने बलवाइयों का पीछा करते हुए पुल के पास पहुंचे। वहां पहले से टिड्ढ़ा गोढ़ी व गोपी गोढ़ी लाठी-भाला लेकर दौड़ रहे थे। इसी दौरान दोनों ने ससुर सुलफन तो पटक दिया और तारिणी तांती ने सुलफन की गर्दन काट दी। उनलोगों ने सुलफन की जेब में रखे 900 रुपये भी लूट लिए थे। वे भागकर जब खंजरपुर मस्जिद आए और परिजनों व मोहल्ले के लोगों को जानकारी दी। तब बलवाइयों के डर से कोई बाहर नहीं अाया। मो. जुमराती का कहना था कि वे लोग मूलत: सुरखीकल के रहने वाले थे लेकिन दंगा शुरू होने के बाद वे घर छोड़कर खंजरपुर मस्जिद आ गए थे। जुमराती का आरोप था कि बलवाइयों ने सुलफन की लाश गायब कर दी थी।
एएसआई सीपी सिंह ने की थी जांच
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद बरारी थाने के तत्कालीन एएसआई सीपी सिंह को मामले की जांच की। उन्होंने 5 अप्रैल 1990 को कोर्ट में पेश चार्जशीट में कहा कि रिपेार्ट के बाद उन्होंने मोहल्ले के सरोज मास्टर, शौकत खान, विनय चौधरी, मो. अल्लम, मो. कमाल, मो. कारू, एेनुल हक, जफर इमाम, गोपाल चौधरी, नरेंद्र नारायण वर्मा, सुनील चंद चौधरी, सिधेश्वर मिश्रा, लुखन यादव, गणेश तांती व जगदीश तांती से घटना को लेकर बातचीत की थी, लेकिन किसी ने भी आरोपी के खिलाफ चश्मदीद के रूप में गवाही नहीं दी। लोगों ने कहा, मो. सुलफन की हत्या तो हुई है लेकिन कर्फ्यू के कारण वे लोग घर के अंदर ही थे। मालूम हो कि नरेश व चंदर को 10 जुलाई 2006 को गिरफ्तार किया गया। टिड्ढा व गोपी को असत्यापित दिखाया गया। मामले में 24 अगस्त 2006 को तत्कालीन थानाध्यक्ष श्रीकांत मंडल ने फाइनल रिपोर्ट दर्ज किया था।
पुलिस ने इन बिंदुओं पर की लापरवाही
– रिपोर्ट के बाद पुलिस व सीआइडी सुलफन की लाश नहीं ढूंढ़ सकी।
– सूचक के अलावा किसी पुलिस किसी और गवाह नहीं बना सकी।
– पुलिस ने हत्या की बात मानी, लेकिन साक्ष्य नहीं पेश कर सकी।
– तात्कालीन डीएसपी ने भी आईपीसी की धारा 394/24 के तहत प्राथमिक अाराेपियों के खिलाफ साक्ष्य को नहीं माना।
– सीआईडी ने धारा 364, 337/34 के तहत तीनों प्राथमिक आरोपियों के आरोप को सही माना, लेकिन साक्ष्य नहीं जुटा सकी।
– सूचक के अलावा किसी पुलिस किसी और गवाह नहीं बना सकी।
– पुलिस ने हत्या की बात मानी, लेकिन साक्ष्य नहीं पेश कर सकी।
– तात्कालीन डीएसपी ने भी आईपीसी की धारा 394/24 के तहत प्राथमिक अाराेपियों के खिलाफ साक्ष्य को नहीं माना।
– सीआईडी ने धारा 364, 337/34 के तहत तीनों प्राथमिक आरोपियों के आरोप को सही माना, लेकिन साक्ष्य नहीं जुटा सकी।