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भारत के हाथ से निकलता नेपाल

दस्तक टाइम्स/एजेंसी:
पंद्रह दिन पहले नेपाल के उप प्रधानमंत्री कमल थापा दिल्ली में थे. लौटे, तो इस बात से अभिभूत थे2015_11$largeimg205_Nov_2015_012456187 कि प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उनकी अच्छी आवभगत की है, नेपाल को अधिक सहयोग का आश्वासन दिया है. थापा की यात्रा से उम्मीद बंधी थी कि जल्द ही नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी नयी दिल्ली आयेंगे और कई गलतफहमियां दूर होंगी. 
 
लेकिन पंद्रह दिनों में सबकुछ पलट गया. दोनों देशों के बीच शंका और शिकायतों का कोहरा घना हो रहा है. सीमा पर छोटी सी चिनगारी दो देशों के बीच दावानल न बन जाये, इसकी चिंता उन सबको है, जो भारत-नेपाल संबंधों के प्रति संजीदा हैं. ऐसी घटनाएं फिलस्तीन-इजराइल सीमा पर होती रही हैं, लेकिन भारत न तो इजराइल है, न ही नेपाल फिलस्तीन.
 
बीरगंज में कर्फ्यू में ढील के साथ स्थिति चंद दिनों में सामान्य हो जायेगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए. लेकिन नेपाली पुलिस की फायरिंग में मारे गये भारतीय युवक सोनू राम को लेकर बीरगंज का जिला प्रशासन का रवैया निहायत ही बर्बर और असंवेदनशील है. 
 
सोमवार को इनरवा प्रहरी चौकी से गुजर रहे भारतीय युवक सोनू राम को गोली मारने, मोतिहारी के जमरुद्दीन तथा समद अंसारी को गिरफ्तार करने के चंद घंटे बाद नेपाल के उप प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र से शिकायत करते हैं कि भारत ने सीमा पर 40 दिनों से नाकेबंदी कर रखी है, तो कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ लगता है. जिला प्रशासन निर्लज्ज होकर साबित करने में लगा है कि मारा गया युवक सोनू राम, और गिरफ्तार जमरुद्दीन तथा समद प्रदर्शनकारियों में शामिल थे.
 
नेपाल ने एक माह में दूसरी बार यूएन से भारत के विरुद्ध शिकायत की है. 2 अक्तूबर को कोइराला सरकार में मंत्री रहे महेंद्र बहादुर पांडे ने भारत की शिकायत यूएन महासचिव बान की मून से की थी. 
 
तब के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने भी भारत को भला-बुरा कहा था. चीनी राजदूत वू चुन्ताई ने कूटनीतिक गरिमा का ध्यान न रखते हुए बयान दिया था कि भारत ने नेपाल के विरुद्ध नाकेबंदी कर रखी है. यूएन में चीनी दूत नेपाल को निरंतर उकसा रहे हैं कि वह शिकायत करके भारत की छवि खराब करे. यह चीन की नयी तेल कूटनीति है कि कोदारी मार्ग से काठमांडो पेट्रोलियम भेजो, और उस पर माचिस की तीली मार दो!
 
क्या यह साजिश है? यह किस तरह की रणनीति है कि संविधान में सुधार की मांग के साथ नेपाली सीमा पर टेंट गाड़ कर संयुक्त मधेस लोकतांत्रिक मोर्चा के लोग बैठें, और बदनाम भारत हो? नेपाल पुलिस-प्रशासन ने जान-बूझ कर 40 दिनों तक नाकेबंदी होने दी, ताकि त्राहि-त्राहि मचे, नेपाल में भारत के विरुद्ध प्रदर्शन हो, और मामला यह बने कि भारत भूपरिवेष्ठित राष्ट्र नेपाल पर अत्याचार कर रहा है. 
 
नेपाली प्रशासन ने चाहा कि नाकेबंदी समाप्त होनी चाहिए, तो एक झटके में सोमवार सुबह तक रक्सौल-बीरगंज सीमा से झंडा, डंडा, टेंट सब गायब हो गया. संयुक्त मधेस लोकतांत्रिक मोर्चे में संघीय समाजवादी फोरम नेपाल के अध्यक्ष उपेंद्र यादव, नेपाल सद्भावना पार्टी के अध्यक्ष राजेंद्र महतो, तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष महंथ ठाकुर, मधेसी जनअधिकार फोरम मधेस के नेता प्रो भाग्यनाथ गुप्ता, संघीय सद्भावना पार्टी के अनिल झा जैसे नेताओं ने नाकेबंदी को अपनी रणनीति का हिस्सा माना था. 
पर इससे भारत-नेपाल संबंधों का कितना नुकसान हुआ, इसकी समीक्षा इन नेताओं ने की है? कभी यह सोचा गया कि 1700 किमी की भारत-नेपाल सीमा पर सक्रिय चीनी खुफिया से संबद्ध ‘कन्फ्युशियस सेंटर’ के सदस्य और मदरसों में ‘स्लिपर सेल’ के रूप में छिपे आइएसआइ के लोग माहौल को और बिगाड़ सकते हैं? इसकी ठीक से जांच की जाये, तो ऐसे चेहरे बेनकाब हो जाएंगे. 
 
सवाल यह है कि कोइराला सरकार में कानून मंत्री रहे नरहरि आचार्य ने मधेसी आंदोलनकारियों की दो प्रमुख मांगों- समानुपातिक समावेशी प्रतिनिधित्व और जनसंख्या के आधार पर क्षेत्र का निर्धारण-को उनके अनुरूप संशोधित करने की बात मान ली थी, तो ओली सरकार मधेस नेताओं को बातचीत की मेज पर क्यों नहीं बुलाती? 
 
क्या यह सच नहीं है कि ओली सरकार में बहुत से तत्व धोती बनाम दाउरा सुरूवाल (नेपाल का राष्ट्रीय पोशाक) का विभाजन बनाये रखना चाहते हैं? प्रचंड से अलग हो चुके डा बाबूराम भट्टराई पर आरोप लगाया जा रहा है कि जेएनयू में पढ़े होने के कारण वे तराई परस्त हैं. यह कैसा कुतर्क है?
 
नेपाली समाज और राजनीति में विभाजन का यह विनाशकारी बीज 32 साल पहले जुलाई 1983 में हर्क बहादुर गुरूंग ने बोया था. तब गुरूंग कमीशन ने नेपाल में मंगोल मूल के लोगों का बर्चस्व बढ़ाने, और मधेसी मूल के लोगों का प्रभाव कम करने, के लिए 17 सूत्री सुझाव दिया था. 
 
उस भेदभाव के बरक्स 32 साल तक मधेस मुक्ति के अनहद नाद का असर है कि ठेठ मधेस से देश के प्रथम राष्ट्रपति चुने गये. आज नेपाली संसद में तराई के नेता शान से धोती पहन कर जाते हैं, और भोजपुरी, मैथिली, अवधी, थारू जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में अपनी बात रखते हैं. 
 
यह सच है कि राणा से राजतंत्र और गणतंत्र तक के राजनीतिक सफर में तराई के साथ भेदभाव होता रहा है. मोदी जी नेपाली संविधान के गुलदस्ते में हर रंग के फूल लगाने की बात कहते हैं, तो यह नेपाल को नागवार गुजरता है. शायद मोदी नेपाल का मानस ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं. 
 
‘बागवानी’ कोइराला, प्रचंड, मधेस व पहाड़ के नेता और प्रधानमंत्री ओली कर रहे हैं, तो ‘गुलदस्ता’ उन्हें ही सजाने दीजिए.  लेकिन, क्या प्रधानमंत्री मोदी ने अपने समकक्ष केपी शर्मा ओली से भारतीय युवक की हत्या के बारे में पूछ कर कोई गुनाह कर दिया? ओली सुर्खियां बटोर रहे हैं कि हमने मोदी जी से प्रतिरोध व्यक्त कर दिया है, भारत हमारे मामले में टांग न अड़ाये. 
 
ओली किसकी बोली बोल रहे हैं? जिस नेपाल में मोदी-मोदी के नारे से हमारे प्रधानमंत्री फूले नहीं समाते थे, वहां भारत के विरुद्ध विषैली हवा बह रही है. क्या मोदी जी की ‘पड़ोस कूटनीति’ पटरी से उतर रही है? यदि यह सही है, तो इसे ठीक करने के रास्ते शीघ्र तलाशने होंगे.

 

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