भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से चाहते हैं मुक्ति तो जया एकादशी व्रत करे!
भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्ति चाहते हैं तो जया एकादशी व्रत सर्वोत्तम माना गया है। यह व्रत क्यों किया जाता है, इसकी शुरूआत कैसे हुई? इन दोनों ही प्रश्नों के उत्तर एक पौराणिक कथा में मिलते हैं। पुराणों के अनुसार सदियों पहले नंदन वन में उत्सव चल रहा था। यह उत्सव बड़ा ही भव्य था। यहां देव, सिद्ध संत और उस समय के दिव्य मानव मौजूद थे।
वहां गंधर्व मधुर गायन के साथ सुंदर अप्सराएं नृत्य कर रही थीं। उस समय माल्यवान नाम के गंधर्व का गायन और पुष्पवती नाम की अप्सरा का नृत्य चल रहा था। नृत्य के दौरान ही गंधर्व को देख अप्सरा उस पर मोहित हो गई और सभा की मर्यादा भंग कर दी।
इस घटनाक्रम को देख इंद्र क्रोधित हो गए। उन्होंने दोनों को शाप दिया कि, ‘तुम दोनों स्वर्ग के सुख से वंचित रहकर पृथ्वी लोक पर पिशाच के रूप में निवास करोगे।’ इंद्र के शाप के बाद दोनों ने वर्षों तक पिशाच योनि में दुःख भोगे। एक दिन जब माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी थी तब वह दोनों अत्यंत दु:खी थे। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे।
ठंड इतनी ज्यादा थी कि दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गई। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गई और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया।
सर्वकामना पूर्ति और भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्ति चाहते हैं तो जया एकादशी व्रत सर्वोत्तम माना गया है। यह व्रत माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 28 अगस्त, रविवार के दिन है।