अद्धयात्म

भूलकर भी न करें ऐसे काम, वर्ना मौत के बाद बन जाएंगे प्रेत

ghost1-1440573355एजेन्सी/  अतृप्त इच्छाएं और बुरे कर्म दो ऐसे बिंदु हैं जो मनुष्य को पतन की ओर लेकर जाते हैं। ये न केवल इस जन्म में, बल्कि जीवन के बाद भी मुक्ति की राह में बाधा बनते हैं। विभिन्न धर्मों में एक ऐसी शक्ति का उल्लेख आता है जो अशुभ कर्मों से उत्पन्न होती है। कोई इसे शैतान कहता है, कहीं इसे प्रेत कहा जाता है।

दुष्ट आत्माओं और भूत-प्रेतों की कथाएं यह बताती हैं कि पाप से इस जीवन तथा परलोक के जीवन का नाश होता है। अन्य धर्मों में भी जिन्न के साए का जिक्र यह बताता है कि सिर्फ मनुष्य का जीवन ही एकमात्र जीवन नहीं है।

सवाल है कि कोई मनुष्य भूत-प्रेत योनि को क्यों प्राप्त होता है? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिसकी इच्छाएं अतृप्त रह जाती हैं, वे उसे शांति प्राप्त करने में बाधक बनती हैं। यहीं से शुरुआत होती है एक ऐसी अनुभूति की जो उसे कभी तृप्त नहीं होने देतीं। ऐसे में अतृप्त आत्मा भटकती रहती है। 

शास्त्रों तथा विभिन्न धर्मग्रंथों में इसे प्रेत योनि कहा जाता है। किसी की मृत्यु के बाद आत्मा के लिए शांति प्रार्थना तथा अनुष्ठान इसलिए किए जाते हैं, ताकि देह त्याग के बाद उसकी समस्त इच्छाओं का अंत हो जाए। जिसकी इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं, वे उसे मृत्यु के बाद भी भटकने को मजबूर करती हैं।

इसके अलावा शास्त्रों में कहा गया है कि प्रेत योनि प्राप्त होने का एक मुख्य कारण हैं -कर्म। कर्मों का प्रभाव जीवन के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़ते। हर धार्मिक ग्रंथ सत्कर्म की शिक्षा और बुरे कामों से दूर रहने की हिदायत देता है। दुष्ट प्रवृत्ति, लालच, बुरे कामों की ओर आकर्षण, किसी निर्धन का हक मारना, सदैव बुरों विचारों पर चिंतन करने रहना जैसे अनेक दुर्गुण हैं जो मनुष्य की मुक्ति में बाधक हैं और उसे प्रेत योनि की ओर लेकर जाते हैं।

श्रीमद्भागवत में एक कथा के अनुसार जब गोकर्ण तपस्या के बाद घर वापस आया तो वह स्थान सुनसान था। रात को उसे वहां अजीब किस्म की आवाजें आने लगीं। पूछा- तुम कौन हो? उसने कहा, मैं तुम्हारा भाई धुंधकारी हूं। मैं बहुत कष्ट भोग रहा हूं। भूख लगती है तो कुछ खा नहीं पाता, प्यास लगती है तो पानी नहीं पी सकता। मुझे जलन महसूस होती है। मैं प्रेत बन चुका हूं। मेरी मदद करो।

गोकर्ण ने कहा, तुम्हारा तो पिंडदान हो चुका है। फिर प्रेत कैसे बन गए? प्रेत ने बताया, वह अपने माता-पिता को बहुत कष्ट देता था, अनैतिक कर्म करता था। उसके बुरे बर्ताव से परेशान होकर मां ने आत्महत्या की थी। 

बाद में गोकर्ण ने भागवत कथा से उसकी शांति करवाई। इन कथाओं से यह समझना चाहिए कि बुरे कर्म मृत्यु के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते, वे प्रेत योनि का कारण बनते हैं। अत: स्वयं का कल्याण चाहने वाले को ऐसे कार्यों से सदैव दूर रहना चाहिए।

Related Articles

Back to top button