भोजशाला को अयोध्या बनाने की कोशिश?
सरिता अरगरे
एक तरफ जहाँ देश विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ने को बेकरार है, तो दूसरी तरफ कौम और धर्म के नाम पर कुछ ऐसे भी संगठन हैं जो धार्मिक उन्माद पैदा करने की खुराफ़ात में लगे हैं। मंदिर-मस्जिद के विवाद ने अयोध्या को साम्प्रदायिकता का प्रतीक बना दिया है। अब यही हालात मध्य प्रदेश के धार जिले की भोजशाला को लेकर बन रहे हैं। अयोध्या का बाबरी मस्जिद ढाँचा और काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद धार की भोजशाला भी अब धार्मिक उन्माद का केन्द्र बिन्दु बनती जा रही है। सियासी वजहें राजा भोज की नगरी धार को दूसरी अयोध्या बनाने पर आमादा हैं। आस्था और श्रद्धा के उत्सवों पर सियासी रंग कुछ इस तरह चढ़ने लगा है कि अब भगवान भी पुलिसिया पहरे में कैद हो कर रह गए हैं। धार की भोजशाला में यूँ तो हर बार वसंत पंचमी पर तनाव का माहौल बनता है और अगर वसंत पंचमी के दिन जुमा पड़ जाए तो सियासी चालों की रफ्तार और तेज़ हो जाती है। संयोग से इस बार शुक्रवार के दिन वसंत पंचमी पड़ी। लिहाज़ा प्रदेश सरकार के सामने ज्ञान और विवेक की देवी की आराधना का पावन पर्व नई चुनौती बन कर आया। वसंत पंचमी को पूजा और नमाज को लेकर शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में दिन भर तनावपूर्ण हालात बने रहे। इस मामले में किसी तरह के विवाद की आशंका को लेकर भोजशाला को छावनी में बदल दिया गया। गौरतलब है कि भोजशाला को लेकर हिंदू और मुस्लिम समाज में पहले भी विवाद रहा है। हिंदू भोजशाला में देवी सरस्वती का मंदिर होने का दावा करते हैं, तो वहीं मुस्लिम समाज इसे मस्जिद बताता रहा है। इस विवाद के बाद यहाँ स्थायी तौर पर मंगलवार के दिन पूजा और शक्रवार को नमाज की व्यवस्था कर दी गई है। वर्तमान में भोजशाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है।
इस बार वसंत पंचमी के दिन धार की भोजशाला में पूजा और नमाज एक साथ कराना प्रदेश सरकार के लिए खासा सिरदर्द बना। सरस्वती की आराधना के पर्व की तैयारी में लगे धार की बड़ी चिंता भोजशाला को लेकर रही। दिन भर की पूजा के माँग को लेकर आरएसएस और हिंदू संगठनों के कड़े तेवरों के चलते राज्य सरकार की साँसें फ़ूली रहीं। हिंदू संगठन 1 से 3 के बीच भोजशाला खाली नहीं करने की जिद पर अड़े थे, नहीं तो परिसर के बाहर ही पूजा करने की ठान कर बैठे थे। उन्होंने परिसर के बाहर हवन कुंड बना कर दिन भर पूजा-अर्चना कर अपने इरादे जाहिर कर दिए कि वे इस मुद्दे पर एक कदम भी पीछे हटने वाले नहीं हैं। उधर, दोपहर 1 से 3 बजे के बीच शांतिपूर्ण तरीके से नमाज हो सके इसके लिए प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद रहा।
एएसआई ने नमाज़़ के लिए दो घंटे का ब्रेक निर्धारित किया था। इसी व्यवस्था को लेकर हिंदूवादी संगठन नाराजगी जाहिर कर रहे थे। उनका कहना था कि वे नमाज़ के विरोध में नहीं हैं, पर यज्ञ में गतिरोध या विराम नहीं हो सकता। हिंदूवादी संगठन से नाता रखने वाले गोपाल शर्मा का कहना है कि वसंत पंचमी के दिन निर्विघ्न पूजा संपन्न कराने का इंतजाम करना सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है। श्री शर्मा कहते हैं, ”भोजशाला सरस्वती माँ का मंदिर है, जिसकी मूर्ति मुगलकाल में खंडित कर दी गई थी।” वो कहते हैं, ”यह हिंदू संस्कृति की पहचान है। हम नमाज़़ का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन आप समझिए कि यज्ञ तो पूर्णाहूति के बाद ही संपन्न होता है।” उनके अनुसार, ”बीच में ब्रेक हमें मंजूर नहीं है। जहाँ तक केंद्र सरकार या एएसआई के आदेश का सवाल है तो राज्य सरकार उसे मानने के लिए कतई बाध्य नहीं है।”
उधर धार के काज़ी वक़ार सादिक भोजशाला पर मुसलमानों के दावे और वहाँ बरसों से की जा रही नमाज़़ का हवाला देते हुए कहते हैं, “यह कमाल मौला मस्जिद है और 1305 से इसका उपयोग मस्जिद के तौर पर हो रहा है।” वे कहते हैं, “हर जुमे को चार से पाँच हज़ार मुसलमान नमाज़़ पढ़ते हैं। धार के लोगों में भाईचारा है। लेकिन बाहर से आए मुट्ठी भर लोग तनाव फैलाने में लगे हैं। हमने कहा है कि प्रशासन को एएसआई के आदेश का पालन करवा कर शांतिपूर्ण माहौल में नमाज़़ की व्यवस्था करना चाहिए।”
लम्बी उम्र धार में गुजार चुके अनुभवी लोग इस पूरे विवाद पर हैरत जताते हुए बताते हैं कि 20 साल पहले तक सब कुछ ठीक था। स्थानीय लोग कहते हैं, ”भोजशाला के कारण कभी ऐसा तनाव नहीं देखा गया, जैसा बीते कुछ वर्षों में बनता रहा है। बचपन में हम तो वहाँ खेलने जाते थे। कभी कोई बात दिमाग में नहीं रही।”
एक दिलचस्प बात ये भी है कि राज्य सरकार के सालाना कैलेंडर में इस बार वसंत पंचमी 13 फरवरी दिन शनिवार की बताई गई है और ऐच्छिक अवकाश भी घोषित किया गया है। ज़ाहिर है अगर सरकारी कैलेंडर के मुताबिक वसंत पंचमी मनाई जाती तो कोई विवाद ही नहीं होता।
छावनी में बदली भोजशाला
वसंत पंचमी की तिथि के लगभग एक पखवाड़े पहले से ही धार में तनाव बढ़ता देख प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए बड़ी संख्या में रैपिड एक्शन फोर्स, केंद्रीय सुरक्षा बल के अलावा स्थानीय पुलिस बल को तैनात किया गया था। वहीं 12 पुलिस अधीक्षक, 25 अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, 85 पुलिस उप अधीक्षक, 135 थाना प्रभारी, पुलिस प्रशिक्षण केंद्र के 2200 जवान, 250 बाउंसर और महिला पुलिस बल की तैनाती की गई।
पहले भी हुआ विवाद
वर्षों से चले आ रहे विवाद के बीच 2003, 2006 और 2013 को वसंत पंचमी शुक्रवार को होने के कारण विवाद और तनाव की स्थितियाँ बनीं। 2003 में तो तनाव इस हद तक बढ़ गया कि दोनों समुदाय आमने-सामने आ गए और हिंसक झड़पों ने धार को सुर्खियों में ला दिया। 2003 में मंगलवार को फिर पूजा करने की अनुमति दी। पर्यटकों के लिए भी खोला गया। 18 फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैली थी। शुक्रवार को वसंत पंचमी होने से विवाद हुआ। बाद में यही स्थिति 2006 में भी बनी और विवाद हुए। 14 फरवरी 2013 को भी शुक्रवार को वसंत पंचमी आने से विवाद की स्थिति बनी। तत्कालीन आईजी अनुराधा शंकर, कलेक्टर सीबी सिंह व एसपी चंचल शेखर की अगुवाई में कड़ी व्यवस्था हुई। नमाज के समय भोजशाला खाली करने को लेकर विवाद हुआ तो लाठीचार्ज करना पड़ा।
एएसआई द्वारा जारी पूजा और नमाज का समय
इस मर्तबा एएसआई ने एक आदेश जारी कर कहा कि 12 फरवरी शुक्रवार को दोपहर एक से तीन बजे तक नमाज होगी। वहीं पूजा के लिए सुबह से दोपहर 12 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे बाद का समय तय किया गया। भोज उत्सव समिति ने हर बार की तरह इस मर्तबा भी पूजा का कार्यक्रम सूर्योदय से सूर्यास्त तक का जारी किया। वर्ष 2013 में प्रशासन ने पुरातत्व विभाग द्वारा जारी किए गए कार्यक्रम के तहत सख्ती दिखा कर एक बजे पूजा बंद करा दी थी, लेकिन वर्ष 2006 की वसंत पंचमी पर पूजा और नमाज साथ-साथ हुई थी। हालांकि बाद में असामाजिक तत्वों ने उत्पात मचाने की कोशिश की थी, लेकिन इस बार प्रशासन ज्यादा अलर्ट है।
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी का मुद्दा लें या फ़िर जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाजी सरीखे विवाद पर नजर डालें, तो पाएँगे कि राजनीतिक हठधर्मिता और दूरगामी दृष्टि की कमी के चलते स्थानीय घटनाएँ राष्ट्रीय विमर्श के केन्द्र में आ गई हैं और पूरा देश असल मुद्दों से भटक कर अशांति तथा अलगाव की आग में झुलस रहा है। सियासी नफ़े-नुकसान नीयत से हो रहे कामों का खामियाजा समूचा देश भुगत रहा है। समय पर सही तरीके से कदम नहीं उठाने से सामाजिक समरसता में खटास आती दिखाई पड़ रही है। ऐसे में भोजशाला के संवेदनशील मुद्दे को जिस सूझबूझ और सामंजस्य से शांतिपूर्वक निपटाया गया, उसमें प्रदेश सरकार के नेतृत्व के रणनीतिक और राजनीतिक कौशल की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। सूबे के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने राजनीतिक चतुराई से इस गंभीर मसले को “पानी नहीं, दूध के छींटे” डाल कर शांत किया है, वो वाकई काबिले तारीफ़ है। साथ ही कहना होगा कि वे बड़ी ही सावधानी और सधे हुए कदमों से दिल्ली की गद्दी की ओर बढ़ रहे हैं, पूरे दमखम के साथ।
महमूद खिलजी और मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा
पंद्रहवीं सदी में खिलजी सल्तनत ने मालवा में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। महमूद खिलजी ने 1456 में भोजशाला के अंदर ही मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा बना दरगाह का निर्माण करा दिया। दरगाह बनने के बाद 100 साल तक यहाँ कोई विवाद नहीं हुआ। धार रियासत ने 1909 में धार दरबार के गजट में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित किया और यह पुरात्तव विभाग के अधीन हो गई। 1935 में परिसर में नमाज की अनुमति दी गई। नमाज की अनुमति के बाद भी माहौल सौहाद्र्रपूर्ण रहा।
साल 1992 में बाबरी मस्जिद विवाद के बाद भोजशाला के मुद्दे को हवा देने की कोशिश की गई। इस चिंगारी ने धीरे-धीरे आग पकड़ ली। भोजशाला पर विवाद की शुरुआत 1995 में हुई। उस दौरान मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। 1997 में कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। हिंदुओं को वसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार को दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की छूट दी। यह व्यवस्था जुलाई 1997 तक जारी रही। फरवरी 1999 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया।
क्या है विवाद
दरअसल धार की भोजशाला भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग (एएसआई) के अधीन एक ऐसा स्मारक है, जिस पर हिंदू और मुसलमान दोनों अपना दावा जताते रहे हैं। हिंदू इसे ज्ञान की देवी सरस्वती का मंदिर बताते हैं और मुसलमान कमाल मौला मस्जिद। आम दिनों में भोजशाला में हर मंगलवार पूजा की अनुमति है और हर जुमे को नमाज़़ की। बाकी दिनों में सभी के लिए भोजशाला खुली रहती है। विवाद को थामने की गरज से एएसआई ने आदेश निकाला कि दोपहर 1 बजे से 3 बजे तक नमाज़ होगी और सूर्योदय से दोपहर 12 बजे व फिर 3.30 बजे से सूर्यास्त तक पूजा की अनुमति रहेगी। इस फैसले को उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी सही ठहराया। बीते एक माह से धार व आसपास के इलाके में तनाव की स्थिति बनती रही है, क्योंकि दोनों ही समुदाय के लोग परस्पर समझौते पर नहीं पहुँच पाए।
क्या है भोजशाला का इतिहास
धार एक ऐतिहासिक नगरी है। यहाँ परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया। राजा भोज वीणावादनी देवी सरस्वती के परम भक्त थे। उन्होंने 1034 में धार नगर में सरस्वती सदन की स्थापना की। इस सदन में माँ सरस्वती की आराधना के साथ-साथ बच्चों को पढ़ाने के लिए एक विद्यालय का निर्माण करवाया गया था। इसी विद्यालय और राजा भोज को मिला कर सरस्वती सदन का नाम भोजशाला पड़ा। बाद में यहाँ माँ सरस्वती (वाग्देवी) की प्रतिमा स्थापित की गई। वाग्देवी की प्रतिमा भोजशाला के नजदीक खुदाई के दौरान मिली थी। इतिहासकार बालकृष्ण पंजाबी के अनुसार, यह प्रतिमा 1875 में खुदाई में निकली थी। 1880 में ‘भोपावर’ का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे अपने साथ लंदन ले गया। वहाँ के एक म्यूजियम में ये पाषाण प्रतिमा आज भी रखी हुई है, जिसे भारत वापस लाने के लिए कई बार कोशिश की जा चुकी है।
भोजशाला को 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर पता चलता है कि कुछ लोगों द्वारा भोजशाला को मस्जिद बताए जाने पर धार स्टेट ने ही 1935 में परिसर में शुक्रवार को जुमे की नमाज पढऩे की अनुमति दे दी। तभी से यह व्यवस्था चली आ रही, कई बार विवाद बढऩे पर कई वर्षों के लिए नमाज और पूजा का दौर भी थमा रहा। वर्ष 2003 से पूजा और नमाज का सिलसिला लगातार चला आ रहा है।
भोजशाला में सिर्फ पूजा करने की ही इजाजत दी जाए
ऑल इंडिया राष्ट्रवादी मुस्लिम आंदोलन के सदस्य मोहम्मद जाकिर गौरी द्वारा न्यायाल में दाखिल की गई जनहित याचिका इस विवाद को सिरे से खत्म करने की ओर बढ़ने वाले सकारात्मक कदम की तरह देखा जाना चाहिए। इसमें माँग की गई कि भोजशाला में सिर्फ पूजा करने की ही इजाजत दी जाए। मुस्लिम समुदाय के इमाम अबुदाउद की किताब (ग्रंथ) हदीस के अनुसार ऐसे किसी भी स्थान पर नमाज अता नहीं की जा सकती, जहाँ पर बुत (मूर्ति) पूजा या हवन-पूजन किया जाता है। श्री गौरी ने आवेदन में लिखा है कि भोजशाला में सैकड़ों वर्षों से हवन-पूजन हो रहा है, पुरातत्व विभाग ने वहां वर्षों पुरानी वाग्देवी की मूर्ति होने की बात भी कही है। भोजशाला के खम्बों पर बने हिंदू-देवी देवताओं के चित्र भी इसका उल्लेख करते हैं कि वहाँ मूर्ति पूजा की जाती रही है। इस्लाम के अनुसार भोजशाला में यदि कोई मुस्लिम नमाज अता करता भी है, तो वह कबूल नहीं हो सकती। आवेदन में भोजशाला के अस्तित्व से जुड़े कुछ फोटो भी प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यह संस्कृत की पाठशाला थी।