भोपाल के नेत्र विज्ञान संस्थान पर संकट!
भोपाल| मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान पर संकट के बादल छाने लगे हैं, क्योंकि राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने पूर्व में तय प्रावधानों को दरकिनार करते हुए गांधी चिकित्सा महाविद्यालय में क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान के रहते अलग से नेत्र रोग विभाग फिर से बना दिया है।
नेत्र रोग विभाग
दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 1984 में अंधत्व निवारण कार्यक्रम के तहत देश के जिन छह प्रमुख स्थानों पर क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान की स्थापना की प्रक्रिया शुरू की थी, उसमें भोपाल का गांधी चिकित्सा महाविद्यालय भी एक था। यह संस्थान नेत्र रोग विभाग को उन्नत करने के मकसद से स्थापित किए गए थे। वर्तमान में हर राज्य में एक क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान है।
उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि वर्ष 1995 में राज्य सरकार ने गांधी चिकित्सा महाविद्यालय में कार्यरत नेत्र विभाग को ही क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान में बदलने का फैसला लिया था। इसमें विभाग के कर्मचारियों को ही सहमति के आधार पर संस्थान में भेजा गया था। यह केंद्र सरकार से मिलने वाली आर्थिक सहायता से चलता है।
यहां आधुनिक उपकरणों से लेकर शोध की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। अब पूर्व में लिए गए फैसले में बदलाव करते हुए राज्य सरकार ने संस्थान के रहते एक बार फिर नेत्र विभाग शुरू कर दिया है।
सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता ऐश्वर्य पांडे ने चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव को शिकायत कर संस्थान के तमाम नियमों को दरकिनार कर कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए नेत्र विभाग शुरू करने का आरोप लगाया है।
पांडे ने आईएएनएस से कहा कि केंद्रीय स्तर के कुछ नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इस संस्थान को दूसरे राज्य ले जाना चाहते हैं, इसी के चलते पूर्व में तय नियमों को दरकिनार कर फिर से नेत्र विभाग शुरू किया गया है।
नेत्र विभाग को नेत्र संस्थान में बदलने के समय तय किए गए नियमों का हवाला देते हुए पांडे ने बताया कि संस्थान में जाने वाले कर्मचारी की विभाग में वापसी नहीं होगी, यह प्रावधान था। उसका स्थानांतरण भी किसी चिकित्सा महाविद्यालय में नहीं होगा, वह संस्थान का स्थायी कर्मचारी हो जाएगा, संस्थान का सर्विस कॉडर भी होगा। मगर कुछ लोगों ने पहले संस्थान में सेवाएं दीं और लाभ की खातिर फिर चिकित्सा महाविद्यालय में तबादला करा लिया और अब नेत्र विभाग बनाकर वहां पदस्थापना करा रहे हैं।
राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री शरद जैन से जब संस्थान के समानांतर नेत्र विभाग शुरू करके संस्थान को अक्रियाशील बनाने और उसे दूसरे राज्यों में ले जाने की चल रही कोशिशों पर सवाल किया गया, तो उनका कहना था, “कोई कैसे ले जाएगा, इस संस्थान को। फिर भी मैं विस्तृत जानकारी जुटाऊंगा कि संस्थान के रहते नेत्र विभाग क्यों शुरू किया गया है।”
गांधी चिकित्सा महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. उल्का श्रीवास्तव ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए स्वीकार किया है कि महाविद्यालय में नेत्र विभाग शुरू किया गया है और यह शासन के निर्णय के आधार पर हुआ है।
वहीं मप्र चिकित्सा अधिकारी संघ के संरक्षक डॉ. ललित श्रीवास्तव का कहना है कि यह संस्थान भोपाल की शान है, केंद्र सरकार से मिलने वाली मदद के चलते यहां अध्ययन करने वाले छात्रों को शोध के बेहतर अवसर मिलते हैं। इतना ही नहीं, यहां से पढ़ाई करने वालों को देश के अन्य हिस्सों में सम्मान की नजर से भी देखा जाता है। साथ ही मरीजों को बेहतर सुविधाएं मिलती हैं।
क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान के रहते हुए चिकित्सा महाविद्यालय में नेत्र विभाग को शुरू किए जाने की जरूरत क्यों पड़ी, यह सवाल उठना लाजिमी है, क्योंकि केंद्र सरकार ने नेत्र विभाग के स्थान पर यह संस्थान बनाया था।
नेत्र विभाग शुरू करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग से किसी तरह की अनुमति भी नहीं ली है, इससे संस्थान को दूसरे राज्य ले जाने की बात को बल मिलता है।