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मन्नत पूरी होने पर दशहरा में यहां चढ़ाई जाती है घोड़ों की प्रतिमाएं

hardev_lala_temple_balod_2016108_104136_08_10_2016बालोद, ब्यूरो। बालोद से 30 किमी दूर घीना डेम के पास बने हरदेव लाल मंदिर में नवरात्रि के बाद वाले मंगलवार को आठ गांव के ग्रामीण देव दशहरा में जुटेंगे। जहां जिले की अनोखी दशहरा मनाई जाएगी। हालांकि इस बार इनका देव दशहरा विजयादशमी के दिन ही पड़ रहा है।

ग्राम पांड़े डेंगरापार के पांड़े जाति के ग्रामीणों के लिए बाबा हरदेव लाल ही ईष्ट देव है। यहां तीन सौ साल से रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। अलग से विजया दशमी नहीं मनाते जैसा अन्य गांव में मनाया जाता है। यहां के लिए हरदेव लाल का देव दशहरा ही प्रमुख त्योहार है। जहां ग्रामीण मनोकामना पूरी होंने पर घोड़े की प्रतिमा चढ़ाते है। मंदिर की मान्यता के कारण बालोद सहित अन्य जिले से भी लोग घोड़ा चढ़ाने के लिए यहां आते हैट।

नईदुनिया ने देव दशहरा व हरदेलाल से जुड़ी खास तथ्यों का पता लगाया। ग्रामीणों ने एतिहासिक बातों का उल्लेख करते हुए अपनी भक्ति भावना प्रकट की। ड़ेंगरापार के गौतम साहू, राणु साहू, सोमन सिंह ने कहा कि लगातार मंदिर में भीड़ जुट रही है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की भी मांग की जा रही है।

कौन थे हरदेवलाल आज तक पता नहीं

हरदेव लाल असल में कौन थे। आज तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिला। मंदिर के बैगा धनसिंह नेताम, रिखीराम नेताम ने बताया कि बुजुर्गों से सुनी कहानी के अनुसार तीन सौ साल पहले एक व्यक्ति घोड़े में सवार होकर आया था। जिसे ग्रामीण चमत्कारी मानते थे। उसका नाम हरदेव लाल था। विक्षिप्त व अन्य परेशानी से पीड़ित लोगों की वे इलाज करते थे। अचानक वे गायब हुए। उनके जाने के बाद उनकी याद में ग्रामीणों ने मंदिर बनाया। पहले झोपड़ीनुमा मंदिर था। अहिबरन नवागांव के रूपचंद जैन ने दान राशि देकर मंदिर बनवाया।

हर साल चढ़ाई जाती हैं दो सौ से तीन सौ प्रतिमाएं

ग्रामीण हर साल दो सौ से तीन सौ घोड़े मंदिर में चढ़ाते हैं। हरदेव लाल की सवारी घोड़ा थी। इस कारण ग्रामीण घोड़ा चढ़ाते हैं। अंग्रेज शासन काल में 1876 में घीना डेम का निर्माण हुआ। उसके पहले से मंदिर का अस्तित्व है। मंदिर समिति के उपाध्यक्ष व घीना निवासी डाल चंद जैन ने बताया कि लोगों की आस्था के कारण आज दूर दूर से ग्रामीण घोड़ा चढ़ाने के लिए आते हैं।

इन ग्रामों के लिए प्रमुख पर्व

नवरात्रि के बाद आने वाले पहले मंगलवार को इस मंदिर परिसर में देव दशहरा मेला लगता है। तीन सौ साल से आयोजन हो रहा है। जहां डेंगरापार, हड़गहन, घीना, अहिबरन नवागांव, कसहीकला, लासाटोला, गड़इनडीह परसवाणी के आठ हजार से अधिक ग्रामीण हर साल दशहरा में एकत्रित होते हैं। जिन लोगों की मन्नत पूरी हुई है। वे उपहार स्वरूप हरदेव लाल को घोड़ा प्रतिमा चढ़ाते हैं। आठ गांव के लिए ये देव दशहरा प्रमुख पर्व है।

इस तरह होता है आयोजन

सभी गांव से घोड़ा चढ़ाने वाले ग्रामीण कतार में मंदिर पहुंचते है। डांग डोरी भी लाया जाता है। सेवा गीत चलती है। मंदिर परिसर में मेला लगता है। भीड़ इतनी होती है कि रात 10 बजे तक प्रतिमा चढ़ाने का सिलसिला चलता है। दूर दूर से आने वाले ग्रामीण एक दिन पहले डेंगरापार के बैगा के घर या अपने परिचित के पास प्रतिमा पहुंचाते हैं। जिसे मेला के दिन वे खुद या दूसरे के माध्यम से जंवारा की तरह सिर में रखकर मंदिर में चढ़ाने के लिए आते हैं।

कुछ ग्रामीण जिनकी मन्नतें पूरी हुईं

– घीना के धिराजी राम साहू ने पोते की मन्नात मांगी थी। उनके घर पोते का जन्म हुआ। तीन साल से प्रतिमा चढ़ा रहे हैं।

– घीना के ही रेवाराम तारम ने संतान सुख की कामना की थी। वह पूरी हुई।

– सुंदरा (राजनांदगांव) की फूल बाई सिन्हा ने संतान सुख मांगा था। उसे वह सुख मिला। वह भी दो साल से प्रतिमा चढ़ा रही है।

– बोरगहन के फूलबाई ठाकुर ने स्वास्थ्य लाभ के लिए मन्नत मांगी थी। आए दिन वह बीमार रहती थी। जो अब बिल्कुल स्वस्थ हो गई है। वह भी मेले में घोड़ा चढ़ाने आती है।

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