मुंबई की कातिल लोकल ट्रेनें
आज किसी भी मुम्बई निवासी से यह सवाल किया जाए की उसे सबसे ज्यादा डर किसी आतंकी हमले, प्राकृतिक आपदा या बम ब्लास्ट या लोकल ट्रेन से लगता है तो सर्वाधिक लोगों का जवाब लोकल ट्रेन ही होगा। लोकल ट्रेनों में भीड़ से होने वाली मौतें आज सबके दिमाग में घर कर गयी हैं पर इसका विकल्प न होने की वजह से सभी को मजबूरन इसका उपयोग करना ही पड़ रहा है। हालात इस कदर गंभीर हैं की जब एक मुम्बई निवासी अपने घर से ऑफिस या अपने कार्यस्थल के लिए निकलता है और जब तक वह ऑफिस न पहुंच जाये और फोन करके अपने सकुशल होने की खबर अपने परिवारजन को न दे दे तब तक उनकी चिंता बनी रहती है और शाम को भी वह जब तक घर न पहुंच जाए यह चिंता जारी ही रहती है।
-कप्तान माली, मुम्बई
मुम्बई के लोकल ट्रेनों में सफर करने वालों के लिए 29 सितम्बर की सुबह खास थी क्योंकि अगले दिन दशहरा था और लगातार तीन दिन छुट्टियां थीं। जैसा की हर वर्ष दशहरे के एक दिन पूर्व होता है वैसे ही उस दिन भी सभी लोकल ट्रेनों को फूल मालाओं से सजाया गया था। रोजाना के यात्रीगण पारंपरिक पोशाक पहने (कुर्ता पायजामा) आपस में मिठाइयां और अन्य पकवान बांटकर खुशियां मनाते हुए अपने-अपने ऑफिस पहुंच रहे थे और कुछ को पहुंचे एक से दो घण्टे बीत चुके थे। तभी अचानक सबके मोबाइल फोन के व्हाट्सएप्प पर पश्चिम रेलवे के एल्फिंस्टन स्टेशन के रेल पादचारी पुल पर भगदड़ मचने की खबरें आनी शुरू हुईं जो शुरुवात में 3 मौतों के आंकड़े से शुरू होते हुए कुछ ही पलों में 22 तक पहुंच गई। अगले दिन गंभीर रूप से घायल की मृत्यु ने आंकड़े को 23 तक पहुंचा दिया।
हादसे के कारण को लेकर कई थ्योरी सामने आ रही हैं पर असलियत में क्या हुआ था वह अंतिम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा। आसपास के रहवासियों के अनुसार उस दिन अचानक तेज बारिश के कारण कई लोग इस संकरे पुल पर रुक गए और उसी दौरान तीन चार ट्रेनें आ गईं जिनके यात्री भी जमा होने लगे। अचानक इस बढ़ी हुई भीड़ के बढ़े हुए दबाव के कारण कुछ लोग फिसल कर गिरे और उसके बाद उनके पीछे वाले उनके ऊपर गिरने लगे। हालांकि प्रत्यक्षदर्शियों ने जो रेल कर्मचारी थे उन्होंने स्टेशन मास्टर को फोन करके भीड़ बढ़ने की पूर्व सूचना दी थी परंतु समय पर सुविधा नहीं पहुंची नहीं तो यह दुर्घटना रुक सकती थी।
वहीं यह भी खबरें आ रही हैं कि जिस वक्त यह भीड़ थी उसी समय किसी ने कहा “फूल गिरा” जिसे कुछ लोगों ने यह सुना कि “पुल गिरा”” जिसके चलते भगदड़ मची और लोगों की जानें गयीं। अगले दिन दशहरा था और पास में ही थोक फूल बाजार है जहां से पूरे मुम्बई और आस-पास के इलाकों के फूल व्यवसायी फूल खरीदने आते हैं। एल्फिंस्टन के इस पुल के समांतर 6.75 करोड़ रूपये की लागत से एक नया पुल बनाये जाने का आदेश तात्कालिक रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने वर्ष 2015 में दिया था, पर लालफीताशाही के चलते यह बन न सका और 23 जिंदगियों को लील लिया। ऐसा नहीं है की रेल विभाग को इस दुर्घटना की भनक नहीं लगी हो क्योंकि करीब दो वर्षों से रोजाना यात्री इस पुल पर हादसा होने की चेतावनी और कदम उठाने की गुजारिश ट्वीट और पत्रों के द्वारा उठा रहे थे जिसमे सुरेश प्रभु को भी चेताया गया था परन्तु न रेल मंत्रालय जागा न ही स्थानीय प्रशासन। रेल मंत्री पियूष गोयल जो उस दिन शहर में कई नयी लोकल रेल सेवाओं के उद्घाटन के लिए उपस्थित थे ने अपना कार्यक्रम रद्द किया और अगले ही दिन रेलवे बोर्ड के सभी अधिकारियों की एक बैठक मुंबई में की। एल्फिंस्टन का इलाका पहले कपड़ा मिलों का गढ़ था जहां सैकड़ों छोटी-बड़ी मिलें चला करती थीं और इनके बंद होने के बाद यह इलाका गगनचुम्बी रिहाइशी इमारतों और कॉर्पोरेट केंद्र के रूप में तब्दील हो गया जहां पर रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं जिनमे से ज्यादातर एल्फिस्टन और करी रोड स्टेशनों का इस्तेमाल करते हैं। एल्फिंस्टन स्टेशन दादर के बाद दूसरा स्टेशन है जो मध्य रेलवे के परेल स्टेशन से जुड़ता है इसलिए इस पुल पर अतिरिक्त भीड़ हर वक्त होती है। यहां पर ही देश के सभी मीडिया हाउसेस के मुंबई दफ्तर और स्टूडियो भी हैं।
लाशों पर राजनीति
दुर्घटना के कुछ ही घण्टों में राज्य और केंद्र की राजनीति लाशों पर रोटियां सेंकने के लिए बयानबाजी में लग गईं। जहां महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे ने अगले ही दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की घोषणा कर दी और मुम्बई में बुलेट ट्रेन के एक भी ईंट रखने न देने की धमकी दे दी। इसके साथ ही अपने चिर-परिचित परप्रांतियों के खिलाफ भी यह बयान दिया कि यह घटना उनके शहर में भीड़ की वजह से हुआ है। तो वहीं शिवसेना ने केंद्र को आईना दिखाते हुए यह कहा कि केंद्र सरकार को पहले लोकल ट्रेन को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि बुलेट ट्रेन को। शिवसेना के नेताओं ने केईएम अस्पताल जहां पर सारे मृतकों और घायलों को भर्ती किया गया था के पोस्टमॉर्टम विभाग के डॉक्टरों को इसलिए पीट दिया क्योंकि उन्होंने मृतकों के माथे पर पहचान के लिए नंबर लिख दिए थे जिसके फ़ोटो बाद में वायरल हो गए जबकि डॉक्टरों का कहना था कि यह एक साधारण प्रक्रिया है। कई वर्षों से मुम्बई लोकल के विकास सम्बन्धित योजनाओं के पास होने के बावजूद रेलवे और राज्य सरकार की उदासीनता के चलते हुए इस घटना के बाद सत्ता पक्ष भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं को संवेदनशील होना चाहिए था लेकिन हुआ इसके उलट। सबसे पहले इस दौरान रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा का विवादित बयान आ गया कि यह रेल दुर्घटना नहीं है क्योंकि रेल का पुल नहीं टूटा था। यह लोगों की ज्यादा भीड़ के वजह से हुआ हादसा है। भाजपा के स्टार सांसद किरीट सोमैया जो विपक्ष में रहते हुए हर स्टेशन पर इंची टेप लेकर प्लेटफार्म और डिब्बे के बीच की दूरी नापते दिख जाते थे और सरकार को कोसते दिखते थे वे उसी रात डांडिया के धुन पर नाचते हुए वीडियो से सोशल मीडिया में छा गए जिसके चलते न केवल उनकी बल्कि पार्टी की भी काफी छीछालेदर हुई। बाद में घटना की तहकीकात और लोकल सुविधा सुधारने के लिए बनाई कमिटी में उनको जगह नहीं दिया गया। घटना के अगले ही दिन मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए भाजपा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कई भाजपा के नेताओं को ठहाके लगाते हुए फोटो वायरल हो गए। मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है जहां पर लगभग सभी बड़ी कंपनियों के मुख्य कार्यालय और कुछ की फैक्टरियां भी हैं जो कई प्रकार के टैक्स सरकार को चुकाते हैं जिसके चलते मुम्बई देश के सबसे बड़े टैक्स भुगतान करनेवाले केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। या टैक्स में अपना योगदान देने वाले करीब 75 लाख लोग आज भी घर से कार्यस्थल तक के लिए सिर्फ लोकल ट्रेन पर ही निर्भर हैं और यही निर्भरता इनमे से रोजाना लगभग 11 लोगों को मौत का कारण भी बन रही है। आज किसी भी मुम्बई निवासी से यह सवाल किया जाए की उसे सबसे ज्यादा डर किसी आतंकी हमले, प्राकृतिक आपदा या बम ब्लास्ट या लोकल ट्रेन से लगता है तो सर्वाधिक लोगों का जवाब लोकल ट्रेन ही होगा। लोकल ट्रेनों में भीड़ से होने वाली मौतें आज सबके दिमाग में घर कर गयी हैं पर इसका पर्याय न होने की वजह से सभी को मजबूरन इसका उपयोग करना ही पड़ रहा है। हालात इस कदर गंभीर हैं की जब एक मुम्बई निवासी अपने घर से ऑफिस या अपने कार्यस्थल के लिए निकलता है और जब तक वह ऑफिस न पहुंच जाये और फोन करके अपने सकुशल होने की खबर अपने परिवारीजन को न दे दे तब तक उनकी चिंता बनी रहती है और शाम को भी वह जब तक घर न पहुंच जाए यह चिंता जारी ही रहती है।
एक सूचना के अधिकार (फळक) से मिली सूचना के अनुसार करीब 13 वर्षों में 50 हजार से भी ज्यादा मुम्बई वासियों की जानें ट्रेन से कटकर, गिरकर या किसी अन्य दुर्घटना से हुई हैं जिसमें घायल होकर बाद में मरे हुए लोगो की गणना नहीं है। इस जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है की हर वर्ष 4 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौतें लोकल ट्रेनों की चपेट में आने से हो रही हैं जिसका प्रतिदिन औसत 11 मौतों से ज्यादा आता है। चेतन कोठारी आरटीआई कार्यकर्ता जिन्होंने आरटीआई के द्वारा यह जानकारी निकाली थी का कहना है कि मैं हर दिन अख़बारों में लोगों को ट्रेन हादसों में मरते देख कर मुझसे रहा नहीं गया और तब मैंने यह आरटीआई फाइल की और जानकारी पाकर चौंक उठा। कोठारी आगे सवाल करते हैं की मुम्बई को आर्थिक राजधानी और सबसे ज्यादा टैक्स देने वाला शहर बनाने वाले इन मुम्बई वासियों को क्यों उनकी पसीने की कमाई बहाने के साथ-साथ अपना खून भी बहाना पड़ रहा है? आखिर किस जुर्म की सजा इन मुंबई वासियों को मिल रही है? आखिर कब इन मौतों की रफ्तार रुकेगी? कब यह लोकल ट्रेनें लाइफ लाइन से डेथ लाइन बन गयीं? आज यदि आप पिछले 50 सालों का इतिहास देख लें तो जितनी जानें मुंबई की लोकल ट्रेन ने ली है उतनी जानें तो किसी सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा या भोपाल गैस कांड ने भी नहीं ली होगी। तो हमें इस मानव निर्मित आपदा को जल्द से जल्द खत्म करना होगा। सुरेश प्रभु के रेल मंत्री बनने पर मुम्बई के लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थी हालांकि जल्द ही ये सारी उम्मीदों पर भी पानी फिर गया। हाल में हुए कुछ दुर्घटनाओं के मीडिया में छाने के बाद प्रभु ने घोषणा की थी कि वे प्राइवेट और सरकारी कार्यालयों के कार्य समय में बदलाव लाएंगे ताकि एक ही समय दोनों की भीड़ न जमा होकर ट्रेनों पर कम बोझ पड़ेगा पर वह घोषणा अब तक अमल में नहीं आई और उनके खराब प्रदर्शन की वजह से उनसे रेल विभाग भी छीन लिया गया। कई बार यह मांग उठ चुकी है की मुम्बई की पूरी ट्रांसपोर्ट प्रणाली को अलग कर दिया जाए और इसका नियमन और प्रबंधन किसी एक एजेंसी के अंतर्गत दे दिया जाये जो न केवल ट्रेन बल्कि सड़क यातायात, बेस्ट बस सेवा, मेट्रो, मोनो रेल इत्यादि को एकीकृत करके योजना बनाये। ये मांगें भी अब तक ठंडे बस्ते में ही पड़ी हुई है। एक सुझाव यह भी आया था की मुम्बई की लोकल सेवा को मुख्य रेल सेवा से अलग कर मध्य, पश्चिम, हारबर, ट्रांस-हार्बर सेवाओं को एकीकृत कर इसका मुखिया किसी एक आईएएस अधिकारी को बना दिया जाए जो इसका प्रबंधन करे। मुम्बई के भीतर सिर्फ लोकल ट्रेन को ही चलाने का प्रस्ताव भी आया था जिसके अंतर्गत लंबी दूरी की ट्रेनों को शहर के भीतर प्रवेश न देकर उन्हें मुम्बई की सीमा के बाहर कल्याण, विरार, कल्याण और पनवेल में टर्मिनस बनाने का विचार था पर इसमें सिर्फ कल्याण (ठाकुर्ली) को छोड़कर बाकी के दो सिर्फ कागज पर ही रह गए हैं। मुम्बई की ट्रांसपोर्ट योजना की प्लानिंग करनेवालों को अब तक यह नहीं समझ में आ पाया है की मुम्बई अब सिर्फ उत्तर से दक्षिण 35 किलोमीटर ठाणे, बोरीवली, मानखुर्द (मध्य, पश्चिम और हारबर मार्ग) की सीमा तक ही सिमित नहीं है। इसका विस्तार अब 100 से 120 किलोमीटर की दूरी तक कसारा, कर्जत, दहाणु, पनवेल तक हो चुका है। अब यहां काम करने वाला कार्यबल सिर्फ मुम्बई का ही नहीं बल्कि 100 से 120 किलोमीटर दूर से आने लगा है जिसका सिर्फ और सिर्फ एक ही साधन लोकल ट्रेन ही है जो सस्ता, तेज और भरोसेमंद साधन है। आर्थिक विकास की राह पर चलते चलते शहर के मकान कब आम जनता के औकात के बाहर निकल गया इसका अंदाजा सरकार को नहीं लगा। जहां पर कपड़ा मिलें और मिल मजदूरों की आबादी वाली बस्तियां हुआ करती थीं आज वहां पॉश मॉल और रिहायशी टावर आ गए है जिनमें घर लेना महीने में एक लाख कमाने वालों के भी बस की बात नहीं और इन बस्तियों में रहने वालों को मुम्बई छोड़कर परिवार सहित शहर से 50 किलोमीटर दूर बसना पड़ा। इन सब पलायन के बीच जो नहीं बदला वह था उनका कार्यस्थल जहां उन्हें अब भी लंबी दूरी की लोकल की जानलेवा यात्रा करके आना पड़ रहा है। सरकार और रेल विभाग में दूरगामी सोच न होने का खामियाजा आज इन दूर क्षेत्रों में रह रहे लोगों को अपनी जानें गंवा कर चुकानी पड़ रही है। इन करीब 20 वर्षों में रेलवे और अन्य महानगर पालिकाओं द्वारा किसी पर्यायी यातायात के साधन का विकास न कर पाना और रेलवे द्वारा उसके मौजूदा रेल लाइनों पर अतिरिक्त बोझ डालने के आलावा और कोई भी कार्य नहीं किया गया। मुम्बई चारो तरफ से समुद्र और खाड़ियों से घिरा हुआ है इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने कई बार यह भी योजना बनाई थी जिसके अंतर्गत शहर को ठाणे, डोम्बिवली, कल्याण, पनवेल, वाशी, भायंदर और वसई से जलमार्ग से जोड़ने की योजना है जिसपर अभी तक सिर्फ बातें ही की जा रही हैं। हालांकि वर्तमान परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी आशान्वित दिखे हैं पर अब भी यह सिर्फ बयानों में ही है।
राज्य सरकार ने विरार से अलीबाग के लिए आठ लेन की सड़क मार्ग को शुरू किया है तो शहर को पश्चिमी छोर से पूर्वी छोर को तेजी से जोड़ेगा। इस प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू हो चुका है पर इसे पूरे होने में अभी भी काफी समय है। मुम्बई शहर को नरीमन पॉइंट से कांदिवली करीब 30 किलोमीटर की सड़क का प्रस्ताव पारित हो चुका है जो समुद्र किनारे बनेगी जो शहर के बीच के सड़क यातायात के जाम की समस्या से निजात दिलाएगी पर इसके बीच में कोस्टल रेगुलेशन जोन का रोड़ा है। कई बार तकनीकी और बरसात के दिनों में लोकल ट्रेन की आवाजाही में दिक्कत या ठप्प पड़ने पर रेल यात्रियों के सामने पटरियों पर चलने के आलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है और इसलिए रेलमार्ग के समानांतर सड़क मार्ग की योजना के बारे में सोचा भी नहीं गया है। कई बार इन दूर के यात्रियों को दुर्घटना या ट्रेनों के ठप्प होने की स्तिथि में ट्रेनों में ही रात गुजारनी पड़ी है या रेल की पटरियों पर जोखिम उठाकर चलना पड़ा है।
मुम्बई को अब मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन (टटफ) के तहत माना जाता है जिसका क्षेत्र में करीब 4 हजार वर्ग किलोमीटर तक फैला है, जिसमे ठाणे और रायगढ़ जिले की आठ महानगर पालिकाएं, 9 नगरपालिकाओं का समावेश है जिसका विकास अधिकार मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (टटफऊअ) के अंतर्गत आता है। कई बरसों के बावजूद अब तक इन सभी नगरपालिकाओं में आपसी समन्वय न हो पाने के कारण कोई भी एकीकृत परिवहन सेवा नहीं है जिसका खामियाजा इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो मजबूरन भीड़-भाड़ वाले लोकल ट्रेनों पर निर्भर हैं।
समीर जवेरी जिन्होंने करीब 20 वर्ष पहले रेल दुर्घटना में अपने दोनों पैर गंवा दिए वे 20 वर्षों से रेल विभाग की यात्रियों के प्रति जारी दुव्र्यवहार के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। यह उन्हीं के जंग का नतीजा है की वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे को इमरजेंसी मेडिकल रूम स्टेशनों पर स्थापित करने का आदेश दिया जिसका पालन अब जाकर पिछले कुछ 2-3 वर्षों में शुरू हुआ है इसके बावजूद भी इमरजेंसी मेडिकल सुविधा के आभाव में दुर्घटना के शिकार यात्रियों की जानें चली जाती है क्योंकि उनके गंभीर अवस्था के चलते स्थानीय प्राइवेट और सरकारी अस्पताल मुम्बई के बड़े सरकारी अस्पताल डाएट या जेजे अस्पताल रेफर करते है जो घटना स्थल से 80 से 100 किलोमीटर दूर हैं, प्रक्रिया में कई बार 8 से 12 घंटे भी लग जाते हैं और घायल यात्री दम तोड़ देता हैं। समीर जवेरी का कहना है की दुर्घटनाओं को लेकर रेलवे का नजरिया एकदम असंवेदनशील रहा है। कई बार स्थानीय अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक से मैंने इनके रवैये के खिलाफ लड़ाई लड़ी है पर ये अब तक सुधरे नहीं। 2004 में अदालत ने इन्हें रोजाना हो रही इन मौतों को रोकने के लिए मेरे द्वारा दायर याचिका पर आदेश दिया था की सभी स्टेशनों के प्लेटफार्म और ट्रेन के डिब्बों के पायदान के बीच के गैप को कम करें और प्लेटफार्म की ऊंचाई बढ़ाएं जिसपर अब जाकर कई बार बॉम्बे हाई कोर्ट के फटकार के बाद अमल होना शुरू हुआ हैं। सभी प्लेटफॉर्मों पर पटरी पार करने से रोकने के लिए बैरिकेड और रेलवे लाइन को दीवारों से घेर दिया जाए ताकि लोग पटरियों पर न आएं। जिसका कुछ स्टेशनों पर अमल हो रहा है।
सबसे गंभीर मसला रेलवे द्वारा घायलों के प्रति उदासीनता का अब भी जारी है। अदालत के आदेश के बावजूद आज भी गोल्डन ऑवर (दुर्घटना से 1 घंटे के भीतर मेडिकल की आपातकालीन सुविधा) का पालन नहीं हो रहा है और घायल होने के 8 से 12 घंटे तक घायल यात्री सिर्फ कागजी कारवाही और अस्पतालों के चक्कर लगाता रह जाता है जिस दौरान शरीर से ज्यादा खून बह जाने के कारन उसकी मौत हो जाती है। जब की अदालत के निर्णय अनुसार घायल यात्री को जल्द से जल्द स्टेशन पर ही मूलभूत मेडिकल सुविधा देकर नजदीकी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में दाखिल किया जाना चाहिए पर शायद ही किसी मामले में इसका पालन होता है। पिछले तीन से पांच वर्षों में मुंबई को लंबित पड़े मेट्रो और मोनो रेल की सेवा प्राप्त हुई पर उसमे सिर्फ मेट्रो ही एक सफल सुविधा के रूप में उभरी जिसकी वजह से पूर्व और पश्चिम (घाटकोपर-अँधेरी-वर्सोवा) को आने जाने वाले यात्रियों को एक सुखद सुविधा मिली। हालांकि इसका किराया हमेशा से ही विवादों में है जो आम जनता की जेब पर थोड़ा भारी पड़ता है। पर इसी दौरान वडाला से चेम्बूर तक की मोनो रेल एकदम फ्लॉप साबित हुई जो एक घटिया प्लानिंग का प्रमाण है। मोनो आज रोजाना लाखों का नुकसान उठा रही है। मोनो रेल रिहाइशी इलाकों से न गुजर कर बंदरगाह क्षेत्र से गुजरती है जिसके चलते इसे यात्रियों का प्रतिसाद नहीं मिला और अब यह सेवा लगभग खाली ही चलती है। हालांकि इसका अगला चरण जो जैकब सर्किल तक जायेगा और इसके पूरे होने की कगार पर है और जिसके पूर्ण होने के बाद मध्य मुम्बई में रहने वालों को राहत मिलेगी। शहर में अन्य कई जगहों पर मेट्रो के जाल बिछाने का काम हाथ में लिया गया है पर फिलहाल वे भी ठाणे के आगे नहीं जा रही है जहाँ से ज्यादा से ज्यादा लोग शहर में आते हैं।
मध्य, पश्चिम और हारबर रेल रोजाना की लगभग 4 हजार सेवाएं चलती हैं और अब इस लोकल रेलवे सेवा का लगभग पूरी तरह से दोहन हो चुका है जहां हर 3 मिनट पर एक ट्रेन चलाई जा रही है और इसके आगे इसकी क्षमता नहीं है क्योंकि इसके पास भी सीमित साधन है पटरियों का जाल बिछाने के लिए जगह नहीं है इसके साथ नए डिब्बे भी इसे देरी से आपूर्ति हो रहे हैं। इसलिए अब किसी और पर्यायी यातायात साधन के निर्माण की आवश्यकता है जो सड़क मार्ग, जल मार्ग, मेट्रो या मोनो रेल के रूप में हो सकती हैं। रेल विभाग बोरीवली, ठाणे, कल्याण, वसई इत्यादि जगहों पर शुरू कर उत्तर की तरफ लोकल ट्रेनों की संख्या बढाकर भी इन मौतों पर काबू पा सकती है जो एक त्वरित आराम देगा।
इसके साथ ही सभी रेल पटरियों के समानांतर सड़क निर्माण का कार्य तेजी से किया जाए ताकि दुर्घटना या बरसात के समय ट्रेन बंद होने के समय पर्यायी परिवहन सेवा के साथ-साथ मेडिकल सुविधा भी मिल सके। एल्फिंस्टन की दुर्घटना के बाद रेल मंत्रालय ने यह कहा है की सिग्नल तकनीकी में सुधार लाकर जल्द लोकल सेवाओं की संख्या दुगुनी की जाएगी पर यह वादे वर्ष 2008 से किये जा रहे हैं। ऐसा नहीं है की मुंबई में लोकल द्वारा हो रही मौतों को नहीं रोका जा सकता जरूरत है रेल अधिकारियों और स्थानीय राजनीतिज्ञों में समन्वय की जिन्हें जल्द से जल्द सभी रुके हुए रेल प्रोजेक्ट्स को युद्ध स्तर पर शुरू करने की और अपने राजनितिक स्वार्थ से ऊपर उठकर जहां संभव हो इन मार्गों में रोड़ा बने अवैध निर्माणों या लाल फीताशाही को ख़त्म करना होगा। आज इन बढ़ती रिहाइशी इलाकों की कीमतों के साथ ही सरकार को इन्हीं सुदूर इलाकों में दक्षिण मुंबई की कुछ सरकारी और प्राइवेट ऑफिसों को स्थानांतरित करने की जरुरत है जिसके कारण इन जगहों पर रहने वालों को इनके घरों के आसपास ही रोजगार मिल जायेगा जिसका असर लोकल ट्रेन की भीड़ काम करने पर पड़ेगा। सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों के अलग-अलग समय परिवर्तन भी ट्रेन की भीड़ को कम करने में सहायक हो सकेंगे। रेल मंत्रालय को रेल पटरियों के नजदीक सभी सरकारी और निजी अस्पतालों के साथ एक बंधनकारक समझौता करना चाहिए की किसी भी हालत में किसी भी दुर्घटना ग्रस्त यात्री को चिकित्सा सेवा देने से इंकार न कर पाएं और ऐसा करने पर उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कारवाही की जानी चाहिए। ज्यादातर घायल यात्रियों की मौतें समय पर मेडिकल सेवा न मिल पाने की वजह से हो जाती है। संभव हो तो पूरे टटफ क्षेत्र के ट्रांसपोर्ट सेवा को एक ही छतरी के नीचे लाया जाए ताकि सभी के लिए एक समान सेवा मिल सके और सभी का समन्वय एक ही जगह से हो सके। ल्ल