मोदी और शी चिनफिंग की मुलाकात से तय होगा भारत में इस कंपनी का भविष्य
दूरसंचार कंपनियों के लिए बेहद संवेदनशील अत्याधुनिक उपकरण बनाने वाली चीन की कंपनी हुआवे को इस क्षेत्र में आज अमेरिकी कंपनियों के सबसे बड़ी स्पर्धी के तौर पर देखा जा रहा है। अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों की तरफ से प्रतिबंध ङोल रही इस कंपनी के लिए भारत का बाजार बहुत अहम हो गया है। लेकिन कंपनी की दिक्कत यह है कि भारत भी इस बारे में फैसला लेने में देरी कर रहा है। ऐसे में कंपनी की सारी भावी योजनाएं अब इस बात पर टिकी हैं कि अक्टूबर में पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच होने वाली मुलाकात में हुआवे को लेकर क्या फैसला होता है।
कंपनी के अधिकारी मानते हैं कि दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की होने वाली बैठक एक तरह से भारत में कंपनी के कारोबार का भविष्य तय करने वाली होगी।चीन के इलेक्ट्रॉनिक शहर के तौर पर मशहूर शेनजेन स्थित हुआवे के मुख्यालय के आला अधिकारियों के मुताबिक भारत सरकार को यह समझना होगा कि आज अमेरिका अपनी कंपनी को बचाने के लिए चीन की कंपनियों को निशाना बना रहा है। लेकिन उनका अगला निशाना भारतीय कंपनियां होंगी क्योंकि वे भी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी तेजी से प्रगति कर रही हैं।
भारत में हमारा रिकॉर्ड देखा जाए तो साफ है कि हम वहां पर स्थानीय ढांचा तैयार करने पर कितना ध्यान देते हैं। चीन के बाद हुआवे का दूसरा सबसे बड़ा शोध व अनुसंधान (आरएंडडी) केंद्र बेंगलुरु (भारत) में ही है, जहां 2,000 कर्मचारी हैं। चेन्नई में कंपनी ने मोबाइल हैंडसेट फैक्ट्री काफी पहले से स्थापित कर रखी है। अगर 5जी में उतरने की अनुमित मिल जाती है तो हम दूरसंचार उपकरणों के निर्माण के लिए चीन के बाहर दूसरा सबसे बड़ा प्लांट भारत में लगा सकते हैं।
भारत की इकोनॉमी जिस गति से बढ़ रही है, उसकी दूरसंचार उपयोगिता को पूरा करने के लिए हुआवे की खास योजना है। लेकिन फिलहाल कंपनी को सरकार के फैसले का इंतजार है। मोदी और चिनफिंग की मुलाकात से ही आगे की राह निकलती दिख रही है। यह पूछे जाने पर कि अगर भारत हुआवे को अनुमित नहीं देता तो कंपनी का भावी योजना क्या होगी, अधिकारी का जवाब था कि हम शायद फिर 4जी बाजार में ही फोकस करेंगे। लेकिन रिलायंस जियो की वजह से देश की दूसरी दूरसंचार कंपनियों की हालत काफी खराब हो चुकी है। 4जी बाजार में उनकी हिस्सेदारी घटती जा रही है। इसका असर हुआवे के कारोबार पर भी पड़ा है। क्योंकि रिलायंस जियो अपने उपकरण सैमसंग से लेती है। साथ ही हैंडसेट बाजार को लेकर भी हम काफी आशान्वित हैं।
अक्टूबर, 2019 में कंपनी अगले साल के अपने वैश्विक प्लान की घोषणा करेगी जिसमें भारत के लिए भी घोषणाएं होंगी। हुआवे वर्ष 1999 से भारत में काम कर रही है। कंपनी भारतीय बाजार में अभी तक कुल 3.6 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है और वहां उसके कुल 6,000 कर्मचारी हैं। वर्ष 2018 में कंपनी ने भारत में तकरीबन एक अरब डॉलर का कारोबार किया था।
अमेरिका की दिक्कत क्या है
अमेरिका को लगता है कि हुआवे के उपकरणों का उपयोग जासूसी के लिए भी किया जा रहा है और वहां की महत्वपूर्ण सूचनाएं कंपनी के माध्यम से सीधे चीन सरकार को भेजी जा रही हैं। उसे लगता है कि हुआवे से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। हुआवे ने हमेशा से इसका खंडन किया है। लेकिन अमेरिका इस चीनी कंपनी पर विश्वास करने को तैयार नहीं है।
भारत क्यों महत्वपूर्ण
हुआवे के लिए भारत का टेलीकॉम बाजार अभी भी दुनिया के शीर्ष तीन बाजारों में से है। कंपनी की सोच है कि अगर भारत की तरफ से 5जी सेवाओं के परीक्षण में उसे भाग लेने की अनुमित मिल जाए, तो वह अमेरिकी व कुछ यूरोपीय बाजारों के खोने की भरपाई कर सकती है। इसके लिए कंपनी भारत में अत्याधुनिक मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए भी तैयार है।
मामला कहां अटका है
हाल के दिनों में मामला कुछ ज्यादा ही राजनीतिक हो चुका है। अमेरिका ने हुआवे को प्रतिबंधित करने के बाद अपने सहयोगी देशों से भी आग्रह किया है कि वे हुआवे की सेवाओं का बहिष्कार करें। दूसरी तरफ, चीन के वाणिज्य मंत्री यह बयान दे चुके हैं कि हुआवे को प्रतिबंधित करने वाले देशों के खिलाफ वे भी कारोबारी कदम उठाएंगे।