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यमलोक जाने से बचाती है श्राद्ध पक्ष की यह एकादशी

vishnu-55a8c8cc1eb7a_exlstसाल में कुल 24 एकादशी आती है इनमें एक एकादशी ऐसी है जो हर साल आश्‍व‌‌िन कृष्‍णपक्ष यानी पितृपक्ष में आती है इस एकादशी का नाम है इंदिरा एकादशी।

पितृपक्ष की एकादशी होने के कारण यह एकादशी पितरों की मुक्ति के लिए उत्तम मानी गई। इस वर्ष यह पुण्यदायी एकादशी 8 अक्तूबर गुरुवार को है। इस एकादशी की महिमा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।

इस पुरण में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है कि आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान हृषिकेश की पूजा करता है वह मृत्यु के बाद यमलोक जाने से बच जाता है।

जिनके पूर्वज यानी पितर किसी पाप के कारण यमलोक में जाकर यम की यातना सह रहे हैं उन्हें भी यम के कोप से मुक्ति मिल जाती है और स्वर्ग जाने का अधिकारी बन जाते है।

पितृपक्ष में इस एकादशी के आने का उद्देश्य भी यही है कि जिनके पितर यम की यातना सह रहे हैं उन्हें मुक्ति मिल जाए। राजा इन्द्रसेन के पिता को अपने जीवन काल मे किए किसी पाप के कारण यमलोक जाना पड़ा। एक दिन इन्द्रसेन के पिता ने सपने में आकर इन्द्रसेन से कहा कि मुझे मुक्ति नहीं मिली है, मैं यमलोक में आकर अपने कर्मों की सजा पा रहा हूं।

मेरी मुक्ति के लिए कोई उपाय करो। पिता को तकलीफ में जानकर इन्द्रसेन परेशान हो गए। इसी बीच एक दिन नारद मुनि राजा इन्द्रसेन के दरबार में पधारे।

नारद मुनि ने इन्द्रसेन से कहा कि आप आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें, इस व्रत का पुण्य अपने पिता को दे दीजिए इससे आपके पिता यमलोक से मुक्त हो जाएंगे। राजा ने देवऋषि नारद के बताए विधि के अनुसार एकादशी का व्रत किया। अगले दिन इन्होंने ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर प्रसन्न किया।

इसके बाद एकादशी का पुण्य अपने पिता को दान दे दिया। एकादशी के पुण्य के प्रभाव से इन्द्रसेन के पिता बैकुण्ठ चले गए। मृत्यु के बाद इन्द्रसेन को भी वैकुण्ठ में स्थान प्राप्त हुआ।

शास्त्रों में बताया गया है कि इंदिरा एकादशी का व्रत रखने वाले को एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए। मौसमी फलों एवं फूलों से भगवान की पूजा करके विष्णु भगवान के नाम का कीर्तन करना चाहिए।

परिवार में जिन लोगों की मृत्यु हो चुकी है उनका नाम लेकर भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि उन्हें सद्गति प्रदान करें। एकदशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दक्षिण देकर प्रसन्न करें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।

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