अद्धयात्म

यहां महिलाएं विधवा बनकर मांगती है पति की सलामती के लिए दुआएं

widow1-1444886118दस्तक टाइम्स/एजेंसी: पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर तथा बिहार के कुछ हिस्सों में एक अनोखी परंपरा है। यहां गछवाहा समुदाय की स्त्रियां विधवा का जीवन जीकर अपने पति की सलामती मांगती हैं। गछवाहा समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है।

इस समुदाय के लोग ताड़ के पेडों से ताड़ी निकालने का कार्य करते हैं। ताड के पेड 50 फीट से भी ज्यादा ऊंचे होते हैं तथा एकदम सपाट होते हैं। इन पेडों पर चढ़कर ताड़ी निकालना बहुत जोखिम का कार्य होता है। ताड़ी निकालने का काम चैत्र मास से सावन तक चार महीने किया जाता है। गछवाह महिलाएं इन चार महीनों में न तो अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं और न ही शृंगार करती हैं। वह अपने सुहाग की सभी निशानियां देवरिया जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर तरकुलहा देवी के पास रखकर अपने पति की सलामती की दुआ मांगती हैं।
गछवाहों में यह परम्परा कब से चली आ रही है इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। अधिकतर गछवाहों का कहना है कि वे इस परम्परा के बारे में अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं। वैसे हिन्दू धर्म में किसी महिला द्वारा अपने सुहाग चिह्न को छोडना अपशकुन माना जाता है लेकिन गछवाहों में इसे शुभ माना जाता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में तरकुलहा देवी का मंदिर देवरिया से 30 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में चौरीचौरा के समीप है। मंदिर में चैत्र से लेकर वैशाख महीने तक एक माह का मेला लगता है जहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। नवरात्र के दिनों में यहां भक्तों की काफी भीड होती है। 

 

Related Articles

Back to top button