यहां मां का कटा सिर उनके हाथों में है, उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती हैै
मां का यह स्वरूप देखने में भयभीत भी करता है। झारखंड के रामगढ़ से रजरप्पा की दूरी 28 किमी की है। यहां मां का कटा सिर उन्हीं के हाथों में है। और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है।
वैसे, यहां कई मंदिर का निर्माण किया गया जिनमें ‘अष्टामंत्रिका’ और ‘दक्षिण काली’ प्रमुख हैं। यहां आने से तंत्र साधना का अहसास होता है। यही कारण है कि असम का कामाख्या मंदिर और रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में समानता दिखाई देती है।
मां के इस मंदिर को ‘प्रचंडचंडिके’ के रूप से भी जाना जाता है। मंदिर के चारों और कल-कल करती दामोदर और भैरवी नदी हैं। मां के इस आशियाने को ठंडक प्रदान करती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान को मां का अंतिम विश्राम स्थल भी माना गया है।
यहां कतार से बनी महाविद्या के मंदिर मां के रूप और रहस्य को और बढ़ा देती हैं। इन मंदिरों में तारा, षोडिषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, कमला, मतंगी और घुमावती मुख्य हैं। मंगलवार और शनिवार को रजरप्पा मंदिर में विशेष पूजा होती है। मां को बकरे की बलि जिसे स्थानीय भाषा में पाठा कहा जाता है। यह परंपरा सदियों से यहां जारी है।