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यहां होती है रानी पद्मावती की पूजा, दुनिया में कहीं और नहीं है ऐसी मूर्ति

जयपुर।चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती को लेकर चाहे पिछले दिनों से कितना ही विवाद क्रियेट किया जा रहा हो, लेकिन आज भी राजस्थान में उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है। बॉलीवुड डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती में दिखाए जाने वाले अंशों को लेकर जिस तरह से विवाद बढ़ा, उसके बाद पद्मावती के बारे में हकीकत बताना बेहद जरूरी हो गया है। जानिए आखिर रानी पद्मावती आखिर कौन थीं? कैसी दिखती थीं वे…
यहां होती है रानी पद्मावती की पूजा, दुनिया में कहीं और नहीं है ऐसी मूर्ति
– असल में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में बने एक मंदिर में पद्मावती यानी पद्मिनी की प्रतिमा स्थापित है।
– उसी के स्वरूप से रानी का रूप दिखाया गया है। उनके जीवन के बारे में प्रतिमा मुखर होकर बोलती नजर आती है।

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इस प्रकार है पूरा इतिहास
-गुजरात के चालुक्यों की राजधानी और चौहानों की राजधानी रणथंभौर, जो भारत के अत्यंत शक्तिशाली राज्य माने जाते थे, को जीत लेने के बाद अलाउद्दीन खिलजी का आगामी लक्ष्य, मेवाड़ के महान हिंदू राज्य को जीत लेना ही था।
– उधर बनास नदी घाटी से गुजरात तक निर्द्वंद्व पहुंच जाने की भी अलाउद्दीन की सोची-समझी राजनीतिक चाल भी हो सकती थी, क्योंकि उस ओर जाने का जो दूसरा मार्ग था, वह मारवाड़ के इलाके से होकर गुजरता था, जिसके प्रतापी रजवाड़ों ने अलाउद्दीन से संगठित होकर युद्ध करने की पूरी तैयारी कर रखी थी, इसलिए वह इस इलाके को टालकर मेवाड़ के रास्ते से जाना चाहता था।
– मारवाड़ इलाके में समय-समय पर हुई अलाउद्दीन के सरदारों की लड़ाइयों और छिटपुट हमलों में उसे मुंह की खानी पड़ी थी और 1314-15 ई. तक वह बड़ी जीत से वंचित ही रह गया था।
– किंतु ‘मुहणोत नैनसी री ख्यात’, ‘एनल्स एंड एंटीक्वीटीज ऑफ़ राजस्थान’ (जे. टॉड), मलिक मोहम्मद जायसी कृत ‘पदमावत’, अबुल फज़ल फैजी कृत ‘आईने-अकबरी’, ‘तारीख़-ए-फ़रिश्ता’ एवं ‘राज प्रशस्ति’ इत्यादि ग्रंथों में प्राप्त विवरण यही बताते हैं कि चित्तौडगढ पर अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण मेवाड़ की रानी ‘पद्मिनी’ की अप्रतिम सुंदरता के लिए उसकी वासना के फलस्वरूप ही हुआ था।
 
ऐसी दिखती थी रानी पद्मावती, ये कहते है इतिहासकार
– डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, प्रो. एम. हबीब, प्रो. एस. राय व एस.सी. दत्ता जैसे विख्यात इतिहासकारों की धारणा है कि विश्व के इतिहास में अप्रतिम सौंदर्य साम्राज्ञी, मेवाड़ के राणा रत्न सेन की पत्नी रानी पद्मिनी की तुलना, सम्राट सोलोमन द्वारा अद्वितीय सौंदर्य की रानी शेबा को प्राप्त करने के लिए किए गए युद्ध से की जा सकती है।
– सोलोमन का शेबा के राज्य पर आक्रमण और शेबा को अपनी रानी बनाने का मंतव्य पूरा करना, इतिहासकार एस.सी. दत्त के शब्दों में – ‘उतनी ही मात्रा में न्यायसंगत है जितनी मात्रा में, बालकिश की साम्राज्ञी शेबा चित्तौड़ की रानी पद्मिनी से वास्तव में तुलनीय है।’
– जैसा कि सोलोमन ने बालकिश की साम्राज्ञी शेबा से स्वयं अपने समेत बालकिश के राज्य को सुपुर्द कर देने का आदेश दिया था, उसी प्रकार अलाउद्दीन ने पद्मिनी को उसे सुपुर्द करने का हुक्म रत्न सेन को भिजवाया था।
– इस तरह कुल मिलाकर इस बात में कुछ तो दम है ही कि पद्मिनी एक अद्वितीय सौंदर्य की अधिष्ठात्री रानी थी, जिसकी 700 वर्षों से चली आ रही इतिहास कथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी को सम्मोहित कर रही है, लेकिन तथ्यात्मक इतिहास के हक में यह कहना आवश्यक है कि मलिक मोहम्मद ‘जायसी’ ने ‘पदमावत’ में पद्मिनी को सिंहल द्वीप की स्वप्न सुंदरी बनाकर इसे एक काल्पनिक मोड़ ही दे दिया।
– इस तरह सच्चाई से दूर हटाकर जायसी ने अनधिकार चेष्टा की है तथा अनावश्यक छूट ले ली है। पद्मिनी वस्तुत: ‘सिंहल द्वीप’ (श्रीलंका) की राजकुमारी थी ही नहीं और नए तथ्यों के मिल जाने के फलस्वरूप वह एक राजपूत (क्षत्रिय) राजकुमारी ही प्रमाणित होती है, जिसके नाक-नक्श व वेशभूषा, शतश: राजस्थान की ही दिखती है।
– इस प्रसंग का दूसरा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पक्ष यह है कि पद्मिनी, मेवाड़ और मालवा के मध्य में एक बड़े राजपूत ठिकाने (कस्बे), जिसका नाम ‘सिंगोली’ ग्राम है, वह वहां की राजपूत राजकन्या थी।
– चरित काव्यकारों तथा राजस्थान के भौगोलिक नक्शे से परिचित न होने से, कुछ इतिहासकारों ने भी पद्मिनी को सिंहल द्वीप की राजकुमारी ही बता दिया है।
– जिसके कारण भ्रामक व्याख्या करके उसे श्रीलंका द्वीप तक सुदूर दक्षिण में पहुंचा दिया है, जो किसी भी विधि से उचित नहीं प्रतीत होता।
– इससे यह कथा बाल परिकथाओं की तरह रोचक जरूर बन गई है, परंतु वह तथ्यात्मक इतिहास से कोसों दूर चली गई है।
– 20 जुलाई से 28 जुलाई, 2001 में मैंने इस ऐतिहासिक वीर गाथा की तथ्यात्मक व प्रामाणिक जानकारी हेतु चित्तौड़ की शोधपूर्ण यात्रा का प्रोग्राम बनाया।
– देवगढ़ के जैन मंदिर व पुराना किला भी देखते हुए हमने चित्तौडगढ किला और साढ़े चार किलोमीटर में फैला चित्तौड़ का प्राचीन शहर देखा।

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