यूपी में दिखेगी ‘नारी शक्ति’ की ताकत
विधान सभा चुनाव 2017 की तैयारी
संजय सक्सेना
लोकतंत्र के मंदिर में मोदी सरकार को घेरने के लिए एकजुट हुआ विपक्ष मोदी के मंत्रियों और सांसदों की पेशबंदी के आगे शेयर बाजार की भाषा में कहा जाए तो धड़ाम से गिर गया। जेएनयू और दलित छात्र राहुल के बहाने मोदी सरकार को फांसीवादी साबित करने के चक्कर में कांग्रेस रणछोड़ साबित हुई तो ‘लाल सलाम’ भी हवा में दिखाई दिया। ‘मंदिर’ के भीतर घटनाक्रम कुछ ऐसा घूमा कि सूर्यास्त होते-होते सत्ता विरोधी खेमे के पास मुंह छिपाने के अलावा कुछ नहीं बचा था। आश्चर्यजनक रूप से चर्चा जेएनयू में देश विरोधी नारों और हैदराबाद में दलित छात्र की मौत पर हो रही थी, लेकिन इसके बहाने चुनावी राज्यों के लिये सियासी स्क्रिप्ट भी लिखी जा रही थी। अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए यह बहस कई संदेश दे गई। बसपा सुप्रीमो मायावती के सामने बीजेपी ने दलितों को लेकर बड़ी लाइन खींचने की कोशिश की, जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी होती दिखीं। राज्यसभा में मायावती और स्मृति ईरानी के बीच जिस तरह की तकरार देखने को मिली वह चौंकाने वाली थी। मायावती को पहली बार इतना करारा जवाब मिला था कि वह निरुत्तर हो गईं और अचंभित होकर स्मृति ईरानी को देखने के अलावा उनके पास कुछ नहीं बचा। ऐसा नहीं था कि स्मृति ईरानी से पूर्व कोई और नेता माया को घेरने का माद्दा नहीं रखता था, परंतु अन्य नेताओं को चिंता इस बात की सताती रहती थी कि दलितों की ब्रांड एंबेसडर जैसी मायावती, को घेरने में कहीं दलित वोटर उनसे या उनकी पार्टी से नाराज न हो जाये। दलित वोटर भावनात्मक रूप से काफी कमजोर होते हैं। इसी वजह से मायावती हमेशा विरोधियों पर भारी पड़ती थीं। परंतु स्मृति ईरानी ने इसकी जरा भी चिंता नहीं की। बेबाकी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। इस तकरार से बसपा-भाजपा के बीच चुनावी गठबंधन की संभावना जताने वाले राजनैतिक पंडित और कलमकारों की सोच ठंडी पड़ गई। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने जिस तरह से माया पर हमला बोला निश्चित ही उससे उत्तर प्रदेश में सीएम पद की दौड़ में लगे भाजपा नेताओं के बीच स्मृति के नंबर काफी बढ़ गये होंगे। यूपी विधानसभा चुनाव में नारी शक्ति (माया-स्मृति ईरानी) के बीच दबदबे की लड़ाई देखने को मिल सकती है। बताते चलें कि बीजेपी के गलियारों में सीएम की कुर्सी के लिए पहले से ही स्मृति के नाम की गूंज सुनाई दे रही थी, जिसको इस बहस ने और भी पंख लगा दिये।
माया की तरह ही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर भी स्मृति ईरानी ने इतना तगड़ा हमला बोला की राहुल के पास लोकसभा के भीतर नाखून चबाने के अलावा कुछ नहीं बचा। बाहर मीडिया के सामने बड़ी-बड़ी बातें करने वाले युवराज बोलना तो दूर, मुंह तक नहीं खोल पाये। राहुल ब्रिगेड जो जेएनयू और दलित छात्र की मौत पर चर्चा के लिए लगातार मोदी सरकार को घेरने की नियत से दबाव बना रही थी, वह सत्तारुढ़ दल की नेताओं के हमले से तिलमिला कर सदन से भाग खड़े हुए। राहुल अपनी राष्ट्रभक्ति साबित करने के लिए जिन दादा-दादी और पापा का सहारा लेते थे, उसी के बहाने भाजपा ने उन्हें घेरा। दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी का उदाहरण देकर केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने जब यह कहा कि सत्ता तो इंदिरा गांधी की भी गई थी, लेकिन उनके बेटे राजीव गांधी इस वजह से देशद्रोहियों के साथ तो नहीं मिल गये थे जो राहुल गांधी कर रहे हैं। सबसे हास्यास्पद यह रहा कि सदन के अंदर भले ही कांग्रेस जेएनयू और रोहित वेमुला के मुद्दों पर मोदी के मंत्रियों के धारदार तेवरों के सामने टिक नहीं पा रही थीं, लेकिन कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी एक अलग दुनिया में सैर कर रहे थे। उनको लगता था कि सरकार उनसे डरती है और जब वह बोलना शुरू करेंगे तो उन्हें रोकने की कोशिश की जाएगी। मजे की बात है कि सरकार पहले ही चर्चा के लिए तैयार हो चुकी थी। उस समय राहुल गांधी बाहर मीडिया से कह रहे थे कि मैंने चर्चा के लिए कहा है, लेकिन जब मैं बोलना शुरू करूंगा, तो आप देखना वह मुझे रोक देंगे। मैं संसद में बोलूंगा, लेकिन वह मुझे ऐसा नहीं करने देगी, क्योंकि सरकार मुझसे डरती है। राहुल ने आगे कहा, ‘आपने देखा होगा कि मैं जब भी बोलता हूं, वह मुझे रोक देते हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए है, क्योंकि मैं जो बोलता हूं, सरकार उससे घबराती है। जेएनयू मुद्दे पर कांग्रेस बैकफुट पर इसलिए भी दिखाई दी क्योंकि उसे मुस्लिमों का सहारा नहीं मिला था। उन्हें लगता था कि अगर जब वह जेएनयू कांड में देशद्रोह के आरोपी उमर खालिद के पक्ष में बोलेंगे तो हिन्दुस्तान के मुसलमान उनके साथ खड़े हो जाएंगे,लेकिन यह सोच राहुल की अपनी थी और हिन्दुस्तान का मुसलमान न तो राहुल गांधी की तरह था और न ही होगा। उमर खालिद के मसले पर देश के मुसलमानों की चुप्पी राहुल एंड टीम के लिए सदमे जैसे हालात थे।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि संसद में जेएनयू और दलित छात्र राहुल की आत्महत्या को लेकर मोदी सरकार पर जो हमले हो रहे थे,उसकी हवा निकालने में यूपी बीजेपी के नेताओं का अहम रोल रहा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय मंत्रियों स्मृति ईरानी, मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने दम पर पासा पलट दिया तो यूपी के ही नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मायावती की फजीहत हुई। हां, इस पूरे खेल में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव जरूर बचकर चले। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि देशद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सम्मान को एक घटना का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए। संसद में जेएनयू और दलित छात्र की मौत पर बहस हो रही थी तो दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यूपी में दलितों को लुभाने में जुटे थे। भले ही यह संयोग था, लेकिन बसपा के लिए यह खतरे की घंटी जैसा था। बीजेपी की ‘मार और धार’ से आहत विपक्ष ने राज्यसभा में डैमेज कंट्रोल की कोशिश जरूर की, लेकिन यहां भी उसके पास कहने को कुछ नहीं था। जेएनयू में मां दुर्गा को लेकर अभद्र भाषा के पोस्टरों और भस्मासुर का महिमामंडन किये जाने से नाराज बीजेपी ने इसके सहारे जहां पश्चिम बंगाल में वामपंथियों को आईना दिखाया, वहीं यूपी में मायावती पर हल्ला बोलकर दलित वोटरों को अपने पाले में खड़ा करने की कोशिशें जारी रखीं। लोकतंत्र के मंदिर में गैर भाजपा दलों की फजीहत हुई तो जनता की अदालत में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने घेरा। उत्तर प्रदेश पधारे अमित शाह ने लखनऊ और बहराइच दोनों जगह कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लिया। अमित शाह बहराइच में महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण व भवन का शिलान्यास करने आये थे। लगातार ऐसे आयोजनों के सहारे भाजपा दलितों पर डोरे डाल रही है। भाजपा अध्यक्ष ने महाराज सुहेलदेव की तारीफ के पुल बांधे तो जेएनयू प्रकरण पर राष्ट्रवाद का तराना छेड़ उत्तर प्रदेश भाजपा नेताओं को राष्ट्रवाद के मसले पर पीछे नहीं हटने का भी संकेत दिया। इस प्रकरण पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अन्य विपक्षी दलों पर हमलावर शाह ने यूपी का आगामी समर फतह करने के लिए आवाम को तरक्की के कई सब्जबाग दिखाए। उनकी राष्ट्रवाद की हुंकार पर समर्थकों की भीड़ ने भी भारत माता की जयकार के साथ सियासी धुव्रीकरण का संकेत दिया। बहराइच के बाद लखनऊ में भी अमित शाह का हमला जारी रहा। अपनी चुनावी रणनीति को अमली जामा पहनाते हुए जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारेबाजी की निंदाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी समेत विपक्षी दलों को अपनी स्थिति साफ करने की नसीहत दी। बहराइच के बाद लखनऊ में भी शाह राहुल गांधी पर हमलावर रहे। शाह ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) मामले को जन-जन और गांव-गांव ले जाने का आह्वान किया है। इस मुद्दे के सहारे कांग्रेस को घेरने में लगे शाह ने कहा कि भाजपा पूछ रही है कि जेएनयू में अफजल के समर्थन और भारत विरोधी नारों को कांग्रेस देशद्रोही मानती है या नहीं, लेकिन वह चुप्पी साधे हैं। शाह ने कहा कि जेएनयू जैसे मामलों में केंद्र सरकार और भाजपा का रुख पूरी तरह साफ है। इन पर नरमी और ढिलाई बरतने का सवाल ही नहीं उठता। केंद्र सरकार ऐसे लोगों पर कठोर कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है। बहरहाल, यह तय माना जाना चाहिए कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 2017 के लिए अपना एजेंडा सेट कर लिया है। बीजेपी वाले सपा और बसपा पर जातिवादी राजनीति का आरोप लगा रहे हैं और कहते घूम रहे हैं कि यूपी में दोनों दल दो दशक से सत्ता में काबिज रहे है। इसके बाद भी यूपी का विकास ठहर गया है। कांग्रेस ने भी कुछ नहीं किया। तीनों दल जातिवाद व तुष्टीकरण की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं। जिससे यूपी पिछड़ता जा रहा है। भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से जेएनयू मामले को जिस तरह गांव-गांव और जन-जन तक लेने जाने को उतावली दिख रही है, उससे यही संकेत हैं कि भाजपा प्रखर राष्ट्रवाद के सहारे मिशन 2017 पूरा करना जीतना चाहती है। यह ऐसा मुद्दा है जिस पर भाजपा हमेशा अन्य दलों से माइलेज ले जाती है। इसकी काट भी विरोधियों के लिए आसान नहीं रहती। वहीं स्मृति ईरानी को आगे करके बीजेपी यूपी में सत्ता के लिए ललायित बसपा नेत्री मायावती को अपनी नारी शक्ति का अहसास कराना चाहती है।