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ये हैं ‘दबंग’ के चौबे जी, कभी दोस्त के घर में लगाते थे झाड़ू-पोंछा

sujan4_1477035531पटना.सलमान खान के साथ फिल्म ‘दबंग’ और ‘दबंग 2’ में चौबे जी की भूमिका निभाने वाले एक्टर राम सुजान सिंह बिहार के पटना जिले के मनेर के रहने वाले हैं। मनेर के छोटे से गांव हल्दी छपरा से मुंबई तक का सफर सुजान के लिए आसान न था। संघर्ष के दिनों में उन्हें अपने दोस्त में घर में रहने के बदले झाड़ू-पोंछा लगाना पड़ता था। मुंबई में सिर छुपाने के लिए नहीं मिल रहा था जगह…
 
फिल्म ‘आखिर कब तक’ के प्रमोशन के लिए पटना आए सुजान कहते हैं कि एक्टर बनने का सपना लिए मुंबई गया तो सबसे पहले सिर छुपाने की जगह पाने की समस्या हुई। मेरे पास रेंट देने के लिए पैसे नहीं थे। एक दोस्त ने मुझे अपने साथ इस शर्त पर रखा कि मैं नियमित रूप से घर की सफाई करूं। रहने का ठिकाना मिलने के बाद मैंने काम की तलाश शुरू की। सालों तक लगा रहा तब जाकर आज कुछ नाम कमा पाया हूं।
 
ठाकुर के लिए गए थे ऑडिशन देने, बन गए चौबे जी
सुजान ने बताया कि फिल्म दबंग के लिए ऑडिशन चल रहा था। उसमें ठाकुर (नाई) के रोल के लिए मैं भी गया था। बाद में फिल्म के निर्देशक ने मुझे पुलिस वाले चौबे जी की भूमिका करने का मौका दिया। चौबे जी की भूमिका के बाद मेरी चर्चा होने लगी। अब तो कई लोग मुझे चौबे जी कहने लगे हैं।
 
बॉलीवुड के कई फेमस एक्टर के साथ किया काम
सुजान बॉलीवुड में धीरे-धीरे चर्चित एक्टर बनते गए। उसके बाद कई फेमस ऐक्टरों के साथ काम करने का मौका मिला। संजय दत्त के साथ फिल्म ‘जिला गाजियाबाद’, सुनील शेट्टी के साथ फिल्म ‘देसी कट्टा’ समेत कई फिल्मों में काम किया। सुजान कहते हैं कि आज जो भी हूं वह दर्शकों के प्यार के बदौलत ही हूं।
 
सीरियल हनुमान से शुरू किया था करियर
सुजान बताते हैं कि मुंबई में संघर्ष के दौरान पहला सीरियल संजय खान के ‘हनुमान’ में काम करने का मौका मिला। इसके लिए मुझे 750 रुपए मिले थे। काम पसंद आने पर मुझे 1500 रुपए प्रति एपीसोड मिलने लगे। इसके बाद कई सीरियलों में भी काम किया। पहली फिल्म ‘ओमकारा’ में काम करने का मौका मिला। फिर ‘दबंग’, ‘दबंग 2’, ‘जिला गाजियाबाद’, ‘आक्रोश’ और ‘पुलिसगिरी’ में काम करने का मौका मिला। फिल्म ‘गुंडे और गुड़िया,मुद्दे की बात’, ‘गांधीगिरी’ और ‘रॉबिनहुड के पोते’ आने वाली है।
 
पहले करते थे थियेटर
सुजान बताते हैं कि पटना में 1984 से ही थियेटर करता था। 1999 में मुंबई का रूख किया। कई सालों तक संघर्ष किया। इस दौरान घरवाले भी परेशान थे कि कुछ नहीं कर पा रहा है। मां कहती थी कि बेटा जो भी करना वह ईमानदारी से करना।

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