नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने एक विधि स्नातक की याचिका पर नोटिस जारी किए। विधि स्नातक ने शीर्ष अदालत सहित हर स्तर पर मौजूदा एवं पूर्व न्यायाधीशों के खिलाफ यौन प्रताड़ना की शिकायतों पर ध्यान देने के लिए स्थायी तंत्र बनाए जाने की मांग की है। विधि स्नातक ने आरोप लगाया है कि मई 2०11 में जब वह प्रशिक्षु के रूप में कार्यरत थी तो मार्गदर्शक न्यायाधीश ने यौन प्रताड़ना की थी।
अदालत ने केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) स्वतंत्र कुमार और अटार्नी जनरल जी. ई वाहनवती को नोटिस जारी करते हुए 14 फरवरी तक जवाब मांगा है। केंद्र सरकार को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के माध्यम से नोटिस जारी किया गया है। प्रधान न्यायाधीश पी. सतशिवम न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि इस समय हम हम याची द्वारा प्रतिवादी संख्या 2 न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) स्वतंत्र कुमार के खिलाफ लगाए गए लांछन/आरोपों पर कोई राय जाहिर नहीं कर रहे हैं।’’ नोटिस जारी करते हुए अदालत ने कहा ‘‘विभिन्न प्रार्थनाओं खास तौर से याचिका आवेदन में की गई प्रार्थना के आलोक में कि सभी स्तर के न्यायिक अधिकारियों सेवारत या सेवानिवृत्त चाहे वे किसी पद पर हों या नहीं हों के खिलाफ यौन प्रताड़ना के आरोपों की जांच के लिए आज की तारीख तक कोई तंत्र नहीं है हम इस पहलू पर विचार करने जा रहे हैं।’’ न्यायाधीशों द्वारा यौन प्रताड़ना किए जाने की शिकायत का समाधान करने के लिए स्थायी तंत्र तैयार करने के मुद्दे के महत्व को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि उसने मशहूर वकील फाली नारिमन और पी.पी. राव को अदालत की मदद के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है। अदालत ने कार्यालय को अर्जी की प्रति और सभी संबंधित कागजात विद्वान एमिकस क्यूरी एवं अटार्नी जनरल को मुहैया कराने का निर्देश दिया। अदालत ने यह आदेश एक पूर्व विधि प्रशिक्षु की याचिका पर दिया है। प्रशिक्षु ने सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार पर यौन प्रताड़ना का आरोप लगाया है। प्रशिक्षु की अर्जी पर सुनवाई प्रारंभ करते हुए प्रधान न्यायाधीश सतशिवम ने पूछा ‘‘कथित घटना की तारीख क्या है।’’ जब उन्हें यह बताया गया कि यह 28 मई 2०11 की घटना है उन्होंने सवाल किया कि आखिर इतने लंबे समय तक याची ने चुप्पी क्यों साधे रखी। प्रधान न्यायाधीश ने पूछा कि कानून की छात्रा होने के बावजूद उन्होंने इतने समय तक क्यों इंतजार किया। उन्होंने कहा ‘‘हमारा डर यह है कि देश में कई सेवा निवृत्त न्यायाधीश हैं और करीब 2० वर्ष बाद अगर कोई आरोप लगाता है तब तक न्यायाधीश 85 वर्ष के बुजुर्ग हो चुके होंगे।’’ इस बीच पूर्व प्रशिक्षु के आरोपों का सामना कर रहे शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय हरति न्यायाधिकरण (एनजीटी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने मीडिया संस्थानों एवं यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पूर्व प्रशिक्षु के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। एनजीटी के अध्यक्ष ने मीडिया संस्थानों और प्रशिक्षु से क्षतिपूर्ति के रूप में पांच करोड़ रुपये की मांग की है।