अद्धयात्म

रमई मंदिर में श्रद्धालु चढ़ाते हैं सांकल

dmरायपुर। छत्तीसगढ़ के सोरिदखुर्द स्थित रमई माता मंदिर में इन दिनों लोहे के सांकलों की ढेर लग गई है। जो भी दर्शन को पहुंच रहा है वह मनौती पूर्ण होने पर माता को सांकल अर्पित कर रहा है। नवरात्रि पर बड़ी संख्या में माता रमई के दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। राजिम से फिंगेश्वर होते हुए करीब 22 किलोमीटर दूर गुंडरदेही पंचायत के आश्रित ग्राम सोरिदखुर्द रमई माता का निवास स्थल माना जाता है। गांव से एक किलोमीटर दूर जंगल के बीच माता रमई बरसों से विराजित हैं। यहां बारहों महीने माता के दर्शन-पूजन के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। मंदिर के पुजारी रामधीन ने बताया कि त्रेता युग में वनवास काल पूरा होने पर भगवान रामचंद्र लंका से वापस अयोध्या जाते हुए यहां आए थे। इसलिए इसे रमईपाठ कहा जाता है। यहां के राम-जानकी मंदिर में मधुमक्खियों का छत्ता लगा हुआ है। भक्तजन पास से आते-जाते रहते हैं लेकिन मधुमक्खियां किसी को परेशान नहीं करती हैं।
मधुमक्खियों को छत्तीसगढ़ी में भांवर माछी कहते हैं। दुर्गा सप्तशती में वर्णित है कि देवी दुर्गा ने तीनों लोकों के हित में छह पैरों वाले भ्रमर का रूप धारण कर अरुण नामक दैत्य का वध किया था। तब से माता का एक नाम भ्रामरी पड़ा। क्षेत्र में मधुमक्खियों को माता का ही रूप माना जाता है। यहां आए श्रद्धालु रघुनाथ साहू का कहना है कि माता रमई पाठ स्थल को थोड़ी और सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए। श्रद्धालु के ठहरने के लिए धर्मशाला का निर्माण करा दिया जाए तो यहां आने वाले लोगों की संख्या और बढ़ेगी तथा तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्धि भी बढ़ेगी। इतिहासविद् डॉ बसुबंधु दीवान कहते हैं कि फिंगेश्वर के राजा ठाकुर दल गंजन सिंह के पिता विश्वनाथ सिंह ने शिकार के दौरान इस स्थल पर डेरा डाला था तो माता ने दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ किया था। तब से इस वंश के लोग माता को कुलदेवी मानते हैं। फिंगेश्वर की मौली माता व सोरिदखुर्द की माता रमई दोनों को क्षेत्र के लोग सगी बहन मानते हैं। आज भी मौली माता खदर की झोपड़ी में रहती हैं तो माता रमई कोसम पेड़ के नीचे बनी झोपड़ी में रहती हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहां मनौती मानते हैं उनकी मनौती माता जरूर पूरी करती हैं। खासकर यहां संतानहीन लोग संतान की कामना में आते हैं। उनकी मनौती पूर्ण होने पर वे यहां आकर लोहे की सांकल चढ़ाते हैं। बगरम पाठ लोगों के चढ़ाए हुए लोहे के सांकलों से भर गया है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि इन सांकलों को माता का झूलना बताया जाता है। मंदिर परिसर के आम के वृक्ष से बारहों मास पानी निकलता रहता है जिसे यहां आने वाले लोग माता का प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं।

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