दिल्लीराज्य

राज बन गए हैं 4500 साल पुराने ये पत्थर!

585-stone-10नई दिल्ली। लंदन से कुछ दूर सदियों पुराने पत्थर के अवशेषों का राज आज तक नहीं खुल पाया। इन्हें किसने और क्यों बनाया, क्या इनका रिश्ता एलियन से है, या फिर ये कोई जादुई करिश्मा है, या यहां होता था सामूहिक कत्ल, साढ़े चार हजार साल बीत जाने के बाद भी ये रहस्य बना हुआ है। अब हाल में ही ऐसे ही और अवशेषों की जानकारी मिली है यानी पुरातत्वविद और वैज्ञानिकों को एक बार फिर से एक अनसुलझा विषय मिल गया है।लंदन से कुछ मील की दूरी पर विलटशायर काउंटी शहर है। ये इलाका सदियों पहले बने अपने अदभुत निर्माणों के लिए जाना जाता है। ये निर्माण स्टोनहेंज के नाम से जाने जानते हैं। सिर्फ आम लोग ही नहीं दुनिया के खास लोग भी इस जगह को देखने आते हैं।हांलाकि पुरातत्व वैज्ञानिक अभी तक यहां के रहस्य की खोज कर रहे हैं कि आखिर ये कैसे बने और इन्हें किसने किस मकसद से बनाया लेकिन अब उनके सामने एक और चुनौती खड़ी हो गई है। स्टोनहेंज से ही कुछ और दूरी पर पुरातत्व वैज्ञानिकों को ठीक इसी तरह का एक और लेकिन इससे भी कहीं बड़ा निर्माण मिला है जिसे नाम दिया गया है सुपरहेंज।अब तक इतिहासकार और वैज्ञानिक जितना खोज पाए हैं उसके मुताबिक स्टोनहेंज का निर्माण काल तकरीबन 4500 साल पुराना है। स्टोनहेंज में तकरीबन 8 से 13 मीटर ऊंची शिलाओं को धरती में गाड़कर खड़ा करके एक चक्र बनाया गया था जो मिलकर एक बड़े से गोले के समान दिखाई पड़ता है।वैज्ञानिकों का अब तक का अनुमान है कि स्टोनहेंज का निर्माण तीन चरणों में किया गया होगा। पहला चरण ईसा से 2750 वर्ष पहले का है, जिसमें स्टोनहेंज के रहस्यमय छेदों निर्माण किया गया। इन छेदों का संख्या 56 है और इन्हीं के जरिए स्टोनहेंज की बाहरी परिधि बनी है। पुरातत्व वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी दौरान स्टोनहेंज के प्रसिद्ध हील स्टोन का भी निर्माण हुआ, जो मुख्य दरवाजे के बाहर की ओर है।स्टोनहेंज की बाहरी परिधि के भीतर 85 नीले पत्थरों के बना एक सर्कल है जिसका निर्माण काल ईसा से 2000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसे बनाने में इस्तेमाल किए गए पत्थर पैम्पशायर एवन स्थान से लाए गए होंगे क्योंकि आस पास के इलाके में इस तरह के पत्थर नहीं पाए जाते हैं। निर्माण के तीसरे चरण में स्टोनहेंज में 75 विशालकाय बलुआ पत्थरों को लगाया गया होगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि ये पत्थर एवेबुरी से 20 मील दूर के इलाके से लाए गए थे और उन्हें तराशने के बाद लगाया गया होगा।लेकिन पुरातत्व वैज्ञानिकों के साथ साथ आम लोगों के मन में यही सवाल उठ रहा है कि आखिर ये निर्माण किसने करवाया होगा और सबसे बड़ा सवाल ये कि बिना किसी क्रेन के इन पत्थरों को इस जगह पर कैसे लगाया गया होगा।

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