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राहुल ने छुट्टी पर भी ली सैलरी, आम आदमी होता तो चली जाती नौकरी: RSS

rahul-gandhi_1444121ई दिल्ली. कांग्रेस प्रेसिडेंट राहुल गांधी द्वारा फरवरी में ली गई छुट्टी एक बार फिर सुर्खियों में है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने मुखपत्र आर्गेनाइजर आरोप लगाया है कि राहुल ने छुट्टी पर रहते हुए संसद से बतौर सांसद मिलने वाली सैलरी और अलाउंस क्लेम किया है। अगर कोई आम आदमी इतने दिन छुट्टी पर रहता तो उसे सैलरी मिलना तो दूर उसकी नौकरी तक चली जाती। बता दें कि राहुल गांधी इस साल बजट सेशन के दौरान छुट्टी पर चले गए थे और 56 दिन बाद लौटे थे।
 
राहुल पर क्या लगाए गए आरोप?
* ऑर्गेनाइजर के लेटेस्ट एडिशन में पब्लिश रिपोर्ट ‘एक्सपोज राहुल गेट्स पे विदाउट वर्क’ में दावा किया गया है कि ऐसे ऑफिशियल डॉक्यूमेंट्स मिले हैं जो यह बताते हैं कि बजट सेशन के दौरान छुट्टी पर रहते हुए राहुल ने सारी सुविधाएं लीं। बता दें कि राहुल बजट सेशन शुरू होने से पहले 23 फरवरी को छुट्टी पर चले गए थे और अप्रैल 16 को वापस आए थे।
 
* रिपोर्ट के मुताबिक,”यह पैसा गांधी होने का है। यह आप राहुल गांधी से पूछिए जो गांधी खानदान के 44 साल के वंशज हैं। एक ओर किसी ऑफिस से 56 दिनों तक गायब होने पर आम आदमी को सैलरी नहीं मिलती। वहीं, दूसरी तरफ राहुल गांधी को न सिर्फ सैलरी मिली बल्कि एक दिन का पैसा भी नहीं काटा।” रिपोर्ट में लिखा गया है कि वाइस प्रेसिडेंट जब छुट्टी पर थे तब संसद अपना काम कर रही थी। उस दौरान मीडिया में उनकी गैर हाजिरी की खबरें थीं। संसद में उस वक्त लैंड बिल पर बहस चल रही थी।
 
क्या है नियम?
रिपोर्ट में नियमों का हवाला दिया गया है। उसके मुताबिक, 1954 में बने सांसदों के वेतन संबंधी नियम के सेक्शन 3 के तहत प्रत्येक सांसद को हर माह 50 हजार रुपए का भुगतान किया जाता है। यही नहीं संसद चलने के दौरान हर दिन संसद आने या उससे संबंधित किसी पॉर्लियामेंट्री कमेटी की बैठक में हिस्सा लेने के बाद 2 हजार रुपए का अलाउंस मिलता है। लेकिन यह अलाउंस तब दिया जाता है जब सेक्रेटरिएट के रजिस्टर पर उस मेंबर के साइन हों।
‘छुट्टियों की सजा नहीं सेलरी दी गई’
ऑर्गेनाइजर के मुताबिक, ‘’राहुल गांधी की छुट्टियों का मीडिया गवाह है। उनके संसद क्षेत्र के लोगों को भी इसकी जानकारी थी। पार्यिलामेंट में रखे उनके रजिस्टर पर कोई सिग्नेचर नहीं है। इसके बावजूद राहुल गांधी को न सिर्फ 50,000 रुपए की सैलरी दी जाती है बल्कि डेली स्टाइपेंड का भुगतान भी किया जाता है।’’ मुखपत्र में लिखा है- एक पब्लिक पर्सन होने के नाते उनका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है लेकिन इसके बावजूद भी जनता को यह नहीं पता था कि उनका लीडर कहां चला गया है? उन्हें अबसेंट होने की सजा नहीं दी गई बल्कि उन्हें उनकी पूरी सैलरी दी गई। वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उनको ब्रेक चाहिए था। नौकरी करने वाला कोई इतने दिनों तक गायब रहता तो उसकी नौकरी चली जाती।

 

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