पर्यटन
रेगिस्तान की जन्नत देखने के लिए बेस्ट रहेगा कुंभलगढ़ आने का प्लान
जिन पर्यटकों को इतिहास, स्थापत्य और विरासत को जानने की ललक है उनके लिए राजस्थान का कुंभलगढ़ बेस्ट डेस्टिनेशन हो सकता है। यह न सिर्फ महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है बल्कि इतिहास, प्रकृति, संस्कृति और रेगिस्तान की जन्नत है। यहां लगभग सभी मौसम में जाया जा सकता है।
कुंभलगढ़ किला
राजसमंद जिले में अरावली पहाड़ियों के पश्चिमी सिरे पर बने कुंभलगढ़ के विशाल किले का शुमार राजस्थान के सबसे दुर्गम पहाड़ी किले के रूप में होता है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है इस किले का निमार्ण राणा कुम्भा ने पन्द्रहवीं शताब्दी में करवाया था। यही वो किला है जिसकी एक ओर मारवाड़ और दूसरी ओर मेवाड़ की सीमाएं लगती थीं। यूं तो कुंभलगढ़, उदयपुर से करीब 80 किमी की दूरी पर है, लेकिन कुछ घुमावदार पहाड़ी रास्तों की वजह से यहां पहुंचने में करीब ढाई घंटे लग जाते हैं। रास्ते में दिखती हरियाली, पहाड़ी नदी पश्चिमी राजस्थान की शुष्कता के विपरीत मन को तरलता दे जाती है। कुंभलगढ़ किले की खास पहचान है इसकी भव्य बाहरी दीवारें। कहते हैं कि चीन की दीवार के बाद लंबाई की दृष्टि से 38 किमी तक लगातार फैलाव लिए हुई इन दीवारों की गणना होती है। किले की बाहरी दीवारें 15 फीट चौड़ी हैं। किले में सैकड़ों जैन व हिंदू मंदिर हुआ करते थे। अब इनमें से ज्यादातर के अवशेष ही रह गए हैं। इनमें से वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, गणेश और चारभुजा मंदिर प्रमुख हैं।
कुंभलगढ़ से 50 किमी दूर स्थित राणकपुर का मुख्य मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थांकर आदिनाथ को समर्पित है। इसके आलावा मुख्य मंदिर के आस पास चार और छोटे छोटे मंदिर भी बने हैं। आदिनाथ के इस मंदिर के चार प्रवेश होने के कारण इसे चौमुखा मंदिर भी कहा जाता है।
कुंभलगढ़ से 48 किमी दूर ये प्रसिद्ध घाटी महाराणा प्रताप के अद्भुत शौर्य व उनके वफादार चेतक की बहादुरी की याद दिलाती है। यहां पर राणा प्रताप के सम्मान में एक स्मारक और संग्रहालय भी बनाया गया है। इस संग्रहालय में पूरा इतिहास दिखता है।