जीवनशैली

रोज-डे के साथ वैलेंटाइन वीक की शुरुआत और गुलाब के साथ बोले ये शेर…

ऐसा इसलिये है कि फरवरी का महीना और बसंत ऋतु, दोनों साथ-साथ यात्रा करते हैं।  फरवरी में रोज-डे के साथ वैलेंटाइन वीक की शुरुआत 7 फरवरी से हो जाती है। लोग रोज डे के दिन प्यार के रूप में या दोस्त के रूप एक दूसरे को पीले, लाल, सफेद, गुलाबी रंग के गुलाब देते देते हैं।
रोज-डे के साथ वैलेंटाइन वीक की शुरुआत और गुलाब के साथ बोले ये शेर...
इज़हार-ए-इश्क़ का प्रतीक बन गया गुलाब सौन्दर्य में नयेपन और सृजन का अहसास कराता है।  शायर अपनी इन गुलाबी अनुभूतियों को कलमबंद करते हैं।  आईए पढ़ते हैं मशहूर शायरों के अहसास, गुलाब के फूल पर-

तस्वीर मैंने मांगी थी शोख़ी तो देखिये,
इक फूल उसने भेज दिया है गुलाब का !
 ~शादानी

आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर
~शकेब जलाली

गुलाब की कली ‘सीमा’ निखरी है जब

तुम्हारे इश्क़ की शबनम की बूँद पी मैंने
~सीमा शर्मा मेरठी

हमेशा हाथों में होते हैं फूल उन के लिए
किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं
~अनवर शऊर

इक महकते गुलाब जैसा है
ख़ूब-सूरत से ख़्वाब जैसा है

मैं उसे पढ़ती हूँ मोहब्बत से
उस का चेहरा किताब जैसा है
~शबाना यूसुफ़

गुलाब था कि महकने लगा मुझे छू कर
कलाई थी कि बहुत मरमरीं हुई मुझ से
~आतिफ़ कमाल राना

छू लेंगे तेरा जिस्म तो खिलते रहेंगे फूल
शहर-ए-वफ़ा में इश्क़ के हम दस्तकार हैं
~अज्ञात 

दिल में छप कर भी ख़ुशबुएँ देगी
हर तमन्ना गुलाब है प्यारे
~नवनीत शर्मा

मैं ने पूछा कि प्यार है मुझ से
उस ने कर दी गुलाब की बारिश
~अमित अहद

कभी गुलाब से आने लगी महक उस की
कभी वो अंजुम ओ महताब से निकल आया
~महबूब ज़फ़र

अपने दिमाग़ में तो अब ये बसी हुई है
बेहतर तिरे पसीने से हो गुलाब शायद
~हफ़ीज़ जौनपुरी

वो क़हर था कि रात का पत्थर पिघल पड़ा
क्या आतिशीं गुलाब खिला आसमान पर
~ज़फ़र इक़बाल

ख़याल-ए-हुस्न की मख़मल पे तार-ए-इम्काँ से
कभी गुलाब कभी माहताब बुनता हूँ
~कामरान नदीम

अटा है धूल से कमरा है ताक़ भी सूना
कभी गुलाब सजे थे चराग़ जलता था
~क़य्यूम ताहिर

काँटों के ख़ौफ़ से भी लरज़ते हो तुम ‘मुनीर’
और घर भी चाहते हो सजाना गुलाब से
~मुनीर सैफ़ी

गुनाह मेरे याद कर के ज़ख़्म सारे हँस पड़े
लहू लहू बदन मिरा खिला गुलाब हो गया
~सुहैल अहमद ज़ैदी

शाख़-ए-गुलाब लगती है डाली बबूल की
मौसम के साथ सारी लचक ख़त्म हो गई
~मासूम अंसारी

मैं जितनी बार पढ़ूँ कैसे कैसे रंग भरूँ
तिरा गुलाब सा चेहरा मुझे किताब लगे
~जमील मलिक

सुब्ह को आप हैं गुलाब का फूल
दोपहर को है आफ़्ताब का रंग
~अकबर इलाहाबादी

उसे न देख महकता हुआ गुलाब है वो
न जाने कितनी निगाहों का इंतिख़ाब है वो
~अफ़ज़ल इलाहाबादी

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