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लोकपाल विधेयक राज्यसभा में पारित, लोकसभा में कल होगी चर्चा

logनयी दिल्ली (एजेंसी)। भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर प्रावधानों वाले बहुचर्चित लोकपाल विधेयक को भाजपा एवं वाम सहित अधिकतर दलों के समर्थन से आज राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक  2011 दो साल से उच्च सदन में लंबित था और आज करीब पांच घंटे की चर्चा के बाद इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। सपा ने हालांकि इस विधेयक को देश हित के विरूद्ध करार देते हुए चर्चा के दौरान सदन से वाकआउट किया। प्रधानमंत्री का पद कुछ सुरक्षा प्रावधानों के साथ इस प्रस्तावित कानून के दायरे में आएगा। सदन ने विधेयक पर लाये गये सभी सरकारी संशोधनों को ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया जबकि वाम सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को मत विभाजन में खारिज कर दिया। उच्च सदन में पारित होने के बाद यह विधेयक अब फिर से लोकसभा में जायेगा। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी थी लेकिन नये सरकारी संशोधनों के कारण विधेयक पर अब निचले सदन की दोबारा मंजूरी ली जायेगी। गौरतलब है कि समाजसेवक अन्ना हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धि में लोकपाल विधेयक संसद से पारित कराने की मांग पर अनशन कर रहे हैं। उन्होंने मौजूदा सरकारी लोकपाल विधेयक का पुरजोर समर्थन किया है। हजारे यह भीोषणा कर चुके हैं कि मौजूदा विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद वह अपना अनशन खत्म कर देंगे। हालांकि अन्ना टीम से अलग होकर आम आदमी पार्टी बनाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने इस विधेयक को जोकपाल बताते हुए इसे खारिज कर दिया है। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार हमेशा से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम के पक्ष में रही है। उन्होंने कहा कि इसी मकसद से सरकार व्हिसल ब्लोअर  भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन विधेयक सहित तमाम विधेयक लायी है। ऐसे कई विधेयक लोकसभा एवं राज्यसभा में लंबित हैं। उन्होंने उम्मीद जतायी कि जिस तरह से लोकपाल को लेकर सदन में आम सहमति बनी है उसी तरह अन्य विधेयकों के बारे में आम सहमति बनाकर उन्हें संसद की मंजूरी दिलवायी जायेगी। उन्होंने उम्मीद जतायी कि इस विधेयक की तर्ज पर राज्य भी ऐसे ही लोकायुक्त विधेयक पारित करेंगे। उन्होंने हालांकि कहा कि केंद्र राज्यों को निर्देश नहीं दे सकता। प्रधानमंत्री पद को इस कानून के दायरे में लाए जाने के मुद्दे पर सिब्बल ने कहा कि इस संबंध में आम सहमति थी हालांकि कुछ सदस्यों की भावना अलग है जो ऐसा किए जाने के पक्ष में नहीं हैं। लोकपाल में न्यायाधीशों को ही अध्यक्ष एवं सदस्य बनाने जाने के औचित्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जटिल कानूनी पक्ष जुड़े होने के कारण ऐसे मामलों में न्यायाधीशों को अधिक अनुभव रहता है। उन्होंने लोकपाल में निर्वाचित प्रतिनिधियों को सदस्य नहीं बनाये जाने को उचित ठहराते हुए कहा कि उनको सदस्य बनाने से हितों का टकराव होगा।  सिब्बल ने माना कि अकेले लोकपाल कानून बन जाने से ही देश में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए देश में अमीर और गरीब के बीच जो खाई है उसे दूर करना होगा। आर्थिक विभेद को मिटाना होगा। उन्होंने लोकपाल विधेयक के मामले में सहमत होने पर विपक्ष  वाम एवं अन्य दलों का आभार जताया और इसे सदन की सामूहिक बुद्धिमत्ता करार दिया।     

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