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लोकायुक्त के लिए यूपी सरकार ने 30 मृत जजों को किया था शामिल

justice-vy-chandrchood-5694cfe600fed_exlयूपी में लोकायुक्त पद को लेकर अखिलेश सरकार की मनमानी के नए-नए किस्से सामने आ रहे हैं, लोकायुक्त के लिए बनाए गए पैनल में अखिलेश सरकार ने 30 ऐसे जजों के नाम भी शामिल कर लिए जो अब इस दुनिया में ही नहीं हैं।

इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने यूपी में लोकायुक्त चयन के लिए बने पैनल के बारे में कई दिलचस्प खुलासे किए हैं। मसलन लोकायुक्त के लिए जो लिस्ट बनी ‌थी उसमें एक ऐसे जज का भी नाम था जो 1951 में ही सेवानिवृत्त हो चुके थे।

हैरतअंगेज रूप से लिस्ट में कुल 396 नाम थे, जिनमें से तीन सदस्यीय कमेटी को लोकायुक्त का चयन करना था। इस समिति में खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या और हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस वाईवी चन्द्रचूड शामिल थे।

लेकिन कई बैठक के बाद भी समिति किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो सकी। हालांकि हर बार इसके लिए प्रदेश सरकार के रवैये पर ही उंगली उठी। जिस नाम पर मुख्य न्यायाधीश को आपत्ति होती उसी नाम के चयन पर प्रदेश सरकार की ओर से जोर दिया जाता।

 

सूत्रों के अनुसार लोकायुक्त पद के लिए प्रदेश सरकार पूरी तरह अपनी मनमानी पर ही उतारू थी। इसका एक नजारा उस समय भी देखने को मिला जब मुख्य न्यायाधीश की आपत्तियों को दरकिनार करने के लिए सरकार ने लोकायुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में ही संविधान संसोधन कर मुख्य न्यायाधीश का नाम चयन समिति से निकाल दिया।

प्रदेश में लोकायुक्त के पद को लेकर सालभर चले ड्रामे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते 16 नवंबर को स्वयं ही जस्टिस वीरेन्द्र सिंह के नाम पर मुहर लगा दी थी। लेकिन बाद में उनके बारे में भी कई खुलासे हुए और जस्टिस वाईवी चन्द्रचूड ने भी उनके नाम पर आपत्ति जता दी।

नतीजतन सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वीरेन्द्र के शपथ ग्रहण पर भी रोक लगा दी। उसके बाद से ही मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका पड़ा है। दूसरी ओर अखबार ने इस संबंध में कई दिलचस्प खुलासे करते हुए बताया कि लोकायुक्त चयन समिति की 28 जनवरी 2015 को हुई बैठक में मुख्यमंत्री के साथ नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य शामिल थे उसमें कुल 396 नाम रखे गए थे।

जिनमें 41 नाम तो देश के मुख्य न्यायाधीशों के हैं, 28 सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों के नाम, 150 सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज, इलाहाबाद हाइकोर्ट के 76 मौजूदा जज और देश की विभिन्न हाइकोर्ट के 101 पूर्व जजों के नाम शामिल थे।

 

इनमें से मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष केवल पूर्व जज रवीन्द्र सिंह के नाम पर ही सहमत हो पाए थे। लेकिन जस्टिस रवीन्द्र सिंह के नाम पर आपत्ति जताते हुए हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस और चयन समिति के तीसरे सदस्य वाईवी चन्द्रचूड ने मुख्यमंत्री को छह खत लिखे थे।

इसके अलावा राज्यपाल राम नाईक ने भी मुख्यमंत्री को तीन खत लिखकर उन्हें लोकायुक्त चयन के लिए नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश के संग बैठक करने को कहा था।

एक खत में तो राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के जस्टिस रवीन्द्र सिंह के नाम पर अड़ने और इसके लिए मुख्य न्यायाधीश पर दबाव बनाने का भी जिक्र किया था। वहीं मुख्यमंत्री ने चीफ जस्टिस को खत लिखकर कहा था कि इस मसले पर लगातार उनसे सलाह ले पाना संभव नहीं है।

 

वहीं रवीन्द्र सिंह के नाम पर मुख्य न्यायाधीश ने मुख्यमंत्री को लिखे खत में बताया था कि रवीन्द्र सिंह सपा मुखिया मुलायम सिंह की राजनीतिक कर्मस्‍थली मैनपुरी के रहने वाले हैं। उनके भाई और दो बेटे सपा सरकार के अधिवक्ताओं के पैनल में भी हैं।

जस्टिस वीरेन्द्र सिंह की नियुक्ति पर भी यह जानकारी सामने आई है कि 16 दिसंबर की मीटिंग में मुख्यमंत्री ने मुख्य न्यायाधीश को इस बात का आश्वासन दिया था कि सुप्रीम कोर्ट को भेजे जाने वाले नामों की सूची में वीरेन्द्र ‌सिंह का नाम नहीं दिया जाएगा लेकिन सरकार ने अपनी बात से मुकरते हुए वीरेन्द्र सिंह का नाम भी सूची में भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हीं के नाम पर मुहर लगा दी। हालांकि इस मुद्दे पर मुख्य न्यायाधीश चन्द्रचूड की आपत्ति सामने आने के बाद सर्वोच्च अदालत ने जस्टिस वीरेन्द्र सिंह के शपथ ग्रहण पर रोक लगा दी। जिसके कारण प्रदेश सरकार के सामने एक बार फिर शर्मनाक स्थि‌ति पैदा हो गई।

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