विश्व में तकनीक के मामले में अव्वल, फिर भी कहलाता है ‘बूढ़ों का देश’
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टोक्यो : जापान एशिया ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी तकनीक के दम पर राज करता आया है। तकनीक की बात कहें तो पूरी दुनिया में इसका बोलबाला है। हम जब भी रोबोट के काम करने की बात करते हैं तो भी हमारे जहन में सबसे पहला नाम यदि कोई आता है तो वह जापान ही होता है। लेकिन इतना सब कुछ होने पर भी इस देश को बूढ़ों का देश कहा जाता है। यह सुनकर भले ही आपको हैरत हो लेकिन यह सच है। इस सच से यहां की सरकार भी वाकिफ है। सरकार के लिए यह खौफनाक सच इसलिए है क्योंकि जापान में करीब 30 फीसद आबादी 65 वर्ष की उम्र की है। एशिया में करीब 48 देश आते हैं। यदि यही हाल रहा तो 2050 तक 65 वर्ष की आयु वाले लोगों की आबादी करीब चालीस फीसद होगी। इतना ही नहीं 2050 तक जापान की आबादी में 30 फीसद की गिरावट से सरकार हिली हुई है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 1 जुलाई 2018 को जापान की आबादी 127,185,332 थी। यही वजह है कि इसको बूढ़ों का देश कहा जाता है। जापान के लोगों की औसत आयु 82 वर्ष है जो कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है। जापान की पहचान एक दूसरी चीज के लिए भी होती है वो है काम के प्रति लोगों का रुझान। दरअसल, यहां पर लोग अपने काम पर दिन का ज्यादा समय बिताते हैं। पिछले वर्ष जापान को लेकर एक रिपोर्ट आई थी। इसमें बेहद चौकाने वाली बातें सामने निकलकर आई थी। इसके तहत बताया गया था कि यहां के लोग आपस में रिलेशनशिप बनाने में विश्वास नहीं करते हैं। सरकार देश की आबादी बढ़ाने के लिए कई तरह की योजनाएं भी लाई हैं। यहां पर पहला बच्चा होने पर पैरेंट्स को 1 लाख येन यानी की करीब पौन दो लाख रुपए, दूसरा बच्चा पैदा होने पर 3 लाख रुपए और चौथा बच्चा होने पर सात लाख रुपए का नगद इनाम देती है। जापान का बर्थ रेट महज 1.46 है, जो देश के लिए चिंता का विषय है। जापान को लेकर एक दूसरा चौकाने वाला तथ्य ये भी है कि यह दुनिया का ऐसा सबसे बड़ा देश है जहां आत्महत्या करने की दर सर्वाधिक है। इसमें भी तीस वर्ष की आयु वालों की संख्या सबसे अधिक है। यहां पर आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन और बेरोजगारी है। यह तथ्य नेशनल पॉलिसी एजेंसी ने उजागर किए हैं। रिपोर्ट की मानें तो जापान में हर 15 मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। अकेले 2009 में ही यहां पर करीब 30000 लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जान दी थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि 2006 तक यहां पर आत्महत्या करने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक थी। जापान की गिरती जनसख्ंया भविष्य में यहां की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव डाल सकती है।
जापान में वर्ष 2015 तक जन्मदर में गिरावट दर्ज की गई है। जापान में सौ फीसद साक्षरता दर है इसके बावजूद यहां की अधिकतम मृत्युदर, आत्महत्या के मामले और बेरोजगारी बहुत बड़ा सवाल उठा रही है। भविष्य की बात करें जापान के लिए यह वास्तव में ही चिंता का विषय है। जापान के बाद ग्रीस, जर्मनी, पुर्तगाल, फिनलैंड, बुल्गारिया, स्वीडन, लातविया और माल्टा भी ऐसे देशों की सूची में आते हैं जहां 65 वर्ष की आयु वाले काफी लोग हैं। कम जन्मदर या कम आबादी की समस्या से केवल जापान ही नहीं जूझ रहा है। इस लिस्ट में कुछ दूसरे देशों का भी नाम शामिल है। यहां प्रति महिला फर्टिलिटी रेट केवल 1.25 है। देश में फैमिली प्लानिंग की पॉलिसीज 1960 में ही आ गई थी। एक पॉलिसी के अंतर्गत तो हर महीने के तीसरे बुधवार को ‘फैमिली डे’ घोषित कर दिया गया है। यह सब कुछ देश की आबादी बढ़ाने के लिए किया गया है। जिन लोगों के पास एक से ज्यादा बच्चे हैं उन्हें नकद रकम भी दी जाती है। डेनमार्क की घटती जनसंख्या से सरकार परेशान है। यहां बच्चे पैदा करने पर सरकार पैरेंट्स को करीब 10 लाख रुपए का इनाम देती है। सरकार की ओर से एक एड कैंपेन भी चलाया जा रहा है। यहां की आबादी कम होने की वजह से सरकार ने बच्चे पैदा न करने वाले दंपत्तियों पर टैक्स लगाने तक का प्रावधान किया है। ऐसे लोगों पर 15 से 20 फीसदी तक का इनकम टैक्स लगाया जाता है।
इसके अलावा जिन परिवारों में दो से ज्यादा बच्चे हैं सरकार उनकी आर्थिक मदद करती है। दुनिया में सिंगापुर में महिलाओं का फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे कम है। यहां प्रति महिला केवल 0.8 बच्चे हैं। इसी के चलते 9 अगस्त 2012 को सरकार ने यहां नेशनल नाइट का आयोजन किया था। इसका मकसद आपसी रिलेशन बनाने के लिए पैरेंट्स को प्रेशर करना था। तुर्की सरकार की तरफ से दो से अधिक बच्चे पैदा करने परपैरेंट्स को 300 डॉलर का इनाम दिया जाता है। साल 2015 में इस पॉलिसी की घोषणा की गई थी। यहां मां बनने वाली महिलाओं को फुल टाइम के वेतन पर पार्ट टाइम जॉब भी दी जाती है। इसके अलावा जो महिलाएं नौकरीपेशा नहीं हैं, उन्हें बच्च पैदा करने पर करीब 50 हजार रुपए नगद राशि दी जाती है। इटली में भी घटती जनसंख्या देश के लिए चिंता का कारण है। यहां प्रति महिला फर्टिलिटी रेट महज 1.43 है, जो यूरोप के औसत 1.58 से भी कम है। इसके लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं। रूस में भी कम आबादी को लेकर सरकार ने कई तरह की योजनाएं शुरू की है। इसमें पैरेंट्स को आर्थिक मदद देना भी शामिल है।