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शादी के बाद हाथों की मेंहदी नहीं छूटी और जंगल बचाने को ठानी, लेडी टार्जन के नाम से मशहूर है महिला, अब मिलेगा पद्मश्री सम्मान

राँची/घाटशिला : ‘जंगल बचाओ अभियान’ को एक नई दिशा देने वाली आदिवासी महिला जमुना टुडू को लोग ‘लेडी टार्जन’ के नाम से भी बुलाते हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने का घोषणा किया है। इससे न सिर्फ जमुना टुडू और उनका परिवार, बल्कि सैकड़ों महिलाएं और सभी ग्रामीण काफी फक्र महसूस कर रहे हैं। जंगल में लकड़ी काटने की सोच से लेकर पद्मश्री तक का सफर जमुना टुडू के लिए आसान नहीं रहा। इस दौरान उन्हें कई सामाजिक बेरियां तोड़नी पड़ी। लोगों के ताने सुनने पड़े और कई बार जंगल के माफियाओं से खूनी संघर्ष भी भी हुआ। जमुना टुडू ने इस अभियान की शुरुआत लगभग 25 वर्ष पहले झारखंड के पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे घाटशिला के मुटुरखाम गांव से की थी। एक आदिवासी महिला ओड़िसा से ब्याह कर आती है और कुछ दिनों के बाद ही गांव और समाज की परम्पराओं के अनुसार जंगल से लकड़ी काटकर लाने के लिए जाती है, वहां पेड़ों को कटता देख उन्हें काफी दुःख हुआ और उन्होंने इसे बचाने का प्रण ले लिया। ससुराल आई नई-नवेली दुल्हन जिसकी शादी की मेंहदी भी अभी नहीं उतरी थी, वह जंगल बचाने की बात करने लगी। यह बात पूरे गांव में फैल गई, एक सुर में सभी ने जमुना टुडू की इस बात पर असहमति जतायी। जंगल से लकड़ी काटकर लाने को परम्परा और जीवन-यापन की बता बताकर विरोध किया। वहीं, जंगल बचाने का प्रण ले चुकी जमुना टुडू भी अडिग थी, उन्होंने अपने आसपास की महिलओं से संपर्क बनाया और उन्हें जंगल बचाने को लेकर प्रेरित करने लगी, वह महिलाओं को इसका लाभ बताने लगी। काफी समझाने के बाद गांव की दो महिलाएं जमुना के इस अभियान का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गईं। घर का काम खत्म करने के बाद गांव की दोनों महिलओं के साथ पानी का बोतल, लाठी-डंडे और पारम्परिक हथियारों के साथ मुटूरखाम जंगल में जाती थी और वन माफियों के खिलाफ ‘रणचंडी’ का रूप धारण कर लेती थी। सभी महिलाएं माफियाओं को जंगल से खदेरने का काम करने लगीं। इस दौरान इनका समाना ससुराल के लोगों से भी हुआ, जिन्हें जमुना ने अपनी महिला साथियों की मदद से समझाया। समय के साथ-साथ पूरे गांव की महिलाओं के साथ-साथ पुरुष, बच्चे और गांव के कुत्ते तक इस अभियान का हिस्सा बनने लगे। एक दिन ऐसा भी आया जब गांव के लोग आपसी सहमती से तीन शिफ्ट में जंगल की पहरेदारी करने लगे।

1998 में जमुना टुडू की अध्यक्षता में ग्राम प्रबंधन और वन संरक्षण समिति का गठन किया गया। इसके तहत ‘जंगल बचाओ अभियान’ का कारवां आगे बढ़ाया गया, जिसे अब आसपास के गांवों में भी लोग जानने लगे हैं। जमुना अपनी टोली के साथ दूसरे गांवों में जाकर भी जंगल बचाने को लेकर लोगों को जागरूक करने लगी। जंगल बचाओ अभियान के दौरान जमुना टुडू और इनकी महिला साथियों का जंगल माफियों के साथ कई बार खूनी संघर्ष भी हुआ। कई बार वन माफियाओं ने जमुना टुडू पर जानलेवा हमला भी किया, जिसमें वह और उनके साथी घायल भी हुए। समय के साथ-साथ सरकारी मदद भी इनके अभियान को मिलने लगी। वन विभाग ने जमुना टुडू और अन्य महिला साथियों को पूरे पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र में जंगल बचाओ अभियान का ब्रांड एम्बेसडर बना दिया।

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