उत्तराखंडराज्य

शूरवीर की कक्षा में विज्ञान मुस्कान और गणित खेल

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है जूनियर हाईस्कूल लाटा। यहां बच्‍चों के लिए न विज्ञान गूढ़ रहस्य है और न ही गणित पहेली।

उत्तरकाशी: कभी मौका मिले तो उत्तरकाशी जिले के लाटा गांव स्थित जूनियर हाईस्कूल जरूर जाइए। शायद सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर आपकी धारणा बदल जाए। विज्ञान और गणित की पढ़ाई के लिए दूर-दूर के गांवों से बच्चे यहां आते हैं। कक्षा छह से आठवीं तक के इस स्कूल में पढ़ रहे कुल 55 छात्र-छात्राओं के लिए न विज्ञान गूढ़ रहस्य है और न ही गणित पहेली। इन दो विषयों में करीब 40 बच्चों के अंक 60 फीसद अथवा इससे अधिक हैं।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है भटवाड़ी ब्लाक का लाटा। जूनियर हाईस्कूल लाटा में यह कक्षा है 59 साल के शिक्षक शूरवीर सिंह खरोला की। इस कक्षा से कभी कोई बच्चा बंक नहीं मारता। खरोला की खासियत है कि जब विज्ञान पढ़ाते हैं तो इंद्रधनुष को समझाने के लिए फव्वारे को मॉडल की तरह उपयोग करते हैं और गणित की कक्षा के लिए बाकायदा चार्ट का इस्तेमाल होता है। कक्षा आठ में पढ़ने वाली गैरी गांव की आंचल से पूछिए इंद्रधनुष कैसे बनता है।

जवाब में फौरन फुलवारी के पास ले जाती है और धूप में सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने वाला फुव्वारा चलाते हुए प्रकाश के नियम गिना देती है। कॉन्सेप्ट एकदम क्लीयर। कहती है कि वह चार किलोमीटर दूर से पैदल स्कूल आती है।जखोल गांव का हरदेव रमोला कक्षा छह का छात्र है। शूरवीर की शैली का आकर्षण ही था कि हरदेव ने 12 किलोमीटर दूर लाटा में दाखिला लिया। जबकि उसके गांव के पास तीन जूनियर हाईस्कूल और हैं। वह गर्व से बताता है कि ‘छमाही इम्तेहान में गणित और विज्ञान में मेरे नंबर 75 फीसद थे।’

प्रयोगात्मक पढ़ाई के हैं पक्षधर

टिहरी जिले के प्रतापनगर तहसील के भेंगी गांव निवासी शूरवीर की वर्ष 1981 में नौकरी लगी। 1982 में उनकी तैनाती जूनियर हाईस्कूल संगलाई उत्तरकाशी में हुई तो विषय मिले विज्ञान और गणित। शूरवीर बताते हैं कि बच्चे अक्सर विज्ञान और गणित से बचते थे। बस उन्होंने बच्चों में दोनों विषयों के प्रति रुचि जगाने की ठानी और शुरू हुआ प्रयोगों का दौर। 

नतीजे सुखद थे तो फिर रुके नहीं। वर्ष 2001 में एनसीईआरटी ने उन्हें  कार्यशाला में आमंत्रित किया और प्रयोगों को सराहना मिली। वर्ष 2002 में उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह डायट में प्रशिक्षु शिक्षकों के सामने भी प्रस्तुतिकरण देते रहते हैं। शूरवीर के लिए अध्यापन प्रोफेशन नहीं जुनून है। वे यात्रा में हों या घर अथवा बाजार में, नए-नए प्रयोगों पर मंथन जारी रहता है। 

ट्रैफिक लाइट कैसे काम करती है यह समझाने के लिए उन्होंने बच्चों को मोबाइल फोन पर बाकायदा वीडियो क्लीपिंग दिखायी। उपग्रह की कार्यप्रणाली को भी उन्होंने मोबाइल फोन पर वीडियो क्लीपिंग से ही समझाया। वह कहते हैं कि ’15 बच्चे ऐसे हैं जिनके अंक 60 फीसद से कम थे। इनको स्कूल की छुट्टी के बाद पढ़ाता हूं। क्योंकि क्षमताएं तो सबमें हैं।’

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