नई दिल्ली: असम और उत्तर प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बनाए जा रहे कानूनों के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार पूरे देश में इस तरह की नीति को लागू करेगी? मोदी सरकार ने संसद में इसका जवाब दिया है। बीजेपी के ही एक सांसद की ओर से लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने शुक्रवार को कहा कि इस तरह के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं चल रहा है।
बीजेपी सांसद उदय प्रताप के सवाल का जवाब ‘ना’ में देते हुए मंत्री ने कहा, ”अंतरराष्ट्रीय अनुभव दिखाता है कि बच्चों की एक निश्चित संख्या के लिए कोई भी जबरदस्ती या फरमान का परिणाम प्रतिकूल होता है। इसकी वजह से जनसांख्यिकीय विकृतियां होती हैं, बेटों को प्राथमिकता देते हुए गर्भपात, बेटियों का परित्याग, यहां तक कि कन्या भ्रूण हत्या होती है।” लिखित जवाब में उन्होंने कहा कि अंतत: इससे लिंगानुपात का संतुलन बिगड़ता है।
मोदी सरकार में हाल ही में मंत्री बनाई गईं पवार का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि असम और उत्तर प्रदेश में नई जनसंख्या नीति को लेकर बहस छिड़ी हुई है। बीजेपी शासित दोनों राज्यों में दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को कई तरह की सुविधाओं से वंचित करने की तैयारी चल रही है। पवार ने यह भी कहा कि केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बिना सख्ती किए जनसंख्या को नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की है।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि देश के 28 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 2.1 की प्रतिस्थापना स्तर की जन्मदर को हासिल कर चुके हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि 2027 तक भारत की जनसंख्या 146.9 करोड़ होने का अनुमान है। मंडाविया ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का उल्लेख करते हुए कहा, ”वर्ष 2005-06 में जन्मदर 2.7 थी जो 2015-16 में घटकर 2.2 रह गई है…36 में से 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने 2.1 या इससे कम की जन्मदर को हासिल कर लिया है। मंत्री ने बताया कि किशोरावस्था में जन्मदर 16 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत रह गई है।