अद्धयात्मफीचर्ड

सभी बाधाओं को समाप्त करने वाला है शक्ति का तीसरा स्वरूप देवी चंद्रघंटा

दस्तक टाइम्स/एजेंसी-
maa chandraghanta-600नवदुर्गा के तीसरे स्वरूप में देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, शक्ति का तीसरा स्वरूप उपासक को सभी बाधाओं को समाप्त करने वाला है । इनकी साधना से उपासक को सुख, सुविधा, धन ऐश्वर्य, प्रेम, काम, सांसारिक सुख, सुखी ग्रहस्थ जीवन व सम्पन्नता प्राप्त होती है। जिस देवी के मस्तक पर चंद्रमा के आकार का घंटा विराजमान है वही हैं देवी चंद्रघंटा। इनका स्वरूप चमकते हुए तारे जैसा है जैसे के इनके शरीर से अग्नि निकल रही हो। शास्त्रों में इनके रूप का वर्णन युद्ध में डेट हुए योद्धा की भांति बताया गया है और इन्हें वीर रस की देवी कहकर संभोधित किया गया है। देवी का यह स्वरूप परम शक्तिशाली और वैभवशाली है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग, अक्षमाला,धनुष, बाण, कमल, त्रिशूल, तलवार, कमण्डलु, गदा, शंख, बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं तथा हाथ हाड वरद मुद्रा में है। सिंह पर सवार देवी के गले में पुष्पमाला है। ये अनेक प्रकार के रत्नों से सुशोभित है।
ज्योतिषशास्त्र अनुसार देवी चंद्रघंटा की साधना का सम्बंध शुक्र ग्रह से है। कालपुरूष सिद्धांत अनुसार कुण्डली में शुक्र का संबंध दूसरे व सातवें घर से होता है अतः देवी चंद्रघंटा का संबंध व्यक्ति के सुख, संपन्नता, प्रेम, कामनाएं, भोग व ग्रहस्थ जीवन से है। जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में शुक्र नीच, अस्त या राहू यां मंगल से पीड़ित हो या शुक्र कन्या राशि में आकार नीच एवं पीड़ित है उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है देवी चंद्रघंटा। देवी चंद्रघंटा कि आराधना से अविवाहिततों का शीघ्र विवाह होता है। प्रेम में सफलता मिलती है। काम सुख में बढोत्तरी होती है। जिस व्यक्ति की आजीविका का संबंध ब्यूटी, आर्ट्स या होस्पिटेलिटी सर्विसेज सेवा से हो उन्हें देवी चंद्रघंटा सर्वश्रेष्ठ फल देती है। वास्तुशास्त्र अनुसार देवी चंद्रघंटा का संबंध अग्नि तत्व से है, इनकी दिशा आग्नेय है। घर में बने वो स्थान जहां आग से संबंधित काम होता हो या खाना बनता हो जैसे के किचन। जिन व्यक्तियों का घर दक्षिण-पूर्व मुखी हो या जिनके घर का दक्षिण-पूर्वी कोना प्रभावित हो उन्हें चंद्रघंटा श्रेष्ठ फल देती है। चंद्रघंटा साधना के लिए साधक अपने मन को “मणिपूर चक्र” में स्थित करते हैं, इनकी साधना से दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं।
साधक के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है। वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है। देवी चंद्रघंटा कि पूजा प्रेम, ऐश्वर्य और विवाह कि प्राप्ति के लिए कि जाती है। इनकी पूजा का सबसे अच्छा समय हैं गौधूलि वेला; शाम को 5 बजे से 6 बजे के बीच, इनकी पूजा गुलाबी रंग के फूलों से करनी चाहिए। इन्हें दूध चावल से बनी खीर का भोग लगाने चाहिए तथा श्रंगार में इन्हें सुगंधित द्रव्य इत्र अर्पित करना अच्छा रहता है।
चंद्रघंटा ध्यान: वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्। सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
चंद्रघंटा मंत्र: या देवी सर्वभू‍तेषु चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
उपाय: लव मैरेज में सक्सेस के लिए देवी चंद्रघंटा पर मखाने की खीर चढ़ाकर किसी नवविवाहिता को दान करें।

Related Articles

Back to top button