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सिक्किम के गुरूद्धारा के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए हर संभव यत्न होंगे : प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर

लुधियाना-अमृतसर : शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिक्किम स्थित ‘गुरूद्वारा गुरू डांगमार ‘ और चुंगाथारा की सिख संगत की भावना अनुसार गुरूघर के अस्तित्व को बरकरार रखने हेतु हर प्रकार के यत्न किए जाने की घोषणा की है। प्रथम गुरू श्री गुरूनानक देव जी से संबंधित इतिहासिक गुरूद्वारा गुरू डांगमार को पिछले दिनों कुछ लामो द्वारा साजिशअधीन मंदिर बनाने के प्रयास में तोडफ़ोड़ की थी। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी तोड़ पर रोक लगाते हुए यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। लिहाजा हाईकोर्ट मेें इस मामले की सुनवाई 13 सितम्बर को होनी है। इधर प्रो. बडूंगर ने यह भी स्पष्ट किया कि इस गुरूद्वारा साहिब की ऐतिहासिक महत्वता केा उजागर किया जाएंगा और विशेषज्ञों द्वारा हर प्रकार की कानूनी पक्ष की जानकारी लेकर संघर्ष किया जाएंगा। उन्होंने बयान जारी करते हुए यह भी कहा कि इस संबंध में एक उच्च कमेटी कायम की जा रही है, जिसमें डॉ कृपाल सिंह चंडीगढ़, डॉ बलदेव सिंह अमृतसर, डॉ धर्मवीर सिंह पटियाला और डॉ दलविंद्र सिंह लुधियाना को शामिल किया गया है। इस कमेटी को डॉ चमकौर सिंह कोडीनेट करेंगे। प्रो. बडूंगर ने कहा कि सिक्किम स्थित उक्त गुरूधामों की रक्षा के लिए शिरोमणि कमेटी द्वारा किसी भी प्रकार की कमी नही रहने दी जाएंगी।

उन्होंने कहा कि इस कार्य को पूरा करने के लिए स्थानीय सरकार के अतिरिक्त भारत की केंद्रीय सरकार तक भी अप्रोच की जाएंगी। उन्होंने कहा कि प्रथम पातशाह से संबंधित इन गुरूधामों के साथ सिख संगत की आस्था जुड़ी हुई है परंतु सिक्किम स्थित लामों ने गुरूद्वारा साहिबान के अस्तित्व को खत्म करने के लिए घिनौनी साजिश रची है। उन्होंने कहा कि गुरूद्वारा साहिबान की पूरी स्थिति का जायजा लेने के लिए शिरोमणि कमेटी सदस्य भाई राजिंद्र सिंह मेहता के साथ एक प्रतिनिधिमंडल भेजा गया था, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट दे दी है। उधर सिक्किम स्थित हाईकोर्ट में भी सिख याचि कर्ता द्वारा आरोप लगाया गया है कि आधुनिककरण के नाम पर प्राचीन गुरूद्वारा साहिब को तोड़ा जा रहा है। अधिकारियों ने वहां पर रखे श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी को जब्री हटाकर सड़क पर रख दिया था। जिक्रयोग है कि सिख धर्म में यह मान्यता है कि गुरूनानक देव जी जब भ्रमण के दौरान उस स्थल पर पहुंचे थे तो उस वक्त स्थानीय लोगों को पानी की भारी समस्या थी, ऐसे में गुरू जी ने वहां डांग मारकर पानी निकाला था।

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