सियाचिन में बचाव अभियान में काम आया हौसला, टीम वर्क और ऊंचाई पर स्थित हैलीपैड
दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ नई दिल्ली: जब सेना के बचाव दल के सदस्य ने छह से बर्फ की चादर के नीचे दबे हनमनथप्पा कोप्पड़ को पहली बार देखा तब वह बेहोशी की हालत में थे और उनकी पल्स लगभग न के समान बची थी। लेकिन सेना के डॉक्टरों की टीम ने तुरंत मेहनत की और जवान को जीवित करने की दिशा में प्रयास किया, जिसके बाद जवान के बचने की उम्मीद जगी।
सबसे ऊंचा हैलीपैड
उसके बाद इस जवान को तुरंत मौके पर तैनात रखे गए एक चॉपर में ले जाया गया। यह हैलीपैड दुनिया में सबसे ऊंचाई पर स्थित माना जाता है। सियाचिन के पश्चिमी किनारों के सलतोरो रिज पर स्थित इस स्थान पर उड़ान भरना खतरे से खाली नहीं समझा जाता।
अगले 48 घंटे हैं अहम
चमत्कारिक रूप से बचाए गए इस जवान की मौत से लड़ाई जारी है। अब उसे वहां से दिल्ली स्थित सेना के आर एंड आर अस्पताल में लाया गया है। यहां पर भी इस जवान की हालत नाजुक बताई जा रही है। उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है और कुछ रिपोर्टों के अनुसार वह बीच-बीच में होश में आ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि हनमनथप्पा के लिए अगले 48 घंटे बहुत अहम हैं।
जवानों को खोजने में सेना ने कोई कसर नहीं छोड़ी
उल्लेखनीय है कि 3 फरवरी के भारी हिमस्खलन की दुर्घटना में सेना के 10 जवान फंस गए थे और इस घटना के 48 घंटे बाद इन्हें मृत मान लिया गया था। सेना ने अपने फंसे जवानों को खोजने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। बाकी सभी नौ जवानों के शव हनमनथप्पा के करीब ही पाए गए हैं। सेना सभी को लाने का प्रयास कर रही है। ये सभी कर्नाटक के रहने वाले हैं। ये जवान करीब 25 फीट बर्फ की चादर के नीचे दब गए थे। ये सभी विशेष रूप से तैयार किए गए फाइबर के टेंट में थे।
जानकारी के अनुसार, यहां पर दुनिया की बेहतरीन टीम बचाव कार्य में लगाई गई है। एक टीम के थक जाने के बाद दूसरी टीम अपना काम शुरू कर रही थी। जहां तमाम लोग इन जवानों के बचने की उम्मीद खो चुके थे वहीं बचाव दल के सदस्यों को भरोसा था कि किसी न किसी को बचाया जा सकता है। इन लोगों को यकीन था कि टेंट में रखे गए ऑक्सीजन के सिलेंडर का प्रयोग किया जा सकता है और इन लोगों को ट्रेनिंग भी दी जाती है कि ऐसे हिमस्खलन के समय कैसे बचना है।