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तराई का हैंडलूम उद्योग सियासी अनदेखी का शिकार है। राज्य गठन के 16 साल बाद भी हुनर के हाथों को सियासी संबल नहीं मिला। योजना का लाभ न मिलने से बुनकर पुश्तैनी धंधा छोड़ चुके हैं।
काशीपुर: तराई का हैंडलूम उद्योग सियासी अनदेखी से अंतिम सांसें ले रहा है। राज्य गठन के 16 साल बाद भी हुनर के हाथों को सियासी संबल नहीं मिल पाया। यह बात दीगर है कि चुनाव के समय दोनों प्रमुख राष्ट्रीय कांग्रेस व भाजपा के नेता आश्वासनों की घुट्टी पिलाते रहे हैं।कभी तराई के हैंडलूम उत्पाद की मांग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल, तिब्बत सहित कई राज्यों में थी। बुनकरों के हुनर को धार देने के लिए राजकीय हथकरघा एवं डिजाइन प्रशिक्षण केंद्र खोला गया।
बुनकरों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए सरकारें वादा करती रहीं, मगर एक भी धरातल पर नहीं उतरे। ऐसे में बुनकरों के सामने रोटी का संकट गहरा गया है। किसी दल ने बुनकरों की सुध नहीं ली।उत्तर प्रदेश के जमाने में काशीपुर में कई उद्योग लगे थे। इनमें काशीपुर में एक सूत मिल भी थी। यह मिल भी करीब पांच साल से बंद है। यहां से बुनकर धागे ले जाकर हैंडलूम, चादर, दरी की बुनाई करते थे और बाजार व केंद्र की ओर से लगाई जाने वाली प्रदर्शनी में उत्पाद बेचते थे।
गुणवत्ता व सुंदर डिजाइन के उत्पाद तैयार हो, इसके लिए केंद्र सरकार ने इंटीग्रेटेड हैंडलूम ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया था। योजना में डिजाइन एवं प्रशिक्षण केंद्र बुनकरों को रंगाई, बुनाई, डिजाइन का प्रशिक्षण देता था। इसका लाभ ऊधमसिंह नगर के अलावा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर के बुनकर उठाते थे। विडंबना है कि योजना 10 साल से बंद है। वर्तमान में केंद्र की दो योजनाएं कागजों में ही संचालित हैं।
राज्य बनने के बाद बुनकरों व शिल्पकारों को उम्मीद थी कि उनके कारोबार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलेंगी, मगर एक भी योजना ऐसी नहीं चली, जिनका लाभ बुनकरों को मिला हो। राज्य में करीब 93 बुनकर हैं और इनमें करीब 11 हजार काशीपुर में हैं। राज्य सरकार ने बुनकरों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की, मगर इसकी सिर्फ सूची तैयार हो पाई है। 60 हजार रुपये तक बीमा के लिए महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना, लोन मुहैया कराने के लिए बुनकर मुद्रा योजना (शिशु लोन 50 हजार, तरुण लोन पांच लाख तक व किशोर लोन पांच लाख से अधिक) योजना शुरू की गई, लेकिन सरकारी अमला लाभार्थी चयन नहीं कर पाया।
महिला कामगार स्कीम के तहत 25 हजार तक हथकरघा क्रय पर सिर्फ 25 सौ रुपये देने का प्रावधान है, बाकी अनुदान है। प्रदर्शनी में नि:शुल्क स्टॉल प्राप्त करने के लिए शिल्पी कार्ड योजना शुरू की गई। लेकिन, हैरानी है कि अभी तक इनमें राज्य की एक भी योजना धरातल पर नहीं उतर सकी और न ही बुनकरों को इसका लाभ मिल सका। नतीजा बुनकर परंपरागत धंधा छोड़कर ई रिक्शा, टेंपो चलाने व फेरी लगाकर चादर बेचने को मजबूर है।
राज्य सरकार की योजनाएं
- बुनकरों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना
- महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना
- बुनकर मुद्रा योजना
- महिला कामगर स्कीम
- शिल्पी कार्ड योजना
- थारू-बुक्सा अनुसूचित जनजाति
- केंद्र की योजनाएं
- कालीन बुनाई प्रशिक्षण स्कीम
- एकीकृत हस्तशिल्प विकास एवं प्रोत्साहन स्कीम
नोट: वर्ष 2006 से केंद्र की इंटीग्रेटेड हैंडलूम ट्रेनिंग प्रोग्राम बंद है।