सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पुलिस और लॉ एंड आर्डर को छोड़कर दिल्ली सरकार को मिला प्रशासन करने की इजाजत
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की लड़ाई को लेकर बुधवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.के. सिकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की संवैधानिक बेंच ने एक-एक करके अपना फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस चंद्रचूड़ ने काफी देर तक फैसला पढ़ा और एक-एक करके कई संवैधानिक तथ्यों को स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि दोनों को मिलकर ही लोकतंत्र के हित में काम करना होगा लेकिन ये कैसे मुमकिन है जहां अधिकारों की लड़ाई को लेकर इतने दांव-पेंच फंसे हुए हैं।
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि भूमि, पुलिस और लॉ एंड आर्डर को छोड़कर दिल्ली सरकार को अन्य मामलों में कानून बनाने और प्रशासन करने की इजाजत दी जानी चाहिए। साथ ही खंड पीठ ने कहा कि हर मामले में एलजी की सहमति जरूरी नहीं है, लेकिन कैबिनेट को फैसलों की जानकारी देनी होगी।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, संविधान के मुताबिक प्रशानिक फैसले भी सबका सामूहिक कर्तव्य और सभी संवैधानिक पदाधिकारियों को संवैधानिक नैतिकता को बरकरार रखना चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, संविधान का पालन सबका कर्तव्य है, सभी संवैधानिक फंक्शनरीज के बीच संवैधानिक भरोसा होना चाहिए और सभी को संविधान की भावना के तहत काम करना चाहिए।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, हमने सभी पहलुओं- संविधान, 239एए की व्याख्या, मंत्रिपरिषद की शक्तियां आदि पर गौर किया
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और अन्य दो जजों ने कहा कि एलजी को दिल्ली सरकार के साथ सौहार्दपूर्वक काम करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और अन्य दो जजों ने कहा कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
चीफ जस्टिस और दो अन्य जजों ने कहा कि दिल्ली सरकार को हर फैसला एलजी को बताना होगा। हालांकि, हर मामले में एलजी की सहमति जरूरी नहीं।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि राज्य को बिना किसी दखल के कामकाज की आजादी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि LG मैकेनिकल तरीके से सारे मामलों को राष्ट्रपति को नहीं भेजेंगे। इससे पहले वो अपना दिमाग लगाएंगे। सरकार के प्रतिनिधियों को सम्मान दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि, पुलिस और लॉ एंड आर्डर को छोड़कर जो केंद्र का एक्सक्लूसिव अधिकार है, दिल्ली सरकार को अन्य मामलों में कानून बनाने और प्रशासन करने की इजाजत दी जानी चाहिए। LG मशीनी तरीके से फैसलों को नहीं रोक सकते।
CJI व दो अन्य न्यायमूर्तियों ने कहा, LG सीमित सेंस के साथ प्रशासक हैं, वह राज्यपाल नहीं हैं। LG एक्समेंटेड क्षेत्रों को छोड़कर बाकी मामलों में दिल्ली सरकार की ‘एड एंड एडवाइस’ मानने के लिए बाध्य हैं।
CJI व दो अन्य न्यायमूर्तियों ने कहा, LG सीमित सेंस के साथ प्रशासक हैं, वह राज्यपाल नहीं हैं। LG एक्समेंटेड क्षेत्रों को छोड़कर बाकी मामलों में दिल्ली सरकार की ‘एड एंड एडवाइस’ मानने के लिए बाध्य हैं।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र में रियल पावर चुने हुए प्रतिनिधियों में होनी चाहिए। विधायिका के प्रति वो जवाबदेह हैं। लेकिन दिल्ली के स्पेशल स्टेटस को देखते हुए बैलेंस बनाना जरूरी है। मूल कारक ये है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि LG को ये ध्यान में रखना चाहिए कि फैसले लेने के लिए कैबिनेट है, वह नहीं।
जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि एलजी को दई गई एड एंड एडवाइस एलजी पर बाध्यकारी नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में रियल पावर चुने हुए प्रतिनिधियों में होनी चाहिए।
संविधान पीठ का सर्वसम्मति से फैसला: LG की सहमति जरूरी नहीं, लेकिन कैबिनेट को फैसलों की जानकारी देनी होगी।
संविधान पीठ का मुख्य फैसला: चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में अहम है, इसलिए मंत्रीपरिषद के पास फैसले लेने का अधिकार।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार और LG के बीच राय में अंतर वित्तीय, पॉलिसी और केंद्र को प्रभावित करने वाले मामलों में होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई फैसला लेने से पहले LG की अनुमति लेने की जरूरत नहीं, सिर्फ सूचना देने की जरूरत। साथ ही कोर्ट ने कहा कि छोटे-छोटे मामलों में में मतभेद ना हो। राय में अंतर होने पर राष्ट्रपति को मामला भेजें LG। चीफ जस्टिस ने कहा कि संघीय ढांचे में अराजकता की कोई जगह नहीं।
संविधान के अनुच्छेद-239 एए और एबी में दिल्ली के उपराज्यपाल को दूसरे राज्यों के राज्यपालों से ज़्यादा संवैधानिक शक्तियां दी गई हैं। इस अनुच्छेद का खंड 4 कहता है कि दिल्ली की मंत्रिपरिषद उपराज्यपाल को मदद और सलाह देगी बशर्ते ऐसा कोई मामला सामने आए नहीं तो उपराज्यपाल खुद फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं। नियम कहते हैं कि अगर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद में मतभेद हों, तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजना चाहिए। जब तक ये मामला राष्ट्रपति के पास लंबित होता है, तब तक उपराज्यपाल के पास अधिकार होता है कि वो अपने विवेक से किसी भी तात्कालिक मामले में तुरंत कार्रवाई कर सकते हैं।
दिल्ली सरकार की दलीलें
एलजी संविधान का मज़ाक बना रहे हैं
असंवैधानिक तरीक़े से काम कर रहे हैं एलजी
क़ानूनन एलजी के पास कोई शक्ति नहीं
एलजी फाइलों को राष्ट्रपति के पास नहीं भेजते
LG खुद ही फैसले कर रहे हैं
IPS, IAS किस विभाग में काम करें, ये सरकार तय करे
LG सरकार के अधीनस्थ नियुक्तियों की फ़ाइल ले लेते हैं
नियुक्तियां कौन करेगा, कई मामले लंबित
कई योजनाओं की फ़ाइल पास नहीं कर रहे
काम के लिए अफसरों के पास भागना पड़ता है
केंद्र की दलीलें
दिल्ली में सारे प्रशासनिक अधिकार LG को
दिल्ली सरकार को अधिकार दिए तो अराजकता फैलेगी
दिल्ली राजधानी है, पूरे देश के लोगों की है
केंद्र में देश की सरकार इसलिए दिल्ली पर केंद्र का अधिकार
दिल्ली में जितनी भी सेवाएं हैं, केंद्र के अधीन हैं
ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार केंद्र के पास
मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य नहीं LG
चुनी हुई सरकार सभी मुद्दों पर LG से सलाह करे
दिल्ली में केंद्र अपना शासन चलाए ये अलोकतांत्रिक नहीं
आजादी के बाद मार्च 1952 में महज दस विषयों के लिए 48 सदस्यों वाली दिल्ली को विधान सभा दी गई थी। 1955 में राज्यपुर्नगठन आयोग बनने के बाद दिल्ली की विधान सभा भंग कर दी गई। 1958 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत दिल्ली में नगर निगम बनी।
प्रशासनिक सुधार आयोग की 1966 में रिपोर्ट आने के बाद 61 सदस्यों वाली महानगर परिषद बनी जिसे 1987 में भंग करके दिल्ली को नया प्रशासनिक ढांचा देने के लिए बनी बालकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 1993 में पुलिस और जमीन के बिना विधान सभा दी गई।
तभी इस पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए थी कि आखिर चुनी हुई सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री के बजाए उप राज्यपाल का शासन क्यों होना चाहिए। जो लोग दिल्ली सरकार को बनाते हैं वे कुछ चीजों के लिए किसी और को जिम्मेदार क्यों मानें।