सुप्रीम कोर्ट के पहले भी ट्रिपल तलाक को अवैध घोषित कर चुकी है कोर्ट, फैसले में थी ये बात
इंदौर। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही 22 अगस्त मंगलवार को ट्रिपल तलाक को अवैध घोषित किया है लेकिन उज्जैन की फैमिली कोर्ट ने 9 मार्च 2017 को हे एक फैसले में इसे अवैधघोषित कर दिया था। अधिवक्ता अरविंद गौड़ द्वारा उज्जैन निवासी आर्शी द्वारा उसके पति तौसीफ के खिलाफ लगाई याचिका पर फैमिली कोर्ट ने ये फ़ैसला सुनाया था। दंपति की शादी सवा चार साल पहले हुई थी। दो साल बाद पति ने कुछ लोगों की मौजूदगी में तीन बार तलाक कहकर पत्नी को छोड़ दिया था। वह इसके खिलाफ कोर्ट पहुंची थीं। कोर्ट ने कहा था, “इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ…
– आर्शी का निकाह मुस्लिम रीति-रिवाज से 19 जनवरी 2013 को शहर काजी ने कराया था। इसमें आर्शी के माता-पिता की सहमति थी। निकाह के बाद आर्शी तौसीफ के साथ देवास में रह रही थी।
– आर्शी के मुताबिक, तौसीफ उसे दहेज के लिए टॉर्चर करता था। 9 अक्टूबर 2014 को साबीर शेख, अजहर खान और साजद अली की मौजूदगी में तौसीफ ने आर्शी को तलाक दे दिया।
तलाक के पहले मीडिएटर नहीं
-आर्शी की ओर से सलीम बाशा बनाम मिसेज मुमताज बेगम 1998 सीआरएलजे (क्रिमिनल लॉ जनरल) 4782 का हवाला दिया। इसके मुताबिक, तलाक के पहले पति और पत्नी के बीच सुलह की कोशिश होना चाहिए। दोनों का एक-एक रिप्रेजेंटेटिव मीडिएटर के रूप में मौजूद होना चाहिए, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया।
– इसके अलावा रूपसिंह बनाम स्टेट ऑफ छत्तीसगढ़ 2016 सीआरएलजे (एनओसी) 241 हवाला देते हुए कहा गया कि मुस्लिम पति को तलाक के पहले पत्नी को मेहर और इद्दत की रकम का भुगतान करना चाहिए। ऐसा न होने पर तलाक को नियमानुसार नहीं माना जाएगा।
– आर्शी की तरफ से वली मोहम्मद बनाम बतुलबाई 2003 (2) एमपीएलजे 515 के हवाले से कहा गया कि रिटन में बता देने को ही शादी खत्म होने के रूप में नहीं माना जा सकता। पति को यह साबित करना होगा कि उसने मुस्लिम कानून के आधार पर पत्नी को तलाक दिया है।