नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही केंद्र से इस मामले में दो सप्ताह में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा।उच्चतम न्यायालय लोकपाल की नियुक्ति के मकसद से विपक्ष के नेता संबंधी प्रावधान की व्याख्या करने पर शुक्रवार को राजी हो गया। लोकपाल की नियुक्ति में विपक्ष के नेता चयन समिति के सदस्य होते हैं। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि विधान को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता। इस पद के महत्व पर जोर देते हुए प्रधान न्यायाधीश आर एल लोढा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि विपक्ष का नेता सदन में सरकार से अलग स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। पीठ ने कहा कि एलओपी लोकपाल कानून के तहत एक महत्वपूर्ण घटक है और मौजूदा राजनीतिक स्थिति में इस मुद्दे पर वस्तुनिष्ठ विचार की जरूरत है, जहां लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि एलओपी का मुद्दा न केवल लोकपाल में प्रासंगिक है बल्कि यह मौजूदा और आगामी विधेयकों के मामले में भी महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले को लंबा नहीं खींचा जा सकता और विधान को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही मामले के अंतिम निपटान के लिए नौ सितंबर की तारीख तय कर दी। लोकसभा में 44 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस विपक्ष के नेता पद के लिए कड़ी मशक्कत कर रही है लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा उसकी मांग को स्वीकार नहीं करने पर अड़ी है। भाजपा का कहना है कि विपक्षी दल के पास जरूरी दस फीसदी सीटें नहीं हैं जिसका मतलब है कि एलओपी पद पर दावे के लिए उसके पास 55 सीटें होनी चाहिए।