राजनीति
हिमाचल चुनाव: इस सियासी किले पर टिकी हैं भाजपा की नजरें
हिमाचल प्रदेश में सर्वाधिक विधानसभा सीटों वाले जिले कांगड़ा में सेंधमारी के लिए भाजपा ने किलेबंदी शुरू कर दी है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की कांगड़ा में भरी हुंकार इसी रणनीति का हिस्सा है। चार माह में शाह दूसरी बार इस जिले में पहुंचे हैं।
भाजपा के रणनीतिकार जानते हैं कि 15 सीटों वाला कांगड़ा लोअर हिमाचल का सियासी दुर्ग है। वर्ष 2012 में यहीं से 10 सीटें जीत कांग्रेस सत्ता में पहुंची है। उधर, अंदरूनी खींचतान से जूझ रही कांग्रेस को एक करने के लिए कुछ दिन पूर्व प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे जिले में प्रवास कर चुके हैं।
कांग्रेस का मिशन रिपीट तो भाजपा के मिशन 50 प्लस की सफलता इसी जिले पर टिकी है। अमित शाह ने कांगड़ा में चुनावी रैली कर साफ कर दिया है कि पार्टी कांगड़ा में वोट बैंक मजबूत करना चाहती है।
खेमेबाजी के बाद कांगड़ा में भाजपा के लिए दूसरी बड़ी चुनौती प्रत्याशियों के चयन की है। पिछले चुनाव में हार की बड़ी वजह टिकटों का गलत चयन माना जाता है। इस बार पार्टी जिले की आधी सीटों पर युवा चेहरों को मौका दे सकती है। प्रदेश प्रभारी मंगल पांडेय का कांगड़ा पर फोकस है।
कांग्रेस के लिए कांगड़ा में आंतरिक कलह सबसे बड़ी चिंता है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का जीएस बाली के साथ कुछ खास तालमेल नहीं है। मेजर विजय सिंह मनकोटिया भी वीरभद्र के विरोध में हल्ला बोल चुके हैं।
कैबिनेट मंत्री सुधीर शर्मा और सुजान सिंह पठानिया को वीरभद्र खेमे का माना जाता है, लेकिन दोनों प्रदेश कांग्रेस के साथ नहीं माने जाते हैं।
पीसीसी के कार्यक्रमों में इनकी सक्रियता नहीं रहती है। कांगड़ा से एक निर्दलीय विधायक मनोहर धीमान भाजपा में जा चुका है, विधायक पवन काजल पर भी डोरे जा रहे हैं।
कांग्रेस विधायक यादवेंद्र गोमा के चचेरे भाई भाजपा का दामन खाम चुके हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के गद्दी समुदाय को लेकर दिया बयान से भड़की आग को भाजपा ठंडा नहीं होने दे रही है।