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10 साल की बच्ची के पेट में 30 हफ्ते का गर्भ, पीजीआई ने सौंपी मेडिकल रिपोर्ट

करीब 30 हफ्ते की प्रेग्नेंट दस साल की बच्ची का बुधवार को पीजीआई के डाक्टरों ने परीक्षण किया। बच्ची की जांच करने के बाद आठ सदस्यीय कमेटी ने चंडीगढ़ लीगल सर्विस अथॉरिटी को अपनी सीलबंद रिपोर्ट सौंप दी है। पीजीआई की रिपोर्ट शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में पेश होनी है। रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीमकोर्ट तय करेगा कि बच्ची का गर्भपात करना है या नहीं। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर ही पीजीआई ने आठ सीनियर डाक्टरों की एक कमेटी बनाई गई थी।
करीब साढ़े तीन घंटे चला परीक्षण
चंडीगढ़ लीगल सर्विस अथॉरिटी की टीम बच्ची व उसके पेरेंट्स को करीब साढ़े नौ बजे पीजीआई लेकर पहुंचे। उसके बाद उसका परीक्षण शुरू हुआ। कमेटी के सदस्य भी नेहरू हास्पिटल पहुंचे और वहां पर गहनता से सभी पहलुओं पर विचार हुआ। उसके बाद करीब एक बजे बच्ची को वापस भेज दिया गया। इसी दौरान पीजीआई ने अपनी रिपोर्ट तैयार की और लीगल सेल अथॉरिटी को सौंप दी।
‘गर्भपात सुरक्षित नहीं, गर्भावस्था को जारी रखना मुनासिब’
 पीजीआई के सूत्रों का दावा है कि इस तरह के केस में बच्ची का गर्भपात करना किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है। गर्भावस्था को जारी रखना ही मुनासिब रहेगा। क्योंकि समय ज्यादा हो गया है। भ्रूण ने प्रीमिच्योर बेबी की शक्ल ले ली है। 
गर्भपात के लिए सुप्रीमकोर्ट की शरण ली थी
सात महीने की प्रेग्नेंसी की बात पता चलने के बाद सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर बच्ची के गर्भपात की मंजूरी की मांग की गई थी। इससे पहले जिला अदालत ने भी गर्भपात की याचिका खारिज कर दी थी। जिला अदालत में दाखिल रिपोर्ट में भी मेडिकल कालेज ने गर्भपात करने में खतरे बताए थे। इंडिया मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी 20 हफ्ते तक गर्भपात की इजाजत देता है। उसके बाद ऊपर की इजाजत कोर्ट देता है।
बच्ची के मामा ने की थी दरिंदगी
दस साल की बच्ची के साथ उसके मामा ने दरिंदगी की थी। सात महीने की प्रेग्नेंट होने के बाद ही इस बात का खुलासा हुआ था। उसके बाद पुलिस ने आरोपी को गिर तार कर जेल भेजा गया। हालांकि आरोपी सगा मामा नहीं बल्कि दूर का रिश्ता है। 
 

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