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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों की तस्वीर पेश करती यह फिल्म सेंसर की ‘जरूरी काट-छांट’ के बाद सामने है। कुछ खास लोगों की ‘संवेदनाएं’ आहत न हो जाएं इसलिए फिल्म से हत्या के बाद हुई हिंसा में राजनीतिक नेतृत्व की भड़काऊ भूमिका को रफा-दफा कर दिया गया। अतः तस्वीर यह कि जो नरसंहार हुआ उसके जिम्मेदार सिर्फ समाज के पथभ्रष्ट-पतित लोग थे।
फिल्म साधारण सिख पति-पत्नी की कहानी है। जिनके तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। दिल्ली सरकार के बिजली विभाग में काम करते सीधे-सरल, दूसरों की मदद को सदा तत्पर सरदारजी (वीर दास) के प्रति उनके करीबियों की नजरें अचानक बदल जाती हैं, जब इंदिरा गांधी की हत्या की खबर आती है। उनके नाते-रिश्तेदारों का भी जीवन यहां दिखता है, जो गुरुद्वारे में सेवाएं दे रहे हैं।