आंखों की किरकिरी बने ईमानदार अफसर
रवीश रंजन
मशहूर दार्शनिक जार्ज बर्कले ने कहा था कि अगर कोई कहता है कि इस दुनिया में ईमानदार आदमी नहीं है तो उससे बड़ा धूर्त शख्श कोई नहीं है। ये कथन आज के दौर का सबसे खराब सच है। इसके नक्शेकदम पर चलने वाले लोगों को आम भाषा में बेवकूफ से ज्यादा कुछ नहीं कहा जाता है। व्यवहारिकता के दौर में ईमानदारी उसी तरह अव्यवहारिक हो गई है जैसे नेताओं के भाषण से सच्चाई को बेदखल कर दिया गया हो। हम ऐसे ही कुछ अधिकारियों की बात करेंगे जिन्होंने सरकारों की आंखों में आंखे डालकर बताया है कि सच परेशान हो सकता है लेकिन हार नहीं सकता है। वैसे हर सिस्टम में ईमानदार लोग मौजूद हैं लेकिन हम कुछ ऐसे लोगों की बात करने जा रहे हैं जो ‘न खाएंगे और न खाने देंगे’ जुमलों से लेकर ‘हम राजनीति करने नहीं बल्कि राजनीति बदलने आए हैं’ के नारों के साथ सत्तानशीं हुई सरकारों की आंखों की न सिर्फ किरकिरी बने हैं बल्कि दूसरों को आईना दिखाने वाले नेताओं को आज भी आईना दिखा रहे हैं।
देश के सबसे बड़े और शानदार अस्पताल एम्स के प्रशासनिक ब्लॉक में बने उपसचिव के दफ्तर के बाहर सन्नाटा है। दो साल पहले इसी दफ्तर के बाहर संजीव चतुर्वेदी आईएफएस और उसके नीचे चीफ विजीलेंस आफिसर का बोर्ड लगा था। कई ताकतवर अधिकारियों और नेताओं के फोन या तो रौब झाड़ने के लिए या गिड़गिड़ा कर सिफारिश करने के लिए आते थे। लेकिन आज संजीव चतुर्वेदी का बोर्ड जरूर लगा है लेकिन दो साल से चीफ विजीलेंस आफिसर का पदनाम उनसे छीन लिया गया। केंद्र सरकार बीते डेढ़ साल से उन्हें बिना काम के ही सवा लाख रुपए तनख्वाह दे रही है। बने रहो पगला, काम करेगा अगला की तर्ज पर काम करने वाले सरकारी बाबुओं के इतिहास में ये पहला मौका है कि जब संजीव चतुर्वेदी नाम के एक अधिकारी को काम मांगने के लिए सेंट्रल एडमिनेस्ट्रेटिव ट्राईब्यूनल तक जाना पड़ा हो। ये ऐसा पहला मौका है जब अधिकारी काम मांग रहा है और सरकार उसे बिना काम रखना चाह रही हो।
लेकिन उनकी गलती क्या है जो हरियाणा की कांग्रेस सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। उनकी गलती सिर्फ इतनी है कि वो बेईमानी को गुड तालीबान और बैड तालीबान की नजर से नहीं देखते हैं। यानि केंद्र सरकार में जब बीजेपी हो तो बेईमान कांग्रेस की सत्ता के अधिकारी ही होंगे। जानकार बताते हैं कि बेईमानों पर समाजवादी नजर रखने वाले संजीव चतुर्वेदी की गलती सिर्फ इतनी थी कि एम्स के पूर्व प्रशासक और जेपी नड्डा के खास एक ताकतवर नौकरशाह विनीत चौधरी के खिलाफ आई एक शिकायत पर जांच शुरू करवा दी। नेताओं की सिफारिशी फोन से लेकर वरिष्ठ नौकरशाहों के समझाने के बावजूद आखिरकार सरकार ने वीटों पावर का इस्तेमाल किया। उनसे चीफ विजीलेंस आफिसर का चार्ज लेकर बिना काम के डिप्टी सक्रेटरी बना दिया है। केंद्र सरकार को उनसे इतनी ज्यादा चिढ़ है कि अभी हाल में उन्हें जब रमन मैगसायसे पुरुस्कार मिला तो पुरुस्कार की बीस लाख रुपए की रकम उन्होंने जब एम्स के खाते में दान देने की पेशकश की तो इसे भी ठुकरा दिया गया। उनके देहरादून डेपुटेशन की फाइल भी केंद्र सरकार की तरफ से रोक ली गई है। अब वो काम करने के लिए कैट्स के चक्कर काट रहे हैं.. जहां उन्हें महज तारीख पर तारीख मिल रही है।
दिल्ली में एक नहीं बल्कि दो सरकारें हैं। बीजेपी सरकार को चिढ़ाने वाले ईमानदार अधिकार संजीव चतुर्वेदी का हाल जानने के बाद अब दूसरी सरकार यानि राजनीति को बदलने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार के दो अफसरों की दास्तान बताने जा रहा हूं। एक अफसर को महज इसलिए रातोरात हटाकर सुबह तक उनकी गाड़ी और दफ्तर को छीन लिया गया कि दिल्ली डॉयलॉग कमीशन के अध्यक्ष आशीष खेतान से उनकी बहस हो गई थी। ये अधिकारी हैं आशीष जोशी। तेजतर्रार और ईमानदार अधिकारी के तौर पर आशीष जोशी अर्बन शेल्टर डिपार्टमेंट से लेकर दिल्ल्ी डॉयलॉग कमीशन के सचिव तक के पद पर इनकी तैनाती रही है। बकौल आशीष जोशी दिल्ली डॉयलॉग कमीशन में होने वाले लोगों की तैनाती की शैक्षिक योग्यता पर आशीष खेतान से उनके मतभेद हो गए। जब नियमों का हवाला दिया गया तो आशीष जोशी को मीडिया से बात करने और गुटखा खाने जैसा कमजोर बहाना देकर रातोरात उन्हें संचार सेवा के मूल कॉडर में भेज दिया गया। बाद में इन्हीं की शिकायत पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रिंसीपल सेक्रेटरी राजेंद्र कुमार के घर सीबीआई का छापा पड़ा था।
दिल्ली सरकार में ही रहे एक दूसरे अधिकारी पूर्व स्पेशल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहे कुलदीप गागर हैं। ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहते हुए जब इन्होंने दिल्ली के बस अड्डों पर बनी सरकारी दुकानों के बारे में नीतियां बनानी चाही तो इन्हें चलता कर दिया गया। बिना ठोस कारण बताए नवंबर में इन्हें प्रतिक्षा सूची में डाल दिया गया। फिर जेल विभाग भेजा गया लेकिन कुछ ही दिन बाद इन्हें फिर से प्रतिक्षा सूची में डाल दिया गया। अब हाल ये है कि तीन माह से इनकी तनख्वाह तक नहीं मिली। जब सरकार से तनख्वाह नहीं मिलने का कारण पूछा तो बताया गया कि सरकार तय नहीं कर पा रही है कि किस विभाग के मद से इन्हें तनख्वाह दी जाए। आज तक इस अधिकारी को कोई विभाग नहीं दिया गया है। बस मुद्दई भी तुम्हीं हो, मुंसिफ भी तुम्ही हो…की तर्ज पर खामोशी आख्तियार कर रखी है।
इसी सूची में हरियाणा सरकार के वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका भी हैं और उप्र सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप सरेआम लगा चुके विजय शंकर पांडेय भी है। हरियाणा कॉडर के वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका ने अपने 22 साल की नौकरी में करीब 45 तबादले पाए हैं। जबकि आल इंडिया सर्विस एक्ट के मुताबिक किसी भी डायरेक्टर लेवल के नौकरशाह का कम से कम दो साल तक तबादला नहीं होना चाहिए। अशोक खेमका ही वो नौकरशाह हैं जिन्होंने हरियाणा में कांग्रेस की सरकार रहते हुए राबर्ट वाड्रा की तीन एकड़ की जमीन की डील को रद्द करने की सिफारिश की थी। अशोक खेमका उस वक्त विपक्ष में बैठी बीजेपी के आंखों के तारे बन गए थे। मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री बनते ही उन्हें ट्रांसपोर्ट कमिश्नर जैसी अहम जिम्मेदारी भी दी गई। लेकिन इस पद पर वो महज 128 दिन ही रह सके। इसके बाद कांग्रेस सरकार की तरह बीजेपी सरकार में भी उनकी ईमानदारी अव्यवहारिक हो गई। ईमानदार अधिकार और ईमानदार लोगों की अगर सामाजिक हैसियत ऐसी ही दोयम दर्जे की बनी रही तो वो दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी किताबों में सत्यमेव जयते नहीं..सत्यमेव पराजते पढ़ेगी।