‘इसरो ने पूरा किया उपग्रह प्रक्षेपण का शतक
नयी दिल्ली: इस बात की भले ही ज्यादा चर्चा न हुई हो लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने के मामले में शतक पूरा कर लिया है। हालांकि इस मुकाम तक पहुंचने में उसके प्रदर्शन की गति किसी टेस्ट क्रिकेट जैसी रही है, जहां उसे यह शतक पूरा करने में लगभग 36 साल लग गए। भारत ने पहला उपग्रह ‘रोहिणी’ वर्ष 1980 में प्रक्षेपित किया था।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अब भी नाबाद है और आगामी प्रक्षेपणों में चौके-छक्के जड़ कर वह टी-20 मैचों की गति से अपने जौहर दिखाने के लिए तैयार है। अपनी तरह का पहला साहसिक कदम उठाते हुए इसरो अंतरिक्ष यानों के सिर्फ कुछ हिस्से बनाने के लिए नहीं बल्कि पूरे-पूरे उपग्रह बनाने के लिए निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोल रहा है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में यह इसरो की एक बड़ी छलांग है क्योंकि अब तक वह सभी उपग्रहों का निर्माण संस्था के भीतर ही करता आया है।
इसी के समानांतर एक अहम घटना यह है कि भारत का पहला निजी चंद्रमा अभियान शुरू करने की तैयारी कर रही बेंगलूरू की निजी अंतरिक्षीय स्टार्टअप कंपनी ‘टीम इंडस’ को एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। उसने फ्रेंच स्पेस एजेंसी :सीएनईएस: के साथ एक ‘प्रायोजन पत्र’ पर हस्ताक्षर किए हैं। टीम इंडस की ओर से चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मॉड्यूल पर फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा एक उच्च स्तरीय कैमरा लगाकर भेजे जाने का इरादा अपने आप में एक सकारात्मक बदलाव है। टीम इंडस गूगल लुनार एक्स प्राइज (2 करोड़ डॉलर) के लिए भारत की ओर से एकमात्र प्रतिभागी है।
अंतरिक्ष में 113 उपग्रह प्रक्षेपित कर चुके इसरो ने बीते 22 जून को पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के 36वें मिशन के तहत एक बार में 20 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे। हालांकि इस दौरान उपग्रह प्रक्षेपण का शतक पूरा करने पर कुछ खास जश्न नहीं हुआ और इसरो के अध्यक्ष ए एस किरण कुमार ने सरल शब्दों में इतना ही कहा- ‘एक काम पूरा हुआ।’
यह प्रक्षेपण इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि इसरो ने पहली बार सभी 17 उपग्रह पूरी तरह व्यवसायिक आधार पर प्रक्षेपित किए। यहां दिलचस्प बात यह है कि इनमें से 13 छोटे उपग्रह अमेरिका से थे। यह भारतीय प्रक्षेपण यान में अमेरिकी संस्थानों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है। व्यवसायीकरण के कारणों के चलते, जहां इसरो में निजीकरण की एक हिलोर उठती दिखाई दे रही है, वहां एक उपग्रह इंटरनेट क्षेत्र की दिग्गज कंपनी गूगल का भी था। इस बार प्रक्षेपित उपग्रहों में शामिल यह 110 किलोग्राम का उपग्रह स्काईसेट जेन 2-1 पृथ्वी की तस्वीरें लेने के लिए है। यह कैलिफोर्निया की कंपनी टैरा बेला का है और यह कंपनी गूगल की है। यह पहली बार है, जब भारत की एक नई अंतरिक्षीय स्टार्ट अप कंपनी अर्थ2ऑर्बिट (ई2ओ) ने गूगल और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के आधार पर अनुबंध किया। यह दिखाता है कि भारतीय निजी कंपनियां एक नई शुरूआत दिखा रही हैं।
ई2ओ, बेंगलूरू की सीईओ सुष्मिता मोहंती ने इस प्रक्षेपण को दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच अंतरिक्षीय सहयोग में एक अहम घटना बताते हुए कहा, ‘यह भारतीय अंतरिक्ष इतिहास का ‘बर्लिन की दीवार’ वाला क्षण है, जो पीएसएलवी के जरिए और अधिक अमेरिकी प्रक्षेपणों के लिए रास्ता खोलेगा और भविष्य में भारत एवं अमेरिका के बीच अंतरिक्षीय क्षेत्र में नए जुड़ावों को संभव बनाएगा।’ टैरा बेला भारत सरकार के साथ प्रक्षेपण अनुबंध करने वाला पहला व्यवसायिक अमेरिकी सेटेलाइट ऑपरेटर है। हालांकि इस ऐतिहासिक पहल का पुरोधा अर्थ2ऑबिर्ट रहा। यह अपने आप में एक शुरुआती उत्प्रेरक क्षण है, जिसमें दोनों देश असैन्य और व्यवसायिक अंतरिक्षीय प्रगति में आपसी सहयोग बढ़ा रहे हैं।
इसरो का ध्यान मूल रूप से अपनी राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित है और जब क्षमता से अधिक कुछ मौजूद होता है तो उसे व्यवसायिक आधार पर उपलब्ध करवा दिया जाता है। इसका परिणाम यह रहा है कि इस साल की शुरूआत तक में इसरो ने 20 देशों के लिए लगभग 57 उपग्रह प्रक्षेपित करके 10 करोड़ डॉलर कमाए हैं। यह सिर्फ एक शुरूआत है क्योंकि प्रक्षेपण का बाजार अरबों डॉलर का माना जा रहा है।
इसरो का मानना है कि उद्योग जगत श्रीहरिकोटा के लॉन्च पोर्ट का इस्तेमाल कर सकता है लेकिन निजी क्षेत्र को पीएसएलवी बनाना चाहिए। इंजीनियरिंग क्षेत्र की दिग्गज लारसेन एंड टबरे (एल एंड टी) ने इस दिशा में अपनी दिलचस्पी दिखाई है लेकिन ज्यादा प्रगति नहीं हो पाई। आज भी बड़ी संख्या में रॉकेटों के हिस्सों की आपूर्ति निजी क्षेत्र से की जाती है लेकिन इन्हें अंतत: जोड़ा इसरो के विशेषज्ञों द्वारा ही जाता है। कुमार ने कहा है कि निजी क्षेत्र का पहला प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा से 2020 में हो सकता है। लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि कौन सा भारतीय उद्योग या कौन सा उद्योग संघ इसे अंजाम देता है।
उपग्रह क्षेत्र की बात करें तो एक बड़े सफल प्रक्षेपण के अगले ही दिन इसरो ने बेंगलूरू इसरो उपग्रह केंद्र में एक बैठक बुलाई, जिसमें एयरोस्पेस क्षेत्र के 110 उद्योगों ने भाग लिया। तब इसरो ने एक घोषण की कि निजी उद्योग को पूरे-पूरे उपग्रह बनाने चाहिए। इसरो के अनुसार, इस बैठक का आयोजन अंतरिक्ष आधारित सेवाओं के लिए तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उद्योग जगत का सहयोग जुटाना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य को हकीकत में बदलना था।
इसरो ने एक बयान में कहा, ‘वर्षों से, विभिन्न उद्योग किसी अंतरिक्ष यान में लगने वाली सहयोगी प्रणालियां बनाने में सक्रिय रूप से भागीदारी करते आए हैं। इन आपूर्तिकर्ताओं को काम देकर इसरो ने कई प्रारूप प्राप्त किए हैं। हालांकि पूरे अंतरिक्ष यान बनवाने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। इस सम्मेलन का उद्देश्य इसी अंतर को पाटना है।’ कुमार ने कहा कि सरकार के लगभग सभी विभागों और मंत्रालयों ने अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्षीय प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में गहरी रूचि दिखाई है। अंतरिक्ष आधारित सेवाओं की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए जरूरी है कि इसरो अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए उद्योगों के साथ हाथ मिलाए। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में एक बड़ा कारोबार हासिल करने की भारत की संभावनाओं को भी रेखांकित किया।
उद्योग जगत की इस बैठक में मौजूद इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक एम अन्नादुरई ने हर साल कम से कम 10-12 उपग्रह प्रक्षेपित किए जाने की जरूरत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य की दिशा में इसरो और उद्योग जगत के बीच सहयोग के साथ ही बढ़ा जाना चाहिए क्योंकि ऐसी साझेदारी दोनों के लिए ही लाभदायक होगी। अन्नादुरई ने कहा कि अंतरिक्ष यान का पूरा निर्माण करने में रूचि रखने वालों के लिए इसरो की वेबसाइटों पर ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ डाला गया है और उद्योगों से आवेदन मांगे गए हैं। पूरा उपग्रह बनाने में दिलचस्पी दिखाने वाली सबसे पहली कंपनी जी मीडिया है। इसने एक दशक से भी कुछ समय पहले इस दिशा में बहुत कोशिश की थी लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका था। शायद तब यह प्रयास कुछ ज्यादा ही जल्दी था।
इस साल की शुरुआत में, नयी दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित अंतरिक्ष गोष्ठी में कहा गया था कि ‘मार्केट रिसर्च के प्रमुख अध्ययन दिखाते हैं कि अगले दशक में 1800 से ज्यादा उपग्रहों के ऑर्डर मिलेंगे और ये प्रक्षेपित किए जाएंगे। इससे वैश्विक बाजारों में लगभग 300 अरब डॉलर का कारोबार होगा।’
भारत अपने निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी बढ़ाकर इस वैश्विक अंतरिक्षीय उद्योग जगत में एक बड़ा हिस्सा अपने नाम कर सकता है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलें उद्योग के ज्यादा व्यवसायिकरण की मांग को बढ़ाती हैं। भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़ी नई स्टार्ट-अप कंपनियों का उदय आईटी और बायोटेक के बाद अब तीसरे प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सफलता के सोपान लिख सकता है।
लेकिन सबकुछ इतना बढ़िया भी नहीं है। उद्योग जगत इसरो के साथ गठबंधन को लेकर सशंकित भी है क्योंकि एंट्रिक्स-देवास प्रकरण के जख्म अभी हरे ही हैं। इसरो पर सांठगांठ का आरोप लगा था। ऐसा आरोप था कि इसरो की ओर से दो लाख करोड़ रूपए से ज्यादा का दुर्लभ एस बैंड देवास मल्टीमीडिया प्रा लि को दे दिया गया था।
इसरो की व्यवसायिक शाख एंट्रिक्स कॉरपोरेशन अंतरराष्ट्रीय पंचाट में मामला जाने से रोकने की लड़ाई उच्चतम न्यायालय में हार गई थी और अंतरराष्ट्रीय पंचाट में भी मामला एंट्रिक्स के खिलाफ ही रहा। आज सरकार ने इसरो के सेवानिवृत्त अधिकारियों और देवास के मालिकों के खिलाफ जांच शुरू कर दी है।
लंबे समय से चला आ रहा है व्यवसायिक विवाद निजी कंपनियों को लुभाने की कोशिश कर रहे इसरो के लिए शुभ नहीं है। एंट्रिक्स और देवास मामले का शीघ्र निपटान इसरो के हित में होगा क्योंकि तभी विश्वास की बहाली की जा सकेगी। ऐसा अक्सर कहा जाता है कि अंतरिक्ष एक जोखिम भरा कारोबार है और निश्चित तौर पर यह कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है। अब जबकि इसरो ने व्यवसायिक सहयोगियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं, ऐसे में अब यह भारतीय उद्योग पर है कि वह प्रगति करते हुए तारों तक पहुंचे।