ये कैसे जनप्रतिनिधि
परदे के पार
दिल्ली की जनता इन दिनों ‘कन्फूज’ है। उसे समझ में नहीं आ रहा है उसने चुनावों में जनप्रतिनिधि चुनकर भेजे थे कि अपराधी। आयेदिन किसी न किसी की गिरफ्तारी की खबर सामने आना आम बात हो गयी है। अब तक ऐसे दस जनप्रतिनिधि जेल यात्रा कर चुके हैं। हालांकि इन सबसे एक तरह से मफलरमैन और उनके खास सिपहसालार खासे खुश हैं। कहते घूम रहे हैं कि यह आजादी की दूसरी लड़ाई है। जिस तरह अंग्रेजों ने जुल्म करते हुए तमाम देशभक्त हिन्दुस्तानियों को सलाखों के पीछे डाल दिया था, कमोबेश वही दृश्य आज परिलक्षित हो रहा है। इस बार अंग्रेज मुकाबिल नहीं हैं लेकिन फिर भी यह आजादी की दूसरी लड़ाई है क्योंकि देश की सत्ता एक ‘डिक्टेटर’ के हाथ में है। यह बात भी गौरतलब है कि इस बार जो जेल यात्रा कर रहे हैं, उनमें से कोई छेड़छाड़, तो कोई महिलाओं से बदसलूकी तो कोई अपनी ही पत्नी को प्रताड़ित करने का आरोप है।
सेर पर सवा सेर
रामपुरी खां साहब जब किसी के खिलाफ गांठ बांध लेते हैं तो बस उसके पीछे नहा-धोकर पड़ जाते हैं। लाट साहब ने एक बिल क्या रोका लिया, खां साहब उनके पीछे पड़ गए। आयेदिन उन पर कटाक्ष करने से वे बाज नहीं आ रहे हैं। एक बार तो हालत यह हो गयी कि लाट साहब ने पार्टी मुखिया तक से उनकी शिकायत कर दी लेकिन खां साहब कहां मानने वाले थे। उन्होंने पूर्व की भांति हमले जारी रखे। एक बार तो यहां तक कह गये कि लाट साहब उनकी हत्या तक करा सकते हैं। उनकी यह बात तो बहुतों के गले नहीं उतरी लेकिन अब खां साहब को अपनी रामपुरी चलानी थी, सो चला दी। इस बारे में जब खबरनवीसों ने लाट साहब से पूछा तो वे भी कहां चूकने वाले थे, तपाक से बोले- सरकार के मुखिया से कहकर ‘सिक्यूरिटी’ बढ़वा देंगे। जरूरत पड़ी तो देश की सरकार से वे खुद अनुरोध करके उन्हें ‘फुल प्रूफ सिक्यूरिटी’ दिला देंगे। लाट साहब ने इतने करीने से खां साहब पर कटाक्ष किया कि हर कोई दंग रह गया।
शोर के बीच नींद यानि वल्र्ड रिकार्ड
पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी पंचायत में दलितों के उत्पीड़न को लेकर गर्मागर्म बहस चल रही थी। विपक्षी पूरे दमखम से सरकार पर चढ़ाई कर रहे थे। खूब हंगामा हो रहा था। शोर इतना था कि लोग पड़ोसी की बात नहीं सुन पा रहे थे कि कौन क्या कह रहा है। ऐसे में देश की सबसे पुराने राजनैतिक दल के युवराज बड़े इत्मीनान से झपकी ले रहे थे। उन्हें इसका भान भी नहीं था कि कैमरा उन्हें इस अवस्था में ‘कैच’ कर रहा है। खैर, बाद में जब उनकी यह तस्वीर मीडिया की सुर्खियां बनीं तो उनके सिपहसालारों ने बचाव में कमान संभाल ली। एक ने कहा कि वे सो नहीं रहे थे बल्कि चिन्तन कर रहे थे, तो वहीं किसी ने कुछ दलील दी। सबकी बातें सुनकर कटाक्ष करने में माहिर सत्ताधारी दल के नेता बोले कि युवराज का तो नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में शामिल कराया जाना चाहिए कि आखिर इतने शोर-शराबे और हंगामें में कोई सो कैसे सकता है। यह तो अपने आप में एक रिकार्ड है।
भीड़ कैसे बदलेगी वोट में
फिल्मी दुनिया के रूपहले पर्दे पर जिनका नाम बहुत बड़ा है लेकिन राजनीति में उनकी छवि जुझारू तो जरूर है लेकिन उनमें यह माद्दा नहीं है कि वोट दिलवा सकें। हां, भीड़ वो मजे की जुटा सकते हैं, आखिर फिल्मी चेहरा जो ठहरे। बावजूद इसके देश की सबसे पुरानी पार्टी ने यूपी जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश में उन पर ही दांव खेला है। यही नहीं, दिल्ली प्रदेश पर लगातार तीन बार शासन करने वाली तेजतर्रार नेत्री को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में भी पार्टी ने आगे कर दिया। ऊपर से प्रदेश प्रभारी के रूप में एक मुस्लिम चेहरा पहले ही आगे किया जा चुका था। पर अब सवाल यह है कि भीड़ जुटाने के लिए फिल्मी चेहरा भी है, प्रदेश प्रभारी के रूप में मुस्लिमों पर डोरे डालने के भी दांव ठीक है, साथ ही ब्राह्मणों को रिझाने के लिए मुख्यमंत्री का नाम भी आगे कर दिया गया है पर दिक्कत यह है कि भीड़ तो जुट जायेगी पर वह वोट में ‘कन्वर्ट’ कैसे होगी, इसका फार्मूला तो मैनेजमेंट गुरु भी साफ-साफ नहीं बता पा रहे हैं।
अकेले पड़े सुशासन बाबू
बिहार की सत्ता पुन: हासिल करने में कामयाब रहे सुशासन बाबू के निशाने पर अब उप्र है लेकिन बिहार में उनकी नाव के खेवनहार रहे उनके सहयोगी दल उप्र में उनके लिए अपनी ‘लालटेन’ जलाने को तैयार नहीं हैं। दरअसल वे ‘लालटेन’ लेकर इसलिए यूपी में नहीं निकलना चाहते क्योंकि उनकी राह में रिश्तेदारी बड़ा अड़ंगा है। भले ही चुनावी मंच हो पर अपने ही समधी की आलोचना करना कहां तक उचित होगा, बस इसी बात को लेकर ‘बुड़बक’ के तकिया कलाम वाले नेताजी चुप हैं। उधर, सुशासन बाबू लगातार उनके समधी और उनकी पार्टी पर आरोपों की बौछार करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। हालांकि सुशासन बाबू यूपी में कोई बहुत बड़ा तीर मार लेंगे, इसे लेकर तो विद्वानों में भी मतभेद है लेकिन फिर भी वे कोई मौका हाथ से गंवाना नहीं चाहते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि बिहार में जिन्होंने गलबहियां डाल रखी हैं, वे यूपी में ऐसे किसी प्रयोग से दूर रहना चाहते हैं। ऐसे में सुशासन बाबू को समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। साफ है कि जो बिहार में साथ थे, वे यूपी आते-आते बेगाने से हो गए हैं।
काश मैंने भी पेंच लड़ाये होते
पिछले दिनों फिल्मी पर्दे का सुल्तान एक और मामले में पाक साफ बरी हो गया। इससे पहले भी सुल्तान ने मुम्बई में चल रहे एक मामले में धोबी पछाड़ दांव लगाया तो वहां भी वे निर्दोष साबित हुए। लगातार मिल रही राहत के बाद अब यह चर्चा आम हो गयी है कि मुल्क के बादशाह से गर नजदीकियां हों तो राहें बहुत आसान हो जाती हैं। गुजरात में इस दबंग सुल्तान ने बादशाह के साथ पतंग उड़ायी थी और पेंच भी लड़ाये थे। सुल्तान के वालिद ने भी बादशाह की शान में कसीदे पढ़ने में देर नहीं लगायी। अब तो कई और दागियों को यह लगने लगा है कि काश उन्होंने भी बादशाह के साथ पतंग के पेंच लड़ाये होते। यदि ऐसा हुआ होता तो वे भी अपने तमाम केसों से बरी हो गए होते। लेकिन यह भी सच है कि हर किसी का ऐसा सौभाग्य नहीं होता क्योंकि हर कोई सुल्तान नहीं होता। हो सकता है कि इस घटना के बाद कई औरों की आस्था पतंगबाजी में बढ़ जाये।