मुलायम कुनबे के अलावा सारे सपाई हारे
लखनऊ। इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के तीन सदस्यों को छोड़ दें तो पार्टी का कोई और उम्मीदवार जीत नहीं दर्ज कर सका। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जनता पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की लहर से न सिर्फ सपा को करारी हार मिली बल्कि मुलायम का प्रधानमंत्री बनने का सपना भी टूट गया। सर्वाधिक 8० सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा ने 78 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे केवल पांच सीटों पर ही जीत मिल सकी। सपा प्रमुख मुलायम आजमगढ़ सीट पर (करीब 63 ००० वोटों से)और मैनपुरी सीट पर (364666 वोटों से) तो उनकी बहू एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज सीट पर (19 9०7 वोटों से) भतीजे धर्मेंद्र यादव को बदायूं सीट पर (करीब 1़66 लाख वोटों से) तो दूसरे भतीजे अक्षय यादव को फिरोजाबाद (करीब 1़14 लाख वोटों से) सीट पर जीत मिली। मुलायम, डिंपल और धर्मेंद्र-तीनों ने फिर उन्हीं सीटों से चुनाव लड़ा था जहां से सांसद थे जबकि अक्षय पहली बार चुनावी मैदान में थे। मुलायम मैनपुरी के साथ आजमगढ़ से भी मैदान में थे। चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में 5० से ज्यादा सीटों जीतकर दावा करने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं ने इस बार अपने नेता मुलायम को प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लिया था। सपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रचार के दौरान अपनी लगभग हर जनसभा जनसभा में कार्यकर्ताओं और लोगों से कहते थे कि इस बार केंद्र में गैर कांग्रेस और गैर भाजपा की तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी। नेती जी को प्रधानमंत्री बनाने का सुनहरा मौका है। सपा की इस करारी हार पर पार्टी के महासचिव सी़ पी़ राय ने कहा ‘‘हम जनादेश का सम्मान करते हैं। हम आत्मचिंतन करेंगे कि कहां पर चूक हुई।’’ उन्होंने दलील दी ‘‘कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त एंटी इंकम्बेंसी थी और लोगों ने हमें उनके साथ मान लिया।’’ दो साल पहले विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के साथ पूर्ण बहुमत पाने वाली सपा का लोकसभा चुनाव में इतना बुरा प्रदर्शन होगा ये किसी ने सोचा नहीं था।राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान कहते हैं कि सपा की हार पीछे मोदी की लहर कांग्रेस को केंद्र में उसका समर्थन देना और जाति आधारित खासकर मुस्लिम तुष्टिकरण राजनीति करना प्रमुख कारण प्रतीत हो रहे हैं। वह कहते हैं कि लोगों में महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर कांग्रेस के प्रति बहुत नाराजगी थी। चूंकि सपा ने पिछले दस लगातार कांग्रेस को बाहर से समर्थन दिया। एक बार तो उससे कांग्रेस की सरकार भी बचाई। ऐसे में कांग्रेस के साथ सपा के खिलाफ भी एंटी इंकम्बेंसी का असर हुआ। गौरतलब है कि सपा पिछले लोकसभा चुनाव (2००9) में सपा 23 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी बनकर उभरी थी।