संपादकीय – स्वच्छता की कड़ी चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस उत्साह और तैयारी के साथ स्वच्छता मिशन की शुरुआत की थी, उस पर राज्य खरे नहीं उतर रहे। भाजपा शासित राज्यों को तो इसे किसी मिशन की तरह लेना चाहिए।
स्वच्छ भारत मिशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रिय योजना है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों ने इसे गंभीरता से लिया है, अब ये कहना कठिन है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण में साफ-सफाई के लिहाज से जो दस राज्य सबसे ऊपर रहे, उनमें सिर्फ हरियाणा ही भाजपा शासित है, जो छठे नंबर पर रहा। सातवें स्थान पर पंजाब है, जहां भाजपा अकाली दल के साथ साझा सरकार में शामिल है। दूसरी तरफ मध्य प्रदेश नीचे से चौथे नंबर पर रहा। छत्तीसगढ़ और झारखंड भी सबसे नीचे के पांच राज्यों में आए। मध्य प्रदेश के लिए बुरी खबर यह भी है कि प्रादेशिक राजधानी भोपाल 75 टॉप स्वच्छ शहरों की सूची से बाहर हो गया। यहां बात स्वच्छता को दलीय आधार पर देखने की नहीं है। लेकिन आम तौर पर अपेक्षा होती है कि केंद्र की योजनाओं पर वे राज्य बेहतर अमल करें, जहां केंद्र में सत्ताधारी दल की ही सरकार है। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने केंद्रीय कल्याण योजनाओं पर अमल की समीक्षा के लिए भाजपा मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई थी। तब उन्होंने जोर दिया था कि राज्यों की भाजपा सरकारें इस मामले में आदर्श बनें। बेशक यह बात स्वच्छता अभियान पर भी लागू होती है। यह केंद्र की सबसे महत्त्वाकांक्षी कल्याण योजनाओं में एक है। प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक पूरे भारत को स्वच्छ करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन ताजा सर्वे रिपोर्ट से उभरी तस्वीर का संकेत है कि इस दिशा में सुस्त गति से प्रगति हो रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे विशाल आबादी वाले राज्य भी काफी पिछड़े हुए हैं। गंदगी की वजह से इन राज्यों में अक्सर अनेक बीमारियों का प्रकोप रहता है। दूषित जल और मच्छर के कारण डायरिया, मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, मस्तिष्क ज्वर, कालाजार आदि जैसे रोग फैलते हैं, जिनसे हर वर्ष अनेक लोगों की असमय मृत्यु होती है। तात्पर्य यह कि साफ-सफाई का संबंध सिर्फ सौंदर्य से नहीं, बल्कि स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए भी स्वच्छता एक पूर्व-शर्त है। लेकिन क्या ये बातें बड़े प्रदेशों की सरकारें और वहां के लोग नहीं समझते? आखिर वहां भारत स्वच्छता मिशन को जन-आंदोलन में क्यों नहीं बदला जा सका है?
दूसरी तरफ छोटे और पहाड़ी राज्य हैं, जिन्होंने स्वच्छता के महत्त्व को बेहतर समझा है। वहां शौचालय का उपयोग बढ़ाने पर पर्याप्त जोर दिया गया है। हालांकि एनएसएसओ के ताजा सर्वे में शौचालय के इस्तेमाल को आधार बनाया गया, लेकिन हाल में आए कई दूसरे अध्ययनों के नतीजे भी इससे बहुत अलग नहीं रहे हैं। इन तमाम रिपोर्ट्स को चेतावनी के रूप में लेना चाहिए। सभी राज्यों की सरकारों एवं आमजन को अब अतिरिक्त संकल्प एवं प्रयास के साथ स्वच्छता अभियान में जुट जाना चाहिए, क्योंकि 2 अक्टूबर 2019 अब महज दो साल दूर है।