संपादकीय

अलेप्पो की आजादी का अर्थ

27_12_2016-26waiel_awwadसाल 2016 का अंत होने वाला है और अलेप्पो की जनता अपने प्यारे शहर को आतंकवादियों के चंगुल से मुक्त होने का जश्न मना रही है। सीरिया की आर्थिक राजधानी अलेप्पो पिछले साढ़े चार साल से भुखमरी से जूझ रहा था और इस दौरान वहां बिजली और पानी की आपूर्ति पूरी तरह बाधित थी। लोगों को रिहायशी इलाकों में प्रतिदिन गोलीबारी का सामना करना पड़ रहा था। इस त्रासदी में हजारों लोगों की जान चली गई और बाकी को सरकारी निगरानी में सीरिया के दूसरे हिस्सों में जाना पड़ा। दरअसल सीरिया में लड़ाई 2012 में उस समय और्र ंहसक हो गई थी जब हिलेरी क्लिंटन फाउंडेशन को सऊदी अरब और कतर से दान स्वरूप लाखों डॉलर की राशि हासिल हुई थी। यह वही वक्त था जब अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने सीरिया पर अपना रुख बदल लिया। सीआइए ने अलकायदा से संबद्ध अल नुसरा फ्रंट को हथियार मुहैया कराकर सीरिया के युद्ध में सक्रिय भूमिका निभानी आरंभ कर दी। इसके फलस्वरूप इस आतंकी संगठन ने अलेप्पो को अपने कब्जे में ले लिया था। उन्हें लगा कि अलेप्पो की फतह सीरियाई सरकार का अंत कर देगी।
जब रूस को सीरिया में चल रही साजिशों का आभास हुआ और उसे लगा कि अगला निशाना तेहरान और मास्को हो सकता है तब उसने सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने और उसे टूटने से बचाने के लिए सैन्य हस्तक्षेप कर दिया। उसके बाद से लड़ाई के प्रतिमान बदल गए और सीरियाई सरकार ईरान और रूस की मदद से कई क्षेत्रों को आतंकवादियों के कब्जे से छुड़ाने में सफल हो गई, जिनको सऊदी अरब और कतर से समर्थन मिल रहा था। आइएसआइएस की आय का मुख्य स्नोत तेल था, जो तुर्की के रास्ते बेचा जा रहा था। बाद में इस मार्ग को बंद कर दिया गया। इस सबके बीच इस्लामिक स्टेट और एर्दोगन सरकार के बीच साठगांठ के संकेत भी उभरे। हालात हाथ से फिसलते देखकर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर दबाव डालना आरंभ कर दिया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा आइएस और अल नुसरा को आतंकवादी संगठन घोषित कर देने के बाद मास्को ने अमेरिका को अलेप्पो में तबाही मचा रहे अल नुसरा फ्रंट से संबंध तोड़ने को कहा। हालांकि अमेरिका ने संबंध तो नहीं तोड़े, पर पेंटागन ने उसे अपना नाम बदलने का निर्देश दिया। बहरहाल रूस ने ठान लिया था कि वह अलेप्पो की घेरेबंदी तोड़ेगा और अल नुसरा की अगुआई वाले आतंकवादी संगठनों को नेस्तनाबूद करेगा। उसने अपने अभियान को तेज किया और सर्वप्रथम आतंकवादियों को शहर छोड़ने के लिए कई सुरक्षित रास्ते उपलब्ध कराए, लेकिन आतंकवादियों ने वहां से हटने से इंकार कर दिया। बाद में जब उन्हें एक-एक कर किनारे किया जाने लगा तब पूरी दुनिया में मौजूद उनके समर्थक अलेप्पो में मानवाधिकार की आड़ में घड़ियाली आंसू बहाने लगे। दुर्भाग्य की बात यह है कि उनमें से किसी ने साढ़े चार साल तक मानवाधिकार का मुद्दा नहीं उठाया जब अलेप्पो आतंकवादियों के कब्जे में था। अब जब शहर स्वतंत्र हो गया है तब वहां से कई बातें निकलकर सामने आएंगी।
पूर्वी अलेप्पो में सीरियाई सेना ने अमेरिका, इजरायल, तुर्की, सऊदी अरब, कतर और मोरक्को के कुछ अधिकारियों को पकड़ा है। इससे सीरिया में आतंकवादी संगठनों के साथ इन देशों की साठगांठ का खुलासा होगा। इसके साथ अलेप्पो को मुक्त कराने के क्रम में रूस और सीरिया के खिलाफ फैलाई गई अफवाहों का सच भी सामने आएगा। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अलेप्पो की आजादी सीरिया में युद्ध के अंत की शुरुआत होगी। अलेप्पो को आतंकवादियों से मुक्त कराने संबंधी घोषणा के बाद कई लोग शहर लौटने लगे हैं। हालांकि अलेप्पो को फिर से बनाने और बसाने का काम आसान नहीं होगा और इसमें समय लगेगा, लेकिन सीरियाई लोगों को चुनौतियों को स्वीकारने के लिए जाना जाता है। सीरिया की पहचान मध्य-पूर्व में सभ्यता के उद्गम स्थल के रूप में है। वह विविधताओं से भरा हुआ है। वह सेक्युलर देश है जहां हर कोई अपना धर्म मानने को स्वतंत्र है और सभी सीरियाइयों को समानता का अधिकार मिला हुआ है। सीरिया का संविधान किसी भी धार्मिक राजनीतिक पार्टी की अनुमति नहीं देता है। वहां की आबादी में मुस्लिमों की बहुलता है, लेकिन ईसाइयों और यहूदियों की हिस्सेदारी भी 10-13 प्रतिशत है। भूमध्य सागरीय क्षेत्र में इसका भूराजनीतिक महत्व है।
दरअसल मध्य-पूर्व में अमेरिका की रुचि हमेशा तेल और गैस को लेकर रही है। 21वीं सदी के लिए पेंटागन की रणनीति मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका देशों को तोड़ने और नई व्यवस्था बनाने की है। 2005 में अमेरिकी जनरल वेस्ले क्लार्क ने खुलासा किया था कि अमेरिका सीरिया और लीबिया सहित सात देशों पर कब्जा करेगा। यहां तक कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जो बिडेन ने भी कहा था कि अमेरिका ने सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए तुर्की, सऊदी अरब, कतर की मदद से इस्लामिक स्टेट को खड़ा किया है। दुनिया को इस आतंकवाद के खतरे का आभास तब हुआ जब इसने अपने आकाओं पर ही पलटवार करना आरंभ कर दिया। कई यूरोपीय देशों में सीरिया और इराक से लौटे उनके अपने ही नागरिकों द्वारा
हमले किए गए। उसके बाद से उन्होंने सीरिया र्में ंहसा और नरसंहार को खत्म करने का फैसला किया। हालांकि अमेरिका और पश्चिमी देशों का दोहरा रवैया कभी खत्म नहीं हुआ, क्योंकि अमेरिका अभी इराक के मोसूल में आइएसआइएस से लड़ रहा है, लेकिन सीरिया में उसका समर्थन कर रहा है। अलेप्पो की मुक्ति ने सीरिया के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है और इसे टूटने से रोक दिया है। अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की सत्ता परिवर्तन की नीति के खिलाफ हैं। तुर्की में रूसी राजदूत की हत्या के बावजूद मास्को में रूस, तुर्की और ईरान के बीच मंत्रिस्तरीय बैठक हुई।
उम्मीद है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अब और तेज होगी और सीरिया मजबूत होकर निकलेगा। वहीं राजनीतिक प्रक्रिया और सीरिया के पुनर्निर्माण का काम भी तेजी से आगे बढ़ेगा। सीरिया ने अपने ऊपर थोपे गए युद्ध की भारी कीमत चुकाई है। वहां की आधी से अधिक आबादी को अपना मूल स्थान छोड़ने पर विवश होना पड़ा है। यूरोप और अमेरिका के लोगों को अपनी-अपनी सरकारों को दूसरे देशों में हस्तक्षेप करने और कटट्र जमातों को मदद देने से रोकने के लिए आगे आना चाहिए। यह आतंकवाद और इस्लाम के प्रति भय को रोकने में भी मदद करेगा। अलेप्पो की आजादी अमन से प्यार करने वाले उन सभी देशों की जीत है जो आतंकवाद से लड़ रहे हैं। भारत जैसे देशों को सीरिया के युद्ध से सबक सीखना चाहिए कि एक विविधतापूर्ण देश में कठिन समय में कैसे शांति और स्थिरता को बरकरार रखा जाता है।

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