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जानें ऐशबाग रामलीला की खासियत जिसे देखने दिल्ली से आ रहे हैं मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दशहरे पर लखनऊ आ रहे हैं। वह यहां ऐशबाग की रामलीला भी देखेंगे। इस रामलीला का इतिहास 600 साल पुराना है। ऐशबाग रामलीला से जुड़े कई प्रसंग हैं। समिति के संयोजक पंडित आदित्य द्विवेदी के मुताबिक करीब 60 साल पहले जटायु का किरदार निभाने वाले सूरजबली अपने किरदार में इतना रम गए कि वह आग लगने पर भी मंच पर डटे रहे और उनकी जान चली गई। आज भी रामलीला शुरू होने से पहले उनको नमन किया जाता है।
ऐशबाग रामलीला गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है। नवाब आसिफउद्दौला ने इसके मंचन से खुश होकर रामलीला के लिए साढ़े छह एकड़ जमीन दी थी। वहीं रामलीला मैदान के सामने ईदगाह है और रामलीला की तैयारी में हिंदू-मुस्लिम कारीगर मिलकर काम करते हैं। रावण का पुतला बनाने वाले कारीगर मुन्ना भी मुस्लिम हैं।
रामचरितमानस लिखने के बाद गोस्वामी तुलसीदास पूरे अवध क्षेत्र में घूम-घूमकर रामायण का पाठ करते थे। लखनऊ में वह छांछी कुंआ मंदिर या फिर ऐशबाग अखाड़े(अब रामलीला मैदान) में रुकते थे।
अखाड़े में साधुओं का समागम आम बात थी। एक बार तुलसीदास ने अखाड़े में रामलीला के मंचन के बारे में सोचा। जबकि वह बनारस के रामनगर में रामलीला शुरू करवा चुके थे। साधुओं को यह बात पता चली तो उन्होंने साधुओं ने लंगोट कसे और मंच पर राम की लीलाओं को बेहतरीन ढंग से उतार दिया। जिसे काफी पसंद किया गया, इसके बाद यह पहल चल निकली। नवाब आसिफउद्दौला रामलीला देखने आया करते थे, उन्होंने जब मंचन देखा तो खुश हो गए और रामलीला के लिए साढ़े छह एकड़ जमीन दे दी…।
छह सौ साल पहले कुछ इसी तरह शुरू हुआ था, ऐशबाग रामलीला का कारवां। जो आज देश की सबसे पुरानी रामलीलाओं में अपनी पहचान बना चुकी है। श्रीरामलीला समिति ऐशबाग के मंत्री आदित्य द्विवेदी बताते हैं कि ऐसा सुनने को मिलता है कि पहली रामलीला में साधुओं ने जिस अभिनय का परिचय दिया था, लोग उसके कायल हो गए।