उत्तराखंड में अच्छी बर्फबारी से सेब के उत्पादन अच्छी होगी। इसको लेकर किसान खुश हैं, लेकिन उस फसल के अच्छे दाम मिलेंगे या नहीं इसको लेकर किसान परेशान हैं।
देहरादून: अच्छी बर्फबारी से सेब उत्पादकों के चेहरे तो खिले हैं, लेकिन फसल का वाजिब दाम मिलेगा या नहीं इसे लेकर किसान अभी से आशंकित हैं। क्योंकि सिस्टम ही इतना सुस्त है कि राज्य बनने के 16 साल बाद भी उत्तराखंड के सेब की अपनी पहचान तक नहीं बनी। ये दुर्भाग्य ही है कि उत्तराखंड का सेब हिमाचल एप्पल के नाम से बाजार में बिकता है।
उत्तराखंड में सेब का कुल क्षेत्रफल 34685 हेक्टेयर है। पिछले साल हुई कम बर्फबारी से सेब उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। अच्छे किस्म के सेब के लिए एक हजार से 1300 घंटे का चिलिंग प्वाइंट जरूरी होता, जो नहीं मिल पाया। इससे उत्पादन के साथ गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। रही-सही कसर पूरी कर दी मार्केटिंग की कोई व्यवस्था नहीं होने ने। उत्पादकों को औने-पौने दाम पर सेब बेचना पड़ा।
राज्य गठन के वक्त उत्पादन दो लाख टन से ज्यादा था। पर, सरकारों और उद्यान विभाग की उपेक्षा से यह घटता चला गया। जून में सेब की तुड़ाई शुरू होती है और तभी बरसात भी। इससे रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं और कई-कई दिनों तक ट्रक रास्ते में खड़े रहते हैं। इससे 20 से 30 फीसद माल रास्ते में ही खराब हो जाता है। इसके लिए सरकार की कोई व्यवस्था नहीं है। मार्केटिंग का कोई सिस्टम नहीं है। सेब उत्पादक आढ़ती के चंगुल में है। आढ़ती जिस रेट में चाहता है, उस रेट पर बेचने की किसान की मजबूरी होती है।
पेटियां तक नहीं मिली
जबकि, हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का सेब 15 दिन पहले बाजार में आता है, पर इसका उत्पादक को कोई फायदा नहीं मिलता। हालात ये हैं कि उद्यान विभाग उत्तराखंड का लोगो लगी पेटियां तक उपलब्ध नहीं करा पाया। लोग हिमाचल से पेटियां खरीदने को मजबूर होते हैं। सरकार हो या विभागीय अधिकारी सभी ने बड़ी-बड़ी बातें करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ये हैं सेब की किस्में
अर्ली वैरायटी: अर्ली सनवरी, फैनी, बिनौनी
मिड वैरायटी: रेड डिलिसियस, रॉयल डिलिसियस, गोल्डन डिलिसियस
लेट वैरायटी: स्पर
जिला——————सेब बाहुल क्षेत्रफल
नैनीताल—————-7810
अल्मोड़ा—————-1576
बागेश्वर——————171
पिथौरागढ़————–1600
चंपावत——————-619
देहरादून—————–4799
पौड़ी———————1117
टिहरी——————–3811
चमोली——————-4429
रुद्रप्रयाग——————-400
उत्तरकाशी—————8351
(क्षेत्रफल हेक्टेयर और उत्पादन मीट्रिक टन में)